वर्तमान समाज की बदलती सकारात्मक सोच पर एक समाजसेवी लेखिका का बेहद रोचक उपन्यास "मालव"। चालीस पार की उम्र में किसी विवाहित स्त्री-पुरुष की मित्रता को सामान्य भाव से देखना... Read more
वर्तमान समाज की बदलती सकारात्मक सोच पर एक समाजसेवी लेखिका का बेहद रोचक उपन्यास “मालव”।
चालीस पार की उम्र में किसी विवाहित स्त्री-पुरुष की मित्रता को सामान्य भाव से देखना ये साबित करता है कि, स्त्री” अब बदल रही है ओर समाज भी इस आजादी के मायने समझने लगा है।
महिलाओं की मानसिक आजादी उन्हें मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने में सहायक साबित हो रही है।
एक आदर्श समाज की कल्पना को साकार बनाने के लिए स्त्री-पुरूष के बीच के भेदभाव को पूर्ण रूप से खत्म करके हम एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को हकीकत में बदलने के लिए तैयार हैं।