अब बस भी कर … ( गजल)
अब बस भी कर दरिंदे! ,कुछ तो अपनी हद कर ,
इंसान बनकर गुनाहों से अपनी तू तौबा कर ।
रो रहा है तेरा जमीर ज़ार -ज़ार ,ज़रा देख !
हैवानियत की राह पर चला तू इसे कुचल कर ।
हवस की भूख ने तुझे इस कदर दरिंदा बनाया ,
वहशी भी हैरान और शर्मसार है तुझे देखकर ।
ईमान से तू गिर चुका है इंसान तू रहा नहीं ,
अरे कूलनाशक ! कुछ तो शर्म औ लिहाज कर ।
जिस नापाक जिस्म पर तू गुमान कर बैठा है,
अरे रोएगा,तड़पेगा इसका बुरा अंजाम देख कर ।
औरत को तू इंसान नहीं खिलौना समझता है ,
कभी कयामत बनकर टूटेंगी इसकी आहें तुझपर ।
तू भूल गया इस दुनिया से बड़ी है खुदा की अदालत ,
जो तुझे जलाएगा जिंदा दोज़ख में तेरी बोटी-बोटी कर ।