क्या कभी निज से मिला हूँ
विधा :- गीत (१४-१४मात्रिक-२१२२ २१२२ )
विषय :-** क्या कभी निज से मिला हूँ
दिनांक :- ०८/०८/२०२१
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सोचता हूँ मौन रहकर
हर व्यथा सहता चला हूँ,
कौन हूँ, हाँ! कौन हूँ मै
क्या कभी निज से मिला हूँ?
वेदनाओं की भँवर में , नित्य गोते मैं लगाता
अश्रुओं की मूक भाषा, काश! मैं पहचान पाता
हर्ष के पल ढूँढने में, हर्ष ही खोता। रहा मैं
निज हि निज से मिल सकूँ वह,पल मिला सोता रहा मैं
दम्भ मिथ्या पालकर ही
पंथ जीवन का चला हूँ
कौन हूँ, हाँ! कौन हूँ मैं
क्या कभी निज से मिला हूँ?
मन की भाषा पढ़ लिया पर, आत्म वाणी को भुलाया
आत्म लिप्सा से ग्रसित हो, निज न निज को जान पाया
क्यों हुआ था अवतरण जी, आज भी वह है पहेली
सत्यता से हो विमुख अब, बन गई मिथ्या सहेली
मोह – माया से ग्रसित मैं
क्या कहूँ कैसी बला हूँ
कौन हूँ, हाँ! कौन हूँ मैं
क्या कभी निज से मिला हूँ।
हे विधाता! आप मुझको, मन कहे मुझसे मिला दो
पंथ शाश्वत सत्य है जो, भक्ति उस पथ में जगा दो
मैं नहीं अब चाहता भटकाव के पथ और चलना
ठान कर प्रण आज बैठा, अब मुझे मुझसे है मिलना
सद्य भव ने जो दिखाया
सम उसीके मैं ढला हूँ
कौन हूँ, हाँ! कौन हूँ मैं
क्या कभी निज से मिला हूँ?
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
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मै【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’ ]घोषणा करता हूँ, मेरे द्वारा उपरोक्त प्रेषित रचना मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रेषित है।