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10 Jun 2018 · 1 min read

गीत

गीत

“चाय नशीली बन जाती”
*******************

गर्म चाय की प्याली थामे
मन की बातें कह आती।
प्यास बुझाती प्रिय की अपने
चाय नशीली बन जाती।

अलसाई नज़रों से तक कर
मेरा यौवन चखते वो,
तन की लाली मन मदमाती
बाहों में फिर भरते वो।

पिला चाय की मीठी चुस्की-
चुंबन पाकर इठलाती।
चाय नशीली बन जाती।।

छेड़ राग मैं पंचम स्वर की
साँसों को कंपित करती हूँ,
कोकिल कंठी राग सुनाकर
प्रीतम का मन हरती हूँ।

घोल प्रीत प्याले में अपनी-
अधरों से मैं लग जाती।
चाय नशीली बन जाती।।

भूल शिकायत शिकवे सारे
यादों में हम खो जातेे,
सुख-दुख दोनों साथ लिए हम
इक-दूजे के हो जाते।

याद न रहतीं कड़वी बातें-
पल में हिचकी बन जाती।
चाय नशीली बन जाती।।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
Tag: लेख
217 Views
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