बेटिय़ों को भी माँ के कोख में बेफिक्र पलने दो।
भ्रूण हत्या : कविता ( चतुष्पदी ) मत करो इस धरती को बंजर तुम, तनिक हरीतमा इसके अंचल में रहने दो, बेटे बेटी का अनुपात ना बिगड़े कभी, नियति को...
"बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017