Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2021 · 8 min read

कैसी बेबसी

°°°°°°°°° कैसी बेबसी °°°°°°°°°°

°°°°°°°°°●●●°°°°°°°°°°

कितना खुश था पिता ; जब पहली बार देखा था अपने पुत्र का चेहरा जैसे दुनिया की सारी खुशी एक ही पल में उसके अन्तस में समा गई हो, उस नवागंतुक मेहमान के ललाट पर जैसे उस एक पल में उसने अपने संपूर्ण जीवन की एक सुखद, सुन्दर गरिमामय छवि देख ली हो।
मानव मन कितना स्वार्थी होता है एक नवजात शिशु जिसने कुछ ही देर पहले इस धरा पर अपनी आंखें खोली हो……जिसे अभी इतना भी ज्ञान नहीं कि वह कौन है, कहाँ और क्यो आया है, उसके आसपास जो भीड़ खड़ी है आखिर उनसे उसका रिश्ता क्या है……

तभी से हम अपने प्रत्याशाओं का भारीभरकम बोझ …..यह मेरे दुखों का नाश कर हमें सुखद जीवन प्रदान करेगा, हमारे बुढापे की लाठी बनेगा, हमारे कुल का नाम रौशन कर पिता के नाम को शिखर की बुलंदियों तक लेकर जायेगा….उस नौनिहाल के माथे थोप देते है, यहाँ तक की जो सपने जो लक्ष्य हमने अपने लिए निर्धारित किये या देख रखे थे और पूरा न कर सके हों उनको भी साध लेने का एक सुगम जरीया मिल गया हो, ऐसा सोच मन में पाल लेते हैं।

………….अमर के मनोमस्तिष्क में भी आज यहीं सारे सपने कुलाचें मार रहे थे और इन्हीं कारणों से वह अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहा था, बच्चे को गोद में लिए अस्पताल की सीढियां उतरते वक्त वह इन्हीं मीठे सपनों में खोया हुआ था तभी अचानक उसकी तंद्रा भंग हुईं जब उसने किसी की मरीयल सी आवाज सुनी …..
…..बेटे कुछ पैसे मिल जाते तो मैं पेट भर खाना खा लेता तीन दिनों से कुछ नहीं खाया भुख से चला नहीं जा रहा…………
अमर जैसे सोते से जगा हो ……..शायद और कोई भी दिन होता तो सही से बीना देखे हीं , मुंडी झटक बीना एक नजर उस दीनहीन निरीह इंसान पर डाले हीं वह आगे बढ़ जाता किन्तु आज इस अत्यंत प्रशन्नता भरे माहौल में इस खुशी के मौके पर वह किसी को भी खाली हाथ जाने देने के पक्ष में नहीं था ।

अमर ने अपने पौकेट से सौ रुपये का एक नोट निकाला और उस बृद्ध के हाथों में देते हुये बोला……….बाबा लो यह पैसे और खाने के साथ – साथ मिठाईयाँ भी खा लेना । पैसा लेते हुऐ बृद्ध ने पूछा …….बाबूजी बड़े खुश लग रहे हो ऐसी कौन सी खुशी मिल गई है आपको?

अमर बोला …….बाबा मुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है आज मैं भी बाप बन गया बाबा इससे बड़ी खुशी शायद ही कोई और हो……।
बाबा मेरे बेटे को ढेर सारा आशीर्वाद देना
बृद्ध ने अमर की बाते बड़े ध्यान से सुनी और डुबती आवाज में बोला…..मै भगवान से प्रार्थना करुंगा आपका पुत्र वर्तमान परिवेश से परे एक आदर्श पुत्र बने मातृ व पितृभक्ति का स्तभ बनें , बेटा यह आपके आदर्शों को अपना आदर्श व आपके सपनोँ को अपना स्वप्न मानकर उन्हें हर किम्मत पर पूर्ण करे।……यह शब्द जैसे- जैसे उस बृद्ध के गले से फूट रहे थे वैसे ही अविरल अश्रुधारा उसके पथराये नेत्रों से बह रहे थे।

अमर किंकर्तव्यविमूढ़ सा उस बृद्ध को उसके नेत्रों से बहते अश्रुधारा को भावविभोर हो अपलक देखता रहा जैसे समझने का प्रयास कर रहा हो उस बृद्ध के नेत्रों से बहते अश्रुओं की परिभाषा। लाख जतन के बाद भी वह कारण परिभाषित नहीं कर पाया था ……..
इसी बीच वह बृद्ध लड़खड़ाते कदमों से उसके आंखो से ओझल हो गया।

अमर एक पल के लिए उद्विग्न हो गया, वह लाख प्रयत्न के बाद भी उस बृद्ध को भूल नहीं पा रहा था जहाँ घर में नये मेहमान या यूं कहें कूल दीपक के आगमन से हर्षोल्लास का माहौल था वही अमर के मनोमस्तिष्क पर उस वृद्ध का मुर्झाया हुआ वह भावशून्य मलिन चेहरा छाया रहा।

अमर समझ नहीं पा रहा था उस बृद्ध ब्यक्ति के कारण, वह इतना व्यथित क्यों है
दिन पे दिन बीतते रहे सबकुछ समान्य हो गया किन्तु अमर की उद्विग्नता कम न हुई , …………उसकी ब्याकुलता दिन ब दिन बढती ही गई।
शहर में कहीं कोई भी बृद्ध भिक्षुक दिखता वह उनमें उस बृद्ध को ढूंढता और हर बार निराशा हाथ लगती। हाँ इस बीच एक परिवर्तन अवश्य आया……. अब वह किसी भी भिक्षु को खाली हाथ वापस नही जाने देता।
किसी ने सच ही कहा है अगर सच्चे हृदय से ढूंढा जाय तो भगवान भी मिलते है……….अमर की प्रार्थना सफल हुई वह बृद्ध भिक्षुक उसे एक मंदिर के बाहर भिक्षाटन करते मिल गया ……..अनायास उसके पैर जैसे वहीं थम गये वह मंदिर के अंदर जा न सका…. …उस बृद्ध के पास गया और उन्हें फिर से सौ रुपये का नोट दिया…….अमर को देखते ही वह बृद्ध भिक्षु उसे पहचान गया और पूछ बैठा……बाबूजी आज ऐसी कौन सी खुशी हाथ लगी जो आप हमें भिक्षा में एकबार फिर से सौ का नोट दे रहे है ।
अमर बोला…….बाबा मेरे आज के इस खुशी का मुख्य कारण आप हैं …..मैं पीछले छः महीनों से आपको पागलों की भाती ढूंढ रहा था किन्तु आप हैं कि मिले हीं नहीं, किन्तु……मैने भी कदाचित हार नहीं मानी…..और देखिये परिणाम आज आप मिल हीं गये।
क्यों बाबूजी आप मुझे क्यो इतना बेचैन होकर ढ़ूंढ रहे थे? क्या बात होगई ? ….
बृद्ध भिक्षु ने सशंकित भाव में पुछा।

बाबा आप जिस दिन पहली बार मुझे मिले थे , मैने आपसे अपने बेटे को आशीर्वाद देने को कहाँ था और आपने हृदय से ढेरों आशीर्वाद दिये थे किन्तु आपके उन्हीं आशीर्वादों ने हमें इतना उद्विग्न कर दिया है, आपने जो भी आशीर्वाद दिया उसमें हमें आपके आत्मिक दर्द का एहसास हुआ। ऐसा प्रतित हुआ जैसे आपके हृदय में दर्द रूपी ज्वालामुखी फटने को तैयार हो……..बाबा आपके आंशुओं ने हमें इनता विचलित कर दिया की मैं उस पल का वर्णन नहीं कर सकता, आपके छेहरे की वो गम्भीरता , शब्दों में छुपे वो दर्द ऐसा महशुस हो रहा था जैसे आपके आंशू सम्पूर्ण जहां को जलमग्न कर देंगे , और जबतक मै आपसे उन गिरते आशुओं का कारण पुछ पाता, आपके हृदयंग स्थिरता पा चूके दर्द का कारण जान व समझ पाता आप मेरे आखों के सामने से ओझल हो चूके थे, मै बदहवास सा इधरउधर देखता रहा किन्तु आप दिखे नही…… बाबा मैं जानना चाहता हूँ आखिर ऐसा क्या घटित हुआ आपके साथ …………जब तक मैं जान न लेता मेरे मन की उद्विग्नता कदापि कम न होगी ।…..अमर बीना रूके एक ही सांस में सब कुछ कह गया।
अमर के बातों को सुन कर बृद्ध के चेहरे की गम्भीरता बढती चली गई ……ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उनके हृदयांग विचारों का महा समर, भीषण द्वन्द प्रारंभ हो चूका हो…….कुछ पल मौन धारण करने के उपरान्त बृद्ध के कंठ से बस इतने ही बोल फूट सके…….
बाबूजी क्या करेंगे जानकर अतीत के गर्भ में जो विलीन हो चूका उन ऐहसासों को कुरेदने से दुख और तकलीफ़ के सीवाय और कुछ नहीं मिलेगा …..जाने दीजिये जो बीत गया उसे दबा ही रहने दीजिये……यह बोलते वक्त उस बृद्ध के भाव संयत व स्थिर थे उसके चेहरे पर किसी भी तरह के भाव दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे
किन्तु अमर के जिद्द के आगे बृद्ध को झुकना ही पड़ा।
अपनी आपबीती सुनाते – सुनाते बृद्ध अपने अतीत में खो से गये।
चम्पापुर जीले का एक छोटा मगर संपन्न गांव “गेरूआ” जहाँ दो मित्र अपने परिवार सहित रहा करते दीनदयाल एवं यशोवर्धन ….दोनों की मित्रता ऐसी कि लेखक के पास उनकी मित्रता का वर्णन कर पाने के लिए प्रयाप्त शब्द ही नहीं।
साथ जीना तो एक बात किन्तु एक दूजे के बीना मरना भी इन्हें गवारा नहीं था ……. एक ही वर्ष दोनो परिणय सूत्र में बधे यशोवर्धन को दुसरा वर्ष आते आते पुत्ररत्न की प्राप्ति हो गई किन्तु इस मामले में दिनदयाल थोड़े से आभाग्यशाली रहे…….उन्हें लगभग पाँच वर्षों के कठिन इंतजार के बाद पिता बनने का गौरव प्राप्त हुआ था ।
इंसान अमीर हो या गरीबी या फिर मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हो पिता बनने की खुशी सबको एक समान ही होती है दीनदयाल बड़े खुश थे आज उनके घर भोज का आयोजन किया गया दोनों ही मित्र यशोवर्धन और दीनदयाल सुबह से ही भोज की तैयारियों में जुटे थे तब जाकर कही समुचे गेरूआ वासीयों का समुचित सत्कार कर पाये।
समय की अपनी गति है वह उसी समान चलता है दोनों बच्चे धीरे- धीरे बड़े होने लगे यशोवर्धन का लड़का बीएसी में था वह इंजीनियरिंग करना चाहता था जबकि दीनदयाल का लड़का हाईस्कूल की तैयारियों में जुटा था दोनों ही बच्चे पढऩे में कुशाग्रबुद्धि थे अपने-अपने विद्यालय के दोनों सिरमौर थे ।
इधर उसी दौरान एक दुखद घटना घटी ….यशोवर्धन शहर से घर आते वक्त एक ट्रक के चपेटे में आगये घटनास्थल पर हीं उन्होंने दम तोड़ दिया, मित्र को खो देने का गम दीनदयाल जैसे टूट से गये किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी मित्र के लड़के को इंजीनियर बनाकर ही दम लिए… अपने आधे खेत उन्होंने मित्र के बच्चे की पढाई में बेच दिये लेकिन मित्र की धर्मपत्नी से कसम लेकर मित्र के बच्चे को इस बात की भनक तक नहीं लगने दी।
इधर दीनदयाल का बेटा भी मेडिकल की तैयारी करने लगा टेस्ट की परीक्षा पास कर वह मेडिकल में सलेक्ट हो गया दीनदयाल ने अपने बेटे की पढाई में बचीखुची जमीन भी बेच दी….. इसी बीच उनकी धर्मपत्नी उन्हें अकेला छोड़ स्वर्ग सिधार गईं ।
दीनदयाल का लड़का आलोक डाक्टरी की परीक्षा पास कर आगे पढाई के लिए लंदन जाने की जिद करने लगा ……अब जमीन तो बची नही थी अतः दीनदयाल ने घर गीरवी रख दिया उससे भी जब पैसे पुरे ना पड़े तो उन्होंने अपनी एक कीडनी बेच दी और भेज दिया लडके को लंदन।
बृद्ध अभी भी बड़े ही शान्त भाव से अपनी कहानी अमर को सुना रहे थे इधर अमर के आंखों से जैसे गंगा यमुना की धारा बह निकली हो ।
अमर ने उनका पैर पकड़ लिया
बृद्ध समझ नहीं पा रहे थे अमर इतना भावविह्वल क्यों हो रहा है
पुछ बैठे……बाबूजी आप के आंखों से ऐ अश्रू की धारा क्यों बहने लगी और आपने मेरा पैर क्यों पकड़ रखा है।
अमर रुधे गले से बोला चाचा जी आपने जिस लडके को इंजीनियरिंग कराया क्या उस लडके को आपका पैर पकड़ने का भी अधिकार नहीं…….
दीनदयाल को जैसे साप सूंघ गया हो यह सुनकर वो हक्केबक्के से रह गये ।
नियति का यह कैसा खेल है जिसके लिए अमर की माँ से कसम ले रखें थे आज अनजाने में खुद ही उस रहस्य से पर्दा उठा बैठे
अमर ने फिर पूछा चाचा जी आलोक अब कहाँ है और आपका यह हाल कैसे?
बेटे वह लंदन में ही किसी गोरी मेम से शादी कर वहीं सेटल हो गया………कुछ दिनों तक फोन करता रहा आने की बाते करता रहा किन्तु ना खुद ही कभी आया और नाही कभी पैसे भेजे ।
जमीन तो सब पहले ही बीक गया था जिस महाजन से हमनें घर गीरवी रखें थे उसने घर पर कब्जा कर हमें दरबदर की ठोकरें खाने को विवश कर दिया…… अब तो शरीर में न जान बची थी और नाही वह पहले वाली जोश , मरना अपने हाथ नहीं अतः भिक्षा ही एक मात्र सहारा था मरता क्या न करता ……..
ये दीनदयाल के अन्तिम शब्द थे, उनके प्राण पखेरू उड़ गये….
उनका शरीर अमर के गोद में हीं लुढक गया।…………।।।।
……।।।। ©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
यह थी एक बेबस पिता की कहानी आपको कैसी लगी अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें।

3 Likes · 2 Comments · 724 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
जिंदगी
जिंदगी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मुख अटल मधुरता, श्रेष्ठ सृजनता, मुदित मधुर मुस्कान।
मुख अटल मधुरता, श्रेष्ठ सृजनता, मुदित मधुर मुस्कान।
रेखा कापसे
जिंदगी में अगर आपको सुकून चाहिए तो दुसरो की बातों को कभी दिल
जिंदगी में अगर आपको सुकून चाहिए तो दुसरो की बातों को कभी दिल
Ranjeet kumar patre
दिल में जो आता है।
दिल में जो आता है।
Taj Mohammad
3028.*पूर्णिका*
3028.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
रामचरितमानस
रामचरितमानस
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
हमारी काबिलियत को वो तय करते हैं,
हमारी काबिलियत को वो तय करते हैं,
Dr. Man Mohan Krishna
मौसम का मिजाज़ अलबेला
मौसम का मिजाज़ अलबेला
Buddha Prakash
धनतेरस के अवसर पर ,
धनतेरस के अवसर पर ,
Yogendra Chaturwedi
जब-जब मेरी क़लम चलती है
जब-जब मेरी क़लम चलती है
Shekhar Chandra Mitra
💐प्रेम कौतुक-544💐
💐प्रेम कौतुक-544💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मोहमाया के जंजाल में फंसकर रह गया है इंसान
मोहमाया के जंजाल में फंसकर रह गया है इंसान
Rekha khichi
जय श्रीकृष्ण -चंद दोहे
जय श्रीकृष्ण -चंद दोहे
Om Prakash Nautiyal
आओ आज तुम्हें मैं सुला दूं
आओ आज तुम्हें मैं सुला दूं
Surinder blackpen
सदविचार
सदविचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
खेतों में हरियाली बसती
खेतों में हरियाली बसती
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
भोर की खामोशियां कुछ कह रही है।
भोर की खामोशियां कुछ कह रही है।
surenderpal vaidya
प्यार की कलियुगी परिभाषा
प्यार की कलियुगी परिभाषा
Mamta Singh Devaa
फितरत
फितरत
Ravi Prakash
वो कुछ इस तरह रिश्ता निभाया करतें हैं
वो कुछ इस तरह रिश्ता निभाया करतें हैं
शिव प्रताप लोधी
प्रणय 8
प्रणय 8
Ankita Patel
जब दूसरो को आगे बड़ता देख
जब दूसरो को आगे बड़ता देख
Jay Dewangan
दोस्ती
दोस्ती
Rajni kapoor
सर्वप्रथम पिया से रँग लगवाउंगी
सर्वप्रथम पिया से रँग लगवाउंगी
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
कुछ खो गया, तो कुछ मिला भी है
कुछ खो गया, तो कुछ मिला भी है
Anil Mishra Prahari
ग़ज़ल
ग़ज़ल
rekha mohan
किसी के दर्द
किसी के दर्द
Dr fauzia Naseem shad
आज कल कुछ लोग काम निकलते ही
आज कल कुछ लोग काम निकलते ही
शेखर सिंह
पढ़ना जरूर
पढ़ना जरूर
पूर्वार्थ
"सूत्र"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...