तुम्हारे जाने के बाद कान्हा !!
ब्रज के नर नारी ही नहीं ,
प्रकृति भी तूझसे प्रेम करती थी ।
कालिंदी और कदम्ब की छैयां ,
तुझे सदैव पुकारा करती थी ।
खग ,मृग ,और समस्त प्राणियों ,
की स्मृति तुझमें ही रहती थी ।
वन वन भटका करती थी गैयां ,
दाना पानी छोड़ रंभाती रहती थी ।
पवन ने लहराना छोड़ दिया,
फूलों ने महकना छोड़ दिया,
लताएं तेरे चरणों से लिपटने को ,
तरसा करती थी ।
गोवर्धन पर्वत जिसे तूने उंगली पर उठाया था,
उसकी दृष्टि भी तुझे ढूंढती थी ।
तुझे क्या बताएं कान्हा ! जबसे तू मथुरा गया,
तेरी बंसी की धुन किसी चर अचर ने नहीं सुनी थी ।
तेरी याद में रोती थी सारी प्रकृति ।
और कभी ब्रज वासियों की हमदर्द बनती थी ।
सबके तुम में प्राण जो बसते थे,
तुम क्या गए यह सब निष्प्राण सी दिखती थी ।
यह धरा ,यह अंबर ,सब मिलके अश्रु बहाते थे।
सब मृत प्राय हो गए ,तुम्हारे जाने के बाद ।
तुम्हारे जाने के बाद कान्हा !
तुम्हारे जाने के बाद …!