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25 Nov 2021 · 3 min read

ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा?(हास्य-व्यंग्य)

ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा?(हास्य-व्यंग्य)
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विधायकों के सच पूछो तो असली मजे तब होते हैं जब विधानसभा के चुनाव के बाद भी किसी को पूरा बहुमत न मिले। दो -दो ,चार -चार विधायकों के इधर से उधर होने पर सरकार बनने और बिगड़ने की जब स्थिति आती है तब विधायकों की पाँचों उंगलियाँ घी में हो जाती हैं। पार्टियों के नेतागण उन्हें एयर कंडीशंड बसों में बिठाकर होटल और रिसॉर्ट में घुमाने के लिए ले जाने में लग जाते हैं। दामादों की तरह विधायकों की खातिरदारी होती है। कीमती हीरे जवाहरातोंकी तरह उनकी निगरानी की जाती है और वे कहीं भाग न जाएं, इसके लिए बाकायदा उन्हें खूँटे से बाँधकर रखा जाता है । यह जानकारी तो नहीं मिली कि जिस कमरे में विधायक को रखा जाता है उसका दरवाजा बाहर से चाबी लगाकर बंद होता है अथवा नहीं होता है , लेकिन विधायकों के मोबाइल रखवा लिए जाते हैं और उन्हें बाहर की दुनिया से संपर्क करने की अनुमति नहीं होती है। मेरी दृष्टि में यह विधायकों की खुले बाजार में बिक्री पर रोक लगाने जैसा कदम है। इसका समर्थन कैसे किया जा सकता है? हर व्यक्ति को अपने आप को बेचने का हक है और ज्यादा से ज्यादा कीमत पर बेचने का हक है।
अब यह कोई पिकनिक का टूर तो है नहीं कि दस विधायक बस में बैठे और पिकनिक मनाने चले गए ।विधायकों को भी पता है कि हमें सौदेबाजी से रोकने के लिए यह सब हलवा- पूरी खिलाई जा रही है। लेकिन वह इसे अपनी बेइज्जती भी नहीं कह सकते। सबको मालूम है कि अगर इन्हें खुला छोड़ा तो यह बिक जाएंगे और पैसे पकड़ लेंगे।
विधायकों का कोई रेट ऐसी हालत में नहीं होता। जितने में सौदा पट जाए, वह कम ही कम है। शुरू में जरूर प्रति- विधायक रकम कम होती होगी ,लेकिन जैसे-जैसे बहुमत के लिए विधायकों को जुटाने की जरूरत बढ़ती जाती है , वैसे वैसे विधायकों की कीमत भी बढ़ती जाती है। आखिर में जब एक-दो विधायक रह जाते होंगे जिनके बारे में यह निश्चित नहीं होता कि वह किसके पाले में जाएंगे , तो निश्चित रूप से उनका सौदा किसी रियासत को जीतने और हारने की तरह होता होगा । हो सकता है कि तराजू के एक पलड़े पर विधायक बैठ जाते हों और दूसरे पर सोना और हीरा जवाहरात रखा जाता हो। कुछ भी हो सकता है।
यह केवल अनुमान की बात है कि सरकार बनने के बाद चालू लोगों की कितनी कमाई होती है। जो लोग सरकार की कार्यप्रणाली के बारे में जानते हैं, उन्हें मालूम है कि छोटी- छोटी चीजों से सौ-पचास करोड़ कमा लिए जाते हैं ।आप देख रहे हैं आजकल कि कोई भी घोटाला हो, हजार करोड़ से कम का नहीं होता बल्कि लाख पचास हजार करोड़ के घोटाले अब मामूली बात हो गई । विधायक के असली रेट का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। ऐसे में विधायक चाहते हैं कि सभी पक्षों से उनकी सौदेबाजी चलती रहे, बल्कि मैं तो सोचता हूँ कि कुछ विधायक तो ऐसे भी होते होंगे जो कहते होंगे कि साहब हम खुलेआम बिकना चाहते हैं,नीलामी में हमारी बोली लगा दी जाए ।
लेकिन जिसके कब्जे में है, वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहेगा । वह कहेगा “बोली से क्या मतलब ! तुम्हारी बोली नहीं लगेगी ।बल्कि हम और तुम आपस में मिलकर सौदा तय करेंगे ।” अब आप जानते हैं कि किसी भी चीज की जब नीलामी होती है और उसकी सार्वजनिक बोली लगती है, तब उस चीज के पैसे ज्यादा मिलते हैं । किसी एक पक्ष से सौदेबाजी करने में रकम थोड़ी ज्यादा तो मिलती है लेकिन वह बेशकीमती नहीं होती। असली रकम तो तब मिलती है जब खुली नीलामी हो ।
” ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा ” – इसी तर्ज पर विधायक जुगाड़ू सरकार के दौर में गाना गाते हैं ,खुश होते हैं और सपरिवार आनंद पूर्वक सो – दो सौ साल तक धरती पर सुख भोगने की कल्पना करते हैं। भगवान की दया से ऐसे मौके थोड़े – थोड़े समय बाद कुछ भाग्यशाली विधायकों को मिलते रहते हैं।
यह सब यद्यपि आदर्शों की दृष्टि से सोचने वाले लोगों को बहुत अप्रिय स्थिति लगती है । लेकिन अब आजकल उनकी कौन सुन रहा है । उनसे यही कहा जाता है कि आपके बस की राजनीति नहीं है। सरकार बनाना, गिराना ,चलाना ,पटाना यह सब जुगाड़ की बातें हैं। इनका आदर्शों से कोई मेल नहीं होता ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997 61 5451

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