An eyeopening revolutionary poem )क्यूँ दी कुर्बानी?)
An eyeopening poem(क्यूँ दी कुर्बानी) on the 75th Revolutionary Republic Day by Komal Agrawal
(सुन लो क्या कहती है भारत माँ की वाणी
भर देगी जो हम सब की सुखी आँख में पानी
क्यूँ दी कुर्बानी? क्यूँ दी कुर्बानी?
संबंधों की मर्यादा हम तोड़ चुके हैं, मात पिता को राम भरोसे छोड़ चुके हैं।।
भाई बहन और मित्रों का वह स्नेह कहाँ है? social media पर followers जोड़ चुके हैं।
भूल के अब परिवार सभी को virtual family बनानी, क्यूँ दी कुर्बानी? क्यूँ दी कुर्बानी?
विश्व एक परिवार है जिसने हमें सिखाया,मानवता ही एक धर्म है ये बतलाया,
भूल चुके हैं आज सभी वो धर्म सनातन,राम कृष्ण शिव को आरोपों में उलझाया।
पहले हरी ने व्यथा हरी अब हरी की व्यथा हरानी, क्यूं दी कुर्बानी? क्यूं दी कुर्बानी ?
आओ भारत को एक नई मिसाल बनाए, make in india का सपना सच कर दिखलाये,।
c a, c s , m b a , पढ़ने से पहले, आओ खुद को एक बेहतर इंसान बनाएं।
संस्कारों की पावन गंगा पुनः धरा पर लयनी।
हाँ , इसीलिए तो दी थी कुर्बानी।)