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29 Nov 2021 · 6 min read

उत्सव

चार दिन से पूजा एक अजीब से अंतर्द्वंद से गुजर रही थी..उसको ना खाने–पीने का होश था और ना ही कहीं बाहर जाने की इच्छा थी….बस पिछ्ले दिनों के घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने आते जा रहे थे.. अचानक उसके माॅं-बाप की एक्सीडेंट में मृत्यु , अचानक पता चलना कि वो १२ करोड़ की संपत्ति की मालकिन हो गई, रिश्तेदारों की लोलुप निगाहों से बच कर नौकरी ढूॅंढना, यकायक उसका साहिबाबाद पहुॅंचना, सब सोचते- सोचते उसको एक वृद्ध का मिलना याद आ गया.. दीपावली के एक हफ्ते पहले ही वो अपने पैतृक घर लखनऊ से यहाॅं आ गई थी। जीवन बदल चुका था उसका..यहाॅं आते ही उसका ध्यान एक वृद्ध व्यक्तित्व की तरफ गया.. उनकी लम्बी लम्बी बूढ़ी उंगलिया सब्जी का झोला उठाये बड़ी आकर्षक लग रही थीं … सब्जी वाले ने ‘कुसूर साहब’ कहा तो उनके नाम से भी वो परिचित हो गई। शांत चित्त के ‘कुसूर साहब’ का व्यक्तित्व उसे अपनी ओर खींच रहा था …कल पूजा हिम्मत करके उनके पास पहुँच ही गई थी। “सर ! लाइये मैं सामान पकड़ लूँ…”उसने सज्जनता से कहा था ।
“नहीं बेटा …इतना काम मुझे करने दो, आदत बनी रहेगी” कह कर वो मुस्करा कर आगे बढ़ गये थे…तभी पूजा को लगा कोई उसका पीछा कर रहा है …उसने पीछे पलट कर देखा तो कोई नहीं था, पर उसका दिल घबरा गया था । साहिबाबाद, वो पहली बार आयी थी … उसको कम किराये पर रहने को घर मिल गया था …यहाँ वो अकेली रहती थी। उसके घर के ठीक सामने नेम प्लेट पर लिखा था रतन पाल ‘कुसूर’ और घर का नाम ‘सादगी’ लिखा था..जाने क्यों वो घर उसे अपनी ओर खींच रहा था।
आज वो वहाँ पहुँच गई …कालबेल बजायी तो उसी बूढ़े इंसान ने दरवाजा खोला …उसे सहसा अपने बाबा याद आ गये …छ्ह फिट का लम्बा शरीर …बूढ़ी पर बड़ी –बड़ी आँखे, मुस्कराता हुआ चेहरा…इतनी सौम्यता कि उसका मन शांति से भर गया …तब तक उन्होने पूछा …”कहिए मोहतरमा कैसे याद किया…?”
आवाज सुनते ही लगा कि सभ्यता एवं संस्कृति से सजा ये इंसान अवश्य ही कोई बहुत बड़ी शख्सियत है !
“जी मैं पूजा …आपके घर के सामने रहने आई हूँ …तीन दिन बाद दीपावली है, सोचा एक बार आपको अपना परिचय दे दूँ….मैं लखनऊ से आई हूँ और यहाँ कृषि विभाग में नौकरी कर रही हूॅं” उसने एक ही बार में सब बता डाला।
“अच्छा! बहुत बहुत स्वागत है आपका ..” कह कर उन्होने अंदर आने के कहा….हर कदम पर पूजा की जिज्ञासा बढ़ रही थी …आश्चर्य की सीमा तब और बढ़ गई जब पूजा ने देखा..उन्होने एक मेज जैसी जगह खोली और उसमें से अनेकों नाश्ते के डिब्बे उठाकर ऊपर रख लिये…।
पूजा चमत्कृत भाव से देखने लगी कि बड़ी सहजता से उन्होने मशीन का स्विच आन किया और काॅफी तैयार की। वो सबकुछ लेकर ड्राइंगरूम में पहुँचे …”आओ बेटी! पहली बार आई हो, काॅफी पीकर जाओ” उन्होंने स्नेह से कहा।
पता नहीं कौन सी भावना थी, जो वो उनपर भरोसा कर बैठी और काॅफी पीने लगी । औपचारिक मुलाकात.. व्यक्तिगत परिचय तक आ पहुँची थी ..उसे बातों-बातों में पता चला कि वो विश्वप्रसिद्ध साहित्यकार के सामने बैठी है । “बस ये आखिरी किताब है मेरी ….ये छप जाए , इसके बाद मैं लिखना और पढ़ना कम करूॅंगा, मेरी आँखों ने साथ छोड़ दिया है” यह कहकर उन्होने एक पैकेट उसे पकड़ा दिया जिसमें “अतीत के दस्तावेज” पुस्तक के फ़ाइनल ड्राफ्ट पेपर थे। मैं उनके व्यक्तित्व से प्रभावित.. अपने घर की तरफ चली आई …हाथ में उनके पेपर (ड्राफ्ट पुस्तक ) सहेजे हुए। पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते रात का एक बज गया…वो किसी और दुनिया में खो गई थी.. और जैसे ही पुस्तक खत्म हुई, वो रो पड़ी …इतना अच्छा कोई कैसे लिख सकता है ? वो मन ही मन सोचने लगी..नींद उसकी ऑंखों से भाग चुकी थी कि अचानक सामने वाले घर से कुछ शोर सा सुनाई दिया। रात के दो बजे …. उसके लिए ‘साहिबाबाद’ एकदम अंजान शहर..मन के भय को परे कर उसने अपनी खिड़की से बाहर झाँका ..बाहर का दृश्य देखकर वो ठगी सी रह गई …।
एक गाड़ी में उस घर से किताबे रखी जा रही थीं । डंडे की मूठ को कसकर पकड़े ‘कुसूर साहब’ खड़े थे । पूजा हिम्मत करके बाहर निकली …उनके पास पहुँच गई…”सर इतनी रात को ये सब क्या ..”कहकर वो रूक गई।
“अरे बेटा! मैं अपनी बची हुई किताबें और डायरियाँ कबाड़ी वाले को दे रहा हूँ.. कोई ले कर पढ़ता नहीं है आजकल….मुझे पिछ्ले हफ्ते ब्रेन-ट्यूमर की शिकायत हुई है । मैं भूलने लगा हूँ….तो जीते जी ये सब हटा दूँ, पता नहीं कब स्थिति बिगड़ जाए…” उन्होने बहुत प्यार से बताया ….
“अरे! सहसा वो विश्वास नहीं कर पाई …”रूको भाई” उसने गाड़ी वाले से कहा “ये सब किताबें सामने वाले घर में पहुँचा दो .. चलो …” उसने आदेशात्मक लहजे में कहा…’कुसूर साहब’ ने भीगी आँखो से उसे देखा….उसने धीमे से उनसे पूछा “आपके घर में कोई है कि नहीं सर”?
“दो बेटे हैं जर्मनी में …. उन्होंने ही मुझसे फोन पर कहा है कि मैं ये घर बेचकर वृद्धाश्रम चला जाऊं, जिससे मेरी देखभाल हो सके….उनका वकील आज आ जाएगा …पेपर साइन कराने ….अगले मंगलवार तक वृद्धाश्रम शिफ्ट हो जाऊगां … बुद्ध को मेरा आपरेशन भी होना है”…उन्होने धीमे–धीमे स्वरों में बताया
“वकील ? ? क्यों कुसूर साहब ? अभी तो आप जीवित हैं, अपने घर में रहिए …बेचने की क्या जल्दी है.. और बच्चे घर नहीं आ रहे क्या ? आपका आपरेशन है, आप अकेले कैसे मैनेज करेंगे ?
उन्होने दोनो हाथ जोड़े और बोले “सब वो ऊपर वाला करेगा …”
“अच्छा! अब आप सो जाइये जाकर .. ये पुस्तकें वगैरह मेरे पास रहेंगी” कहकर वो गाड़ी वाले को अपने घर की तरफ लेकर चल दी …।
आज ‘कुसूर साहब’ के घर वकील को आना था, पूजा भी उनके घर पहुँच गई…अपने ऑंगन में पारिजात के पेड़ पर हाथ रखे वो बहुत गमगीन लग रहे थे …वो भी उनके पास खड़ी हो गई ….”इससे आपको बहुत स्नेह है, मुझे लगता है” उसने कहा….
“हाँ बेटा! ये मेरी पत्नी पूनम की निशानी है.. उसने इसे हमारी शादी की पहली वर्षगांठ पर लगाया था ….और पिछ्ले महीने यहीं उसकी मृत्यु हुई थी ….” कहते-कहते उनकी आँखों से आँसू बह आये …. उसने उनके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा… “आप ये घर क्यों बेच रहे हैं” ?
“बच्चों की इच्छा है बेटा…दस करोड़ का घर है, कोई कब्जा ना कर ले, यही चिंता है उनको …”
ओह! सुनते ही उसका मन नफरत से भर उठा….
“अच्छा! तो उनको खाली पैसा पहुँचवा देंगे आप ….?”
“हाँ बेटा” कहकर उन्होने काँपते हाथों से वृद्धाश्रम की परची दिखाई….एक लाख रूपये जमा हो चुके थे, तब तक वकील आ गया …
उसे देखकर चौक पड़ा …
“आप ?”
“मैं ये घर खरीदना चाहती हूँ वकील साहब…” उसने किनारे जाकर उससे कहा…..
“पर ये दस करोड़ का होगा करीब-करीब….” उसने पूजा को दयनीय दृष्टि से देखते हुए कहा।
“हाँ..मैं चेक दूॅंगी… …पहले आप ये शुरूआती रकम लीजिए और रजिस्ट्री की तैयारी करिए ..”कहकर पूजा ने उसे चेक पकड़ा दी …..
वो थोड़ी अजीब सी नजरों से उसे देखता हुआ चला गया …
“कुसूर साहब अपनी रिपोर्टस दिखाइये मुझे ..पूजा ने कमरे में पहुंच कर कहा …
रिपोर्ट के लिफाफे पर फोन नं. था … उसने फोन किया …तो क्रास स्कैनिंग, साहिबाबाद का फोन मिला। उसे बात करते ही पता लग गया कि फर्जी ब्रेन-ट्यूमर बताकर आपरेशन कराना था …जिससे ‘कुसूर साहब’ मृतप्राय हो जाएं और जल्दी ही प्राण त्याग दें ….
उफ!
वो फूट-फूट कर रो पड़ी …इतना घिनौना षडयंत्र …वो असहज हो गई…तब तक उसने देखा ‘कुसूर साहब’ काॅफी लिये उसके सामने खड़े थे ….”मुझे माफ करो बेटी! कोई रिश्ता न होते हुए भी मेरे कारण तुम्हें रोना पड़ रहा ..”
“अरे नहीं कुसूर साहब ….”उसने अपने को संयत करते हुए कहा …
“कल मैं आप के साथ दीवाली की पूजा करूंगी” कहकर वो बाहर आ गई … वो ‘कुसूर साहब’ को अपने घर ले आई … उनके बच्चों को चेक भेज दी, उसने ‘क़ुसूर साहब’ से इस बात को छुपाये रखा कि ये घर वो ही खरीद रही है….
दूसरे दिन …उनकी पुस्तक छ्प चुकी थी … दीवाली के शुभ अवसर पर वो ‘क़ुसूर साहब’ को उनके घर लेकर पहुंची .. उनका घर सजा हुआ बहुत सुंदर लग रहा था। उसने अपनी प्रापर्टी से उनका घर खरीद लिया था …”मुझ अनाथ को रिश्तों की ख्वाहिश थी, आज कुसूर साहब में पूरा परिवार मिल गया ….” उसने मन ही मन सोचा।
कल ही उसने उनकी डायरी से फोन नं. लेकर उनके मित्रों को आमंत्रित कर दिया था … आज दीवाली की पूजा करके, शेरवानी में सजे ‘कुसूर साहब’ बहुत अच्छे लग रहे थे ..पूरा घर रोशनी से जगमगा उठा था ..लक्ष्मी -पूजा के पश्चात वो उनको घर के पीछे वाले कमरें में ले गयी ….”अतीत के दस्तावेज” पोस्टर झिलमिला रहा था ..पारिजात के पेड़ के पास सिंहासन जैसी कुर्सी पर ‘कुसूर साहब’ को बैठाया गया। पूजा ने उनके मित्रों को उनसे मिलवाते हुए उनकी पुस्तक उनके हाथों में रख दी ….”ये घर आपका ही है कुसूर साहब”, अब इस घर में…मैं और आप रहेंगे” उसने उनके कानों में फुसफुसाकर कहा ..
उन्होने भावविह्वल होकर उसको गले से लगा लिया …तब तक उनके मित्रों ने उन्हेें घेर लिया और शुभकामनाएं देने लगे … दीवाली के इस नव-उत्सव पर पूजा भरी-भरी आँखो से अपने सामने खड़े “अतीत के दस्तावेज” को देखने लगी ।

स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
‘रश्मि लहर’
लखनऊ

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