अव्यवस्थित शासन
कमोबेश कसमकश में कोई मेहनत काम नहीं आती,
अंधे बाँटते है बाकली, ताजुब अपनों को खोज,उन्हीं को मिलती.
बात इतिहास से शुरू होती हैं, बेरोजगारी, भुखमरी पर समाप्त हो जाती है.
घेर लेती है आपदा, संपदा नष्ट हो जाती हैं,
जुटने लगता है समर्थन खुद पे खुद,
परवाने की जान चली जाती है.
सत्ता के गलियारों में, ये लहूलुहान मृतक शरीर शहीदी नहीं होती.