काहे का अहंकार
काहे का अहंकार…..!!
२१२२, २१२२, २१२२, २१२२
तू बड़ा अरु मैं बड़ा का,चल रही तकरार क्यों है?
है निधन जब सत्य संभव, आज यह व्यवहार क्यों है?
पाल बैठे हो कपट छल, देख मिथ्या शान में तुम।
छोड़ जाओगे सभी कुछ, एक दिन शमशान में तुम।।
आपसी मनभेद क्यों पर, द्वेष उर इकरार क्यों है?
है निधन जब सत्य संभव, आज यह व्यवहार क्यों है?
राज महराजे गये सब, हैं नहीं हिटलर शिकंदर।
जानते सबकुछ मनुज तुम, फिर भला कैसा बवंडर?
ज़िन्दगी यह चार दिन की, सत्य से इन्कार क्यों है?
है निधन जब सत्य संभव, आज यह व्यवहार क्यों है?
आज ईश्वर को नमन कर, जी रहे जिसके सहारे।
खोल पट बंंधन मृषा की, है बधा दृग पर तुम्हारे।
इस धरा पर जो क्षयी है, खाक से यूँ प्यार क्यों है?
है निधन जब सत्य संभव,आज यह व्यवहार क्यों है?
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार