स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडेय निर्झर की पुस्तक 'सुरसरि गंगे
ये ज़िंदगी डराती है, डरते नहीं हैं...
बनना है बेहतर तो सब कुछ झेलना पड़ेगा
■ तस्वीर काल्पनिक, शेर सच्चा।
कैमरे से चेहरे का छवि (image) बनाने मे,
उतर गए निगाह से वे लोग भी पुराने
मुझ पे लफ़्ज़ों का जाल मत फेंको
वयोवृद्ध कवि और उनका फेसबुक पर अबतक संभलता नाड़ा / मुसाफिर बैठा
त्रिलोक सिंह ठकुरेला के कुण्डलिया छंद
4. *वक़्त गुजरता जाता है*
इस ज़िंदगी में जो जरा आगे निकल गए
- गुमनाम महबूबा मेरी गुमनाम है उसका पता -