मृगतृष्णा अर्थात दूर से सत्य प्रतीत होती जलधारा जिसको पाने की चाह में पिपासु निरंतर दौड़-दौड़कर विकल हो जाता है। हाथ आती है तो बस विफलता, हताशा, उद्विग्नता । जीवन... Read more
मृगतृष्णा अर्थात दूर से सत्य प्रतीत होती जलधारा जिसको पाने की चाह में पिपासु निरंतर दौड़-दौड़कर विकल हो जाता है। हाथ आती है तो बस विफलता, हताशा, उद्विग्नता । जीवन भी कुछ ऐसा ही है जहाँ हर पड़ाव में खुशियाँ दूर से प्रतीत होती हैं किन्तु हाथ हमेशा खाली ही रह जाते हैं। बार- बार ऐसे ही खाली रह जाते हाथों की टीस का संकलन ही है मृगतृष्णा ।
यह संकलन आपको मन के उन गलियारों में ले जाएगा जहाँ आप ने कई टीस दबा कर रखी हैं। आपकी हमजोली बनकर यह उन टीसों को साथ में बाँटेगा और प्रयास करेगा दिखाने का, सबके ही खाली हाथ। शा यद ये सब खाली हाथ देखकर अन्तर्मन में कुछ बोध जग सका तो मेरा प्रयास सफल हो जाएगा।
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