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27 Nov 2021 · 1 min read

आईने की सदा …

ऐ खुदा ! आज में तेरी अदालत में हाज़िर हूँ

कहता हूँ तुझसे हाँ ! मैं तेरा कुसूरवार हूँ ,

तुम्हें मुझसे ज़रूर होंगी शिकायतें बेशुमार ,

मगर इंसान की पहुँच से मैं बहुत दूर हूँ.

तुमने मुझे भेजा आबरू–ऐ-हकीक़त वास्ते ,

वो तो न कर सका ,मगर फिर भी जिंदा हूँ.

खड़ा रहता हूँ कमरे में सामान की मानिंद ,

देखते तो हैं लोग,क्योंकि मैं उनकी आदत हूँ .

मैं तो बेजुबान हूँ इनकेलिए मगर ऐ खुदा !

बुझी हुई औ अश्केनम आँखों का तसव्वुर हूँ,

मेरे चेहरे को देख ,मेरे रूप को संवार ऐ आईने !

दिल ना दिखाना कभी क्योंकि मैं बहुत मगरूर हूँ .

तोड़ दूंगा तुझे टुकड़े कर दूंगा तेरे एक पल में,

जबसे कहा उसने,शर्म से खुद ही हो गया चूर मैं .

दम घुटा जाता है मेरा इस बाज़ार-ऐ-दुनिया में ,

रंग बदलती गिरगिटों के बीच दारा हुआ सा में हूँ.

2 Likes · 2 Comments · 408 Views
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