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6 Oct 2017 · 1 min read

गंगा बचानी है

ग़ज़ल—-

शिकायत कुछ नहीं तुमसे, मगर इतना बता दो तुम।
जुदा हम क्यों हुए किस बात पर रुठे बताओ तुम।।

गुजारे थे जो लम्हे प्यार में उन लम्हों की ख़ातिर।
कभी तो प्यार से इक बार ही फिर आजमा लो तुम।।

हज़ारों लोग जो पलते हैं उस वीरान बस्ती में।
वहाँ जाकर कभी उस धुंध की चादर हटाओ तुम।।

ख़ताओं से नहीं मैं आज भी इंकार करती हूँ।
भुला के वो गिले सारे कभी मुझको मना लो तुम।।

सभी अब रो रही नदियाँ हुआ पानी जो गंदा है।
भगीरथ कह रहा है अब भी तो गंगा बचा लो तुम।।

आरती लोहनी

1 Like · 1 Comment · 412 Views
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