मनुष्य का जीवन किसी नदी के समान सतत् प्रवाह में रहता है। कल-कल बहती हुई नदी के प्रवाह में एक अव्यक्त सा संगीत होता है। गति होती है। गति के... Read more
मनुष्य का जीवन किसी नदी के समान सतत् प्रवाह में रहता है। कल-कल बहती हुई नदी के प्रवाह में एक अव्यक्त सा संगीत होता है। गति होती है। गति के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं। वह शून्य है। प्राणहीन है। किसी न किसी कार्य से जुड़े रहना अथवा किसी गतिविधि में संलग्न रहना मनुष्य के जीवन का
वास्तविक ध्येय है।
मेरा नया काव्य-संग्रह “कंचनी श्रवनिका” जीवन
से जुड़ी विभिन्न वस्तुओं एवं गतिविधियों का
काव्यात्मक चित्रण है जो साहित्य-प्रेमी पाठकों को आकर्षित कर अवश्य ही उनका स्नेह प्राप्त करने में सफल होगा।
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