Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Sep 2021 · 1 min read

ऐसा कोई शिखर नहीं ..

ऐसा कोई शिखर नहीं ..

ऐसा कोई शिखर नहीं ..
जिसे हम छू नहीं सकते,
ऐसा कोई डगर नहीं..
जिस पर हम बढ़ नहीं सकते।
याद कर उन चित्रांशों को,
जो दुसरों की तकदीर गढ़ा करते थे..
फिर ऐसी क्या बात है _
जिसे हम कर नहीं सकते।
हमारा सोच ही हमारी दिशा है
सोचें तो सही, होगा फिर वही ।
जैसे बचपन की हर जिद,पूरी होती थी।
वैसे ही अपने सपने को,
जिद में तब्दील कर लें यदि,
फिर तो पतवार खुद-ब-खुद चलेगी,
प्रतिकूल हो यदि धाराएँ
फिर भी न रुकेगी ।
ऐसी कोई धाराएँ नहीं..
जिसे हम पार कर नहीं सकते।

ऐसा कोई शिखर नहीं ..
जिसे हम छू नहीं सकते।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -२४ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 615 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from मनोज कर्ण
View all
You may also like:
*मेरी इच्छा*
*मेरी इच्छा*
Dushyant Kumar
जब बहुत कुछ होता है कहने को
जब बहुत कुछ होता है कहने को
पूर्वार्थ
* प्यार की बातें *
* प्यार की बातें *
surenderpal vaidya
एक महिला अपनी उतनी ही बात को आपसे छिपाकर रखती है जितनी की वह
एक महिला अपनी उतनी ही बात को आपसे छिपाकर रखती है जितनी की वह
Rj Anand Prajapati
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
*** मुंह लटकाए क्यों खड़ा है ***
*** मुंह लटकाए क्यों खड़ा है ***
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
पुस्तकें
पुस्तकें
नन्दलाल सुथार "राही"
3112.*पूर्णिका*
3112.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कभी
कभी
Ranjana Verma
इरादा हो अगर पक्का सितारे तोड़ लाएँ हम
इरादा हो अगर पक्का सितारे तोड़ लाएँ हम
आर.एस. 'प्रीतम'
सियासत में
सियासत में
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
पेड़ से इक दरख़ास्त है,
पेड़ से इक दरख़ास्त है,
Aarti sirsat
वर्तमान समय मे धार्मिक पाखण्ड ने भारतीय समाज को पूरी तरह दोह
वर्तमान समय मे धार्मिक पाखण्ड ने भारतीय समाज को पूरी तरह दोह
शेखर सिंह
मुझे मेरी फितरत को बदलना है
मुझे मेरी फितरत को बदलना है
Basant Bhagawan Roy
ମଣିଷ ଠାରୁ ଅଧିକ
ମଣିଷ ଠାରୁ ଅଧିକ
Otteri Selvakumar
कितना रोका था ख़ुद को
कितना रोका था ख़ुद को
हिमांशु Kulshrestha
अब तक मुकम्मल नहीं हो सका आसमां,
अब तक मुकम्मल नहीं हो सका आसमां,
Anil Mishra Prahari
मंजर जो भी देखा था कभी सपनों में हमने
मंजर जो भी देखा था कभी सपनों में हमने
कवि दीपक बवेजा
उनकी आंखो मे बात अलग है
उनकी आंखो मे बात अलग है
Vansh Agarwal
वो इँसा...
वो इँसा...
'अशांत' शेखर
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
Ravi Prakash
जब किसी बज़्म तेरी बात आई ।
जब किसी बज़्म तेरी बात आई ।
Neelam Sharma
जिस्म से रूह को लेने,
जिस्म से रूह को लेने,
Pramila sultan
परेड में पीछे मुड़ बोलते ही,
परेड में पीछे मुड़ बोलते ही,
नेताम आर सी
अंबेडकर के नाम से चिढ़ क्यों?
अंबेडकर के नाम से चिढ़ क्यों?
Shekhar Chandra Mitra
दिखाओ लार मनैं मेळो, ओ मारा प्यारा बालम जी
दिखाओ लार मनैं मेळो, ओ मारा प्यारा बालम जी
gurudeenverma198
रंगीला बचपन
रंगीला बचपन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Tu wakt hai ya koi khab mera
Tu wakt hai ya koi khab mera
Sakshi Tripathi
रोज रात जिन्दगी
रोज रात जिन्दगी
Ragini Kumari
चार दिन की जिंदगी किस किस से कतरा के चलूं ?
चार दिन की जिंदगी किस किस से कतरा के चलूं ?
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
Loading...