मुझे नहीं मालूम कि कविता बैठकर कैसे लिखी जाती है, मैंने सदैव ही चलते-चलते कविताएँ लिखीं। जहाँ जैसे भाव दिखे, हृदय के तारों से टकराए और कविता की परिणिति स्वतः... Read more
मुझे नहीं मालूम कि कविता बैठकर कैसे लिखी जाती है, मैंने सदैव ही चलते-चलते कविताएँ लिखीं। जहाँ जैसे भाव दिखे, हृदय के तारों से टकराए और कविता की परिणिति स्वतः होती गई। प्रसन्नता में, दुख में, पीड़ा के क्षणों में, प्रार्थना में, प्रेम में, प्रत्येक स्थान पर जहाँ-जहाँ इस सृष्टि पर भाव है, वहाँ-वहाँ उन भावों के सरोवर में मेरे कविता रूपी कमल स्वतः खिल जाते हैं।
मेरी कविताएं मेरे हृदय की अंतर्ध्वनि हैं, मेरे मन भावों का प्रकट नाद है।
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