है लक्ष्य पार्थ सा तुम में, निस्वार्थ कर्म विटप सा तुम में, चेहरे पर तेज तपस्वी का, पर्वत सी तुम में स्थिरता, चाहत है चातक सी तुम में, है भरी... Read more
है लक्ष्य पार्थ सा तुम में,
निस्वार्थ कर्म विटप सा तुम में,
चेहरे पर तेज तपस्वी का,
पर्वत सी तुम में स्थिरता,
चाहत है चातक सी तुम में,
है भरी भावों में स्निग्धता।
‘पुंडरीकाक्ष’
‘पुंडरीकाक्ष’ की रचनाएँ गागर में सागर हैं। भाव की पोषक हैं। एक ओर जहाँ प्रकृति की सहचरी हैं वहीं इसकी नारी अबला नहीं सबला है। सुनीति की समर्थक हैं। पथ प्रदर्शक और जागरूकता की प्रतीक हैं। मुझे आशा है कि इसकी कविताएँ आपको विभिन्न रसानुभूति से आनन्दित करेंगी। एकबार अवश्य पढ़िए और अन्य को भी पढ़ने के लिए प्रेरित कीजिए।
धन्यवाद!
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