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30 Aug 2021 · 1 min read

आहट

शहर के कोलाहल से दूर
घनी आबादी से हट के
नीरवता के बीच
रास्ता जो जाता है
मेरे गांव की ओर
गुजरता हूँ जब वहाँ से
सनसनाहट की आवाज आती
चीर कर मुझमें प्रवेश कर जाती है
सोचने को मजबूर मैं
कोलाहल कैसा है
एक दबी सी
आहट छिपी है कोलाहल में
रूदन भरी कसक है
बन करता जा देखूँ
लेकिन अनजान भय समेट
लेता है आगोश में
चल पड़ता हूँ मैं
राह पर अपनी मैं

चला जा रहा मैं
एकाएक वायु वेग से
आ बाँध लिया मुझे किसी ने
बाहुपाश में
मैं बँधता गया
एक आत्म निवेदन था वाणी में
पता नही कोन सी शक्ति
मुझे खींचती जा रही थी
एक मोहिनी थी रूप लावण्य में
जिसके आगे पराधीन हो
नतमस्तक होता जा रहा था
अन्त में दासता
स्वीकार कर उसकी
चल दिया पीछे पीछे

जब कभी सोचता हूँ इस बारे में
तो वहीं पदचाप
वही रूदन
वही निवेदन ला देता
एक मुस्कराहट मुख पर
जो खौफ भरा
डर से भरा होता है
एक विस्मय से
बैचेनी के साथ वही मोहिनी
आ बैठती है मेरे बगल में
सटके
फिर एक हड़बडाहट के साथ
जाग जाता हूँ
मात्र एक सपना समझ के
चुप रह जाता हूँ

Language: Hindi
79 Likes · 586 Views
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