उद्धव का ह्रदय परिवर्तन
क्यों रे उद्धव तू तो गया था गोकुल,
गोपियों को निर्गुण ब्रह्म का उपदेश देने।
अपना यह हाल क्या बना आया ?
बन ठन कर बड़े अभिमान से गया था,
मुंह पर मिट्टी और कपड़े फाड़ आया ।
तू तो पूरा दीवाना लग रहा है रे !!
सुनकर प्रभु की बातें उद्धव मुस्काया ,
प्रभु ! तेरी बातें तू ही जाने !
तेरे माया में मैं भरमाया ।
गया था उन अशिक्षित गोपियों को समझाने ,
खुद प्रेम के सगुण रूप की शिक्षा ले आया।
प्रभु ! तुम जितने भोले दिखते हो उतने हो नहीं!
तुम कोई जादूगर हो ,छलिया हो ,चतुर हो ,अंजान नही ।
तूने मुझे क्यों भेजा था गोकुल ,मेरी समझ में आया।
तूने मेरा परम ज्ञानी होने का अभिमान तोड़ने को ,
यह चक्र चलाया।
परंतु ! जो कुछ हो मैने हार मान ली ।
सगुण प्रेम की प्रकाष्ठा के समक्ष मैने सर को झुकाया।
बहा आया मैं सारे पोथी पत्र यमुना जी में ,
और तेरे और श्री राधा जी के प्रेम को दिल में बसा आया।
आप के और राधा जी के प्रेम को मेरा शत शत नमन।
मेरा गोकुल की गोपियों के प्रेम को भी शत शत नमन । ???