बेटियाँ
"नींव है परिवार,आँगन,जोड़ती है बेटियां, पर कही अपने ही हक़ को जूझती है बेटियां। शोर सन्नाटे का,पत्थर पर उभरते नक्श सी, पंख लेकर आसमां को,चीरती है बेटियां। अंश,वारिस की लड़ाई...
"बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · ग़ज़ल/गीतिका · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017