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3 Jan 2017 · 1 min read

एक बार झाँक कर देख कभी

एक बार झाँक कर देख कभी
^^^^^^^^^^^^^^^^

कुछ सही गलत का पता नहीं
खुद को ही माना सदा सही
हे मनुज तू मन के दर्पण में
एक बार झाँक कर देख कभी

अनाचार अत्याचारों से
अब तक भी अनजाना है
औरों पर क्या क्या बीता है
क्या अभी तलक , पहचाना है
अपनी खुद की परछाई पर
आघात आज तक हुआ नहीं
तो इसीलिए हर गलती को
बस ठीक ही तूने माना है
ये वहम की पट्टी आँखों से
इक बार हटा कर फेंक सभी
हे मनुज तू मन के दर्पण में
एक बार झाँक कर देख कभी

रे अहंकार के मारे तूने
सबको बहुत सताया है
निर्दोष और मासूमो का
अब तक भी खून बहाया है
उस पर भी आँखों में तेरी
कोई भी पश्चाताप नहीं
क्यूँ मानवता की सारी ही
बातों को आज , भुलाया है
समय के रहते , मन से अपने
देख मिटा दे भेद सभी
हे मनुज तू मन के दर्पण में
एक बार झाँक कर देख कभी

तेरे कर्मों को , देख बहुत
एक याद वो किस्सा आता है
जब कुत्ता हड्डी को लेकर
रख मुँह में , बहुत चबाता है
लेकिन नादान को इतना भी
इस बात का थोड़ा ज्ञान नहीं
होकर वो उस से ही घायल
अपना ही खून बहाता है
अब जाग भी जा इससे पहले
चिड़ियां चुग जाएं खेत सभी
हे मनुज तू मन के दर्पण में
एक बार झाँक कर देख कभी

सुन्दर सिंह
02.01.2017

Language: Hindi
464 Views
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