कर दो ना
एकाकीपन को तुम दुल्हन कर दो ना
प्रेम भाव से झंकृत ये मन कर दो ना
तुम ही बंजर मन में फूल खिला सकते
नाम हमारे अपना जीवन कर दो ना
विरह अगन में जलकर झुलस गए सपने
हरा भरा फिर इनका उपवन कर दो ना
कदम कदम पर उलझन घेर रहीं आकर
एक एक कर हल हर उलझन कर दो ना
श्याम बनो तुम ,राधा मैं बन जाती हूँ
इस जीवन को तुम वृंदावन कर दो ना
स्वीकार अर्चना कर लो मेरी मीरा सी
प्रेम ‘अर्चना’ का अब पावन कर दो ना
14-10-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद