आ फिर लौट चलें
जय प्रकाश श्रीवास्तव
अपनी पूज्यनीय स्व.माताजी को समर्पित इस पुस्तक में मैंने मानवीय संवेदना, समाज, ब्यवहार और आधुनिक दौर के बदलते सामाजिक परिवेश को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है जो आपको कभी ब्यथित करेगा और कभी प्रेम पथिक बना कर जीवन...