कार्यक्रम का निर्धारित समय (हास्य-व्यंग्य)
* कार्यक्रम का निर्धारित समय (हास्य-व्यंग्य)
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कार्यक्रम का समय लिखना आयोजकों की मजबूरी होती है ,इसलिए लिखा जाता है। वरना आयोजकों को भी पता है कि कार्यक्रम समय से शुरू नहीं होगा और मेहमान भी जानते हैं कि कार्यक्रम देर से शुरू होते हैं ।
पंद्रह मिनट देर को देर नहीं समझा जाता। आधा – पौन घंटा सभी लोग यह मानकर चलते हैं कि कार्यक्रम में देर हो ही जाती है । कई बार देर ज्यादा होती है । कुछ लोग जो सचमुच देर से आते हैं वह इस भ्रम में रहते हैं कि कार्यक्रम समाप्त हो गया या अभी शुरू ही नहीं हुआ ? लोग कुर्सियों पर अनमने भाव से बैठे हुए होते हैं बल्कि कहिए तो ऊँघा-नींदी की अवस्था में पड़े होते हैं। मेहमान किसी एक के कान में फुसफुसाकर पूछता है “क्यों भाई साहब ! प्रोग्राम खत्म हो गया क्या ?” तब उसको पता चलता है कि दो घंटे बाद कार्यक्रम शुरू होगा । डेढ़ घंटा हो चुका है । आधा घंटा और इंतजार किया जाएगा । मेहमान जो निर्धारित समय से डेढ़ घंटे बाद आया है ,दुखी हो जाता है और सोचता है कि वह आधा घंटा पहले क्यों आ टपका ! समय पर आना चाहिए था ।
. कई बार कुछ कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्रों पर लिखा रहता है “समय का विशेष ध्यान रखिए “। यह समझ में नहीं आता कि यह बात आयोजकों ने अपने लिए लिखी है या फिर मेहमानों के लिए लिखी गई है ? कई बार कुछ लोग जो समय के पाबंद होते हैं कार्यक्रमों में निर्धारित समय पर पहुंच जाते हैं । उनके सामने कई तरह की परेशानियाँ आती हैं । कई बार तो जिस भवन में कार्यक्रम होना है उस भवन के मुख्य द्वार पर ही ताला लगा होता है । बेचारा मेहमान यही नहीं समझ पाता कि मैं सही जगह पर आया हूं या कहीं किसी गलत जगह पर तो नहीं आ गया हूं ? आस-पड़ोस वालों से पूछना पड़ता है कि क्या यहीं पर कार्यक्रम था ? कई बार आयोजन स्थल का मुख्य द्वार तो खुला होता है लेकिन बाकी सब कुछ बंद मिलता है । बेचारे मेहमान के सामने खड़े होकर फालतू घूमने के अलावा कोई चारा नहीं होता । कई बार जो लोग निर्धारित समय पर कार्यक्रम में पहुंच जाते हैं तो आयोजक ही उनसे पूछते हैं “भाई साहब ! बड़ी जल्दी आ गए ? अभी तो हम लोग निबट रहे हैं । आप भी निबट कर आइए ।”-इतना कहकर आयोजक तो गुसलखाने में चले जाते हैं और बेचारा मेहमान शर्म से पानी-पानी हो जाता है कि हाय ! उसमें कितना बड़ा पाप कर दिया कि ठीक समय पर किसी आयोजन में उपस्थित हो गया ।
धीरे धीरे सब लोग वास्तविकताओं को समझने लगते हैं और व्यवहारिक बन जाते हैं । मुख्य अतिथि और अध्यक्ष महोदय कभी भी समय पर नहीं आते । नेतागण तथा अधिकारी समय के पाबंद नहीं होते । बेचारा आयोजक उनसे मन्नते करके कार्यक्रम में पधारने के लिए समय लिया हुआ होता है। अतः झक मारकर उनका इंतजार करता है कि कहीं साहब बहादुर नाराज न हो जाएँ। बड़े लोगों को मंच पर बिठाने से कार्यक्रम की शोभा तो बढ़ती है लेकिन वह श्रोताओं को बहुत रुलाते हैं । अनेक बार उनके कार्यक्रम ऐन समय पर रद्द हो जाते हैं । अब निमंत्रण पत्र में जिस मुख्य अतिथि का नाम छपा है ,उसके स्थान पर आप किसी को भी मुख्य अतिथि बना कर बैठा दें लेकिन अटपटापन तो लगा ही रहता है । बहुत से लोग मुख्य अतिथि और अध्यक्ष कार्यक्रम शुरू करते समय उपस्थित अतिथियों में से ही किसी को खोज कर बना देते हैं । ऐसी परिस्थितियों में वह अतिथि फायदे में रहते हैं जो कार्यक्रमों में सबसे पहले पहुंचते हैं, प्रथम पंक्ति में बैठते हैं और जब आयोजकों की निगाह अध्यक्षता कराने के लिए किसी को ढूंढ रही होती है तो सबसे पहले समय पर कार्यक्रम में पहुंचने वाले व्यक्ति को ही लाभ मिल जाता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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