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4 Nov 2021 · 2 min read

गुस्सा और दूसरी कविताएं

गुस्सा
————-
पुछा तो-
नि:निमेष देखते रहे
कई एक क्षण
गुर्राकर बोले-
मेरा सिर खा।
दुश्मन
————————————
दुश्मन मित्र से बड़ा कौन होगा!
मेरे राह में बनके रोड़ा
सिवा इसके खड़ा कौन होगा?
मेरे मिशन से मुझे स्खलित करने हेतु
अपने आप से लड़ा कौन होगा?
गुलेल लेकर झुरमुट में
पड़ा कौन होगा?
छलाँग सामने से लगायेगा दुश्मन
बगल से मारनेवाला
इनसे तगड़ा कौन होगा?
———————————-
करामात शराब की
—————————
जितनी लगाई आग लगाई शराब ने।
वर्ना तो हाँ ही कहा था शबाब ने।
———————————————–
किताब
————
युद्ध से गहरी यहाँ थी शान्ति हर वक्त ही।
बस घृणा की आग लगाई इस किताब ने।
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आग
——–
हाथ सेंक दे जो
सुलगा दे सिगरेट।
आग वह नहीं जो
उगलता है जेठ।
जो तपिश बुझा दे
जलते तमाम मन का-
आग वह है जो
सुलगा दे स्याही
मेरे तपन का।
————————————–
शरम
——-
बेशरम हम हो गये तो शर्म में डूबी हो तुम।
शर्म तब आयी मुझे जब बेशरम बन खुल पड़ी।
______________________________
सौन्दर्य को डर
किसी लावण्यमयी के कपोलों को छूकर आती है हवा।
सँदल सा हो जाता है जिस्म और जाँ इसका।
होते ही वहशत में बहने लगती है हवा।
कहीं भय तो नहीं?
लुट जाने का लावण्य की दोशीजगी।
———————————————–
अश्क को शरम कैसी
————————
मैं रोता हुँ तेरी बेबफाई नहीं
अपने हाल पर।
दिल पत्थर का होगा तेरा
मेरा तो पत्थर की किस्मत है।
खोदना चाहें कोई लकीर भी
खोद लें अपनी ही कब्र ।
रोने का मुझे ही नहीं तो
अश्क को शरम कैसी।
————————————–
वजह कैसी!
————–
उनसे तकरार क्या और उनसे सुलह कैसी?
मुहब्बत का हक है यह,इसकी वजह कैसी?
______________________________
तन्हाईयाँ
————–
सुई के नोक की तरह चुभती हैं तन्हाईयाँ।
आईये,मेरे चाहनेवाले आसमाँ से नहीं उतरेंगे।
————————————————–
अरूण कुमार प्रसाद

Language: Hindi
183 Views
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