Ghazal
आंखों में सुरमगी लिए बोझिल सा नूर है
वो मुस्कुरा रहे हैं कोई ग़म ज़ुरूर है
कुछ दिल की चाहतों का पता ख़ामशी भी है
हालांकि उनको दिल पर अपने उबूर है
हां में वो ना कहे हैं ना में वो हां किये
दावा है बोलने का उनको शऊर है
महके हुए वो ख़ुद हैं महका हुआ समा
नामा हुआ फुलां ये नामी उतूर है
पहले ये चाहा हम को हो जाए कुछ ख़बर
झुठला दिया नहीं ये हर गिज़ फ़ितूर है
आंसू रवा हैं उनकी आंखों से शाह जी
जाना मगर ये हम ने आबे तहूर है
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी