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About the book
मृगतृष्णा अर्थात दूर से सत्य प्रतीत होती जलधारा जिसको पाने की चाह में पिपासु निरंतर दौड़-दौड़कर विकल हो जाता है। हाथ आती है तो बस विफलता, हताशा, उद्विग्नता । जीवन... Read more
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