Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jan 2023 · 23 min read

151…. सहयात्री (राधेश्यामी छंद)

151…. सहयात्री (राधेश्यामी छंद)

यात्रा होती बहुत सुहानी, जब सहयात्री हो मनभावन।
मंजिल बहुत निकट लगती है, दूरी लगती दिव्य सुहावन ।

मन के लायक साथी संगी, लगते उत्तम दिव्यानंदी।
प्रेमपूर्ण बातें करते हैं,जैसे शिवशंकर का नंदी।

पुष्प बरसता रहता पथ पर, मन में सुख हरियाली छाये।
है सुकाल यह जीवन भर का, खुशदिल तन वन नित हर्षाये।

जीवन का यह स्वर्णिम अवसर, आता प्रिय स्वागत करता है।
निर्भय यात्री हमराही बन, कदम मिलाकर नित चलता है।

यौवन की यह सहज वापसी, अंतस में सद्भाव सुहाना।
सुंदरता दिखती चहुंओरा, चार धाम का ताना बाना।

तरह तरह की बातें कह सुन, भ्रमण मस्त अतिशय लगता है।
अंग अंग रोमांचित होता, उत्साहित रग रग जगता है।

पग बढ़ता है सदा वेगवत, कटती रहती राह निरंतर।
दूरी लगती सहज निरर्थक, होता खत्म देर का अंतर।

यह जीवन पथ परम सरल है, नित्य सुगम अति प्रिय मतवाला।
यदि सहयात्री तरल धवल हो, निर्मल पावन मृदुमय प्याला।

152….. बाल दिवस
(मनहरण घनक्षरी)

बाल रूप दिव्य रूप,
भव्य नव्य सौम्य भूप,
पारिजात पुष्प जान,
बाल को सराहिये।

स्नेह देह श्रेय गेय,
शोभनीय सत्य प्रेय,
प्रेमपूर्ण बात चीत,
देख शांति पाइये।

चाल ढाल द्वंद्वमुक्त,
बोल चाल हर्षयुक्त,
संपदा विशाल अस्ति,
बाल को बसाइये।

खेल कूद मस्त व्यस्त,
बाप मात प्यार हस्त,
जिंदगी सुहान मान,
बाल को मनाइये।

लाभ हानि देश पार,
लोक से अपार प्यार,
हंस वृत्ति साफ पाक,
बाल गीत गाइये।

बाल मीत संग जाग,
देखना प्रसन्न राग,
छद्म से परे सदैव,
देखते लुभायिये।

बाल में समाज देख,
है वही असीम रेख,
हो मनोविनोद नित्य
बाल सुख पाइये।

153….. बरवै छंद

जब से मैंने देखा, मधुर कमाल।
मन मस्त हुआ तब से, मालामाल।।

रूप सलोना मोहक, मन हर्षाय।
छवि अति कोमल भव्या, बहुत लुभाय।

तेरे नयन सितारों, में है प्यार।
पावन वदन छवीला, सुखद बहार।

मस्त मनोहर रूपक, प्रिय उपमान।
कविता छंद ललित लय, गेय विधान।

प्रिय हर लेता दिल को, वह अनमोल।
गूंजत ध्वनि अंतस में, मादक बोल।

मत छोड़ कहीं जाना, हे रस खान।
अविरल तेरा होगा, अति सम्मान।

154. …गगनांगना छंद
16/9

भाव बहुत गंभीर निराला,चमकता तारा।
प्रेम प्रधान सहज सुखदाता, अधिकतम प्यारा।
देख देख मन हर्षित होता, बड़ा मनमोहक।
आंखों में बसा हुआ कब से, हृदय का पोषक।
प्रेमिल ऊर्जा का स्रोत बना, सदा शीतल सा।
दिल में आ कर सदा गमकता, बना गंधी सा।
जब से जीवन में आया है, अजनबी न्यारा।
आकाश उतर आया तब से, मिला जग सारा।
सब कुछ तुमसे ही मेरा है, न टूटे आशा।
यह जीव अलौकिक आज बना, शुभद परिभाषा।

155….. मनहरण घनाक्षरी

शोभनीय है मनुज,
जो बहुत सशक्त है,
किंतु सह रहा सदा,
दानवीर कर्ण सा।

भावना का सिंधु वह,
शिव स्वरूप त्याग है,
छेड़ता नहीं किसी को,
श्वेत सभ्य वर्ण सा।

भोग से विरक्त धीर,
लोभ मुक्त शांत हीर,
है महा क्षमा सुशील,
प्रीति रीति गीतिका।

सौम्य नम्र ध्येय ध्यान,
प्रेममग्न ज्ञानवान,
शीत मूर्ति हंस शान,
स्नेहपूर्ण नीतिका।

शिष्ट राग गेय काव्य,
संत छंद भव्य राज्य,
शब्द मोहनीय नव्य,
ग्रंथ राम क्षम्यता।

अंग अंग जोश प्राण,
मानवीय मूल्य बाण,
धर्मरत रथी स्वयं,
क्षमा दान सभ्यता।

156…. अनुपम छवि (राधेश्यामी छंद)

देख देख कर मन मयूर यह, हर पल नृत्य किया करता है।
लगता जैसे हरदम सावन, रिमझिम रिमझिम जल गिरता है।
बूंद बूंद गिरता जब सिर पर, अंग अंग में रस भरता है।
मंद मंद मुस्कान विखेरत, गगन चूमता उर चलता है।

दृश्य सुहाना अति मस्ताना, अनुपम छटा निराली है।
लगता जैसे किसी रूपसी, की मस्ती की प्याली है।
दिल में धड़कन फिर भी मोहक, मधु मधुरिम चाल छबीली है।
दिव्य अलौकिक पावन प्रतिमा, प्रकृति निराली अति नीली है।

मोहित तन मन चाह रहा है, परी उतर कर आंगन आए।
बहलाए फुसलाए दिल को, घर द्वारे यह हरदम छाए।
प्रणय गीत का हो आयोजन, घोर घने जंगल में मंगल।
भागे जीवन का अंधियारा, शुक्ल रूप का जय जयमंगल।

157…. किरीट सवैया

देखत देखत मस्त हुआ मन, मौन खड़ा दिल को समझावत।
छोड़ चलो सब राज दुआर, रहो बस कानन प्यार सजावत।
बोल नहीं मत डोल कभी, रहना उर अंतस प्रीति जगावत।
सोच नही बस नेह रखो, अब डूब समुद्र सुधा रस चाखत।

द्वार खड़े रहना लिखना, अति मोहक गीत कवित्त सुनावत।
पाठक हो पढ़ते रहते, चलना सबका दिल आंगन छावत।
नेति कहा करते बढ़ना , क्रमशः सबको मधुसार पिलावत।
ब्रह्म सहोदर प्रेम सदैव, चले नयना रस पी सुख पावत।

158…. कलम का जादू

प्रिय दृश्य मनोहर, दिव्य धरोहर, चिंतन का आधार।
मन शीघ्र मचलता, भाव उमड़ता, उठता सुखद विचार।
दिल पागल होता, कभी न सोता, लिखना चाहे लेख।
दीवाना हो कर, लेखक बन कर, खींचे मोहक रेख।

चुन चुन कर खोजे, शब्द सरोजे, कर में कलम नचाय।
जादू चलता है, उर खिलता है, चमके मंजर आय।
कहती कवि वाणी, सुनते प्राणी, सब पढ़ते मुंह बाय।
जादूगर चिंतक, सुंदर शोधक, दिखता शीश झुकाय।

प्रिय कलमकार का,यह कमाल है, चूमत है आकाश।
चहुंओर विचरता, यात्रा करता, जग को देत प्रकाश।
नित सकल धरा पर, नीचे ऊपर, जंगल मंगल होत।
नभ से पाताली, रस की प्याली, सृष्टि समूची स्रोत।

हर कलम सिपाही, पावन राही, दिखलाता है खेल।
ट्रैफिक इंस्पेक्टर, सतत हमसफर, फिर भी स्वयं अकेल।
झोली में ले कर, घूम घूम कर, भिन्न भिन्न में मेल।
छा जाता जग में, घुंघरू पग में, लेता सब कुछ झेल ।

नर से नारायण, कर पारायण, लिख पढ़ कर सब देत।
कुछ नहीं मांगता, उत्तम दाता, सिर्फ हृदय को लेत।
जगती को रचता, निर्मल करता, उपजाऊ हर खेत।
शिव साधु बनाता, सबसे नाता, भूत भगाता प्रेत।

159…. स्वर्णमुखी छंद (सामेट)

नित कलम चलाओ।
मन में हो चिंतन।
भावों का कीर्तन।
प्रिय शब्द सजाओ।

रच पावन पुस्तक।
अति मधुर भाव हो।
नित शुचिर चाव हो
जग हो नतमस्तक।

यह जगती झूमे।
मस्ती में पाठक।
नाचे बन गायक।
धरती पर घूमे।

स्वर्गिक परिवर्तन।
जागें मनमोहन।।

160… सजावट

जहां प्रिय का ठिकाना है, मुझे उसको सजाना है।
जहां संवाद मधुरिम है, वहीं खुद को बसाना है।
जहां प्यारा हृदय रहता, वहीं लगता सुहाना है।
बजे वंशी मुरारी की, उसी घट नित्य जाना है।

सजावट हो सदा मन की, बनावट से बचा करना।
संभालो आप को हरदम, हमेशा त्यागरत रहना ।
कभी मत भोग लत पालो, नहीं इच्छा बहुत रखना ।
मिले जितना सहज जानो, सरल मृदु नीर बन बहना।

161…. पथिक

पथिक चला उमंग में, उजास को विखेरता।
सदा बना सुधीर वीर, स्नेह को उकेरता।
नहीं कभी उदास भाव, शांति गीत टेरता।
अनीति को उखाड़ फेंक, नीति माल फेरता।

पतंग ले उड़ा रहा, स्वतंत्रता जगा रहा।
निडर सहर्ष दौड़ता, तिमिर सदा भगा रहा।
नियम बना स्वयं चले, सुपंथ नित्य जा रहा।
नहीं मलाल है कहीं, भले सुधी ठगा रहा।

162…. मां सरस्वती

सदा रहा करो हृदय सुहागिनी सरस्वती।
तुम्हीं अनन्य वंदनीय मातृ श्री सरस्वती।
अजेय ज्ञान राशि देवि प्रेमिला सरस्वती।
कमल सरोजिनी सहस्र स्नेहिला सरस्वती।

अनंत चार धाम स्तुत्य पूजनीय शारदे।
अनादि दिव्यमान ध्यान शान भव्य शारदे।
सुगंधिनी सुवासिनी मधुर सुशिष्ट शारदे।
चमक दमक प्रसन्नना महर्षि बोध शारदे।

सदैव वर्णनीय आन बान मान शारदे।
धरोहरी सनातनी सुजान भान शारदे।
लिए करस्थ ग्रंथ बीन मातृ भक्त तार दे।
तिमिर रहे नहीं कभी प्रकाश बन सुधार दे।

सदैव मातृ चन्दना असीम हंसवाहिनीं।
सुगामिनी सुभाषिणी अजीत देह दामिनी।
परंतु किंतु से विमुक्त श्वेत सत्व कारिणी।
परी बनी विचर रही सदेह लोकतारिणी।

163…. ववंदे वंदे मातृ शारदे
मापनी 24/23, अंत गुरु

महाबला महाभुजा महामना सरस्वती, शांतचित्त प्रेमयुक्त ज्ञान दान देवता।
रमा परा महांकुशा शिवा त्रिकाल रूपसी, सत्य सौम्य ब्रह्म विष्णु आत्म रूप स्नेहता।

विशाल नेत्र प्रेमदा सुधर्म पुंज नायिका, हंस आसना सदैव नीलजंघ चंडिका।
सुवासिनी सुभद्र शान ध्यानमग्न चिंतिका, वैष्णवी निरंजना सदा सुशील अंबिका।

महाशया महोदया प्रकाशमान आनना, दिव्य अंग पूजिता वरप्रदा सुचंदना।
रहें सभी विनम्र भाव से करें निवेदना, भारती महान की करो अपार वंदना।

164…. पर्यावरण संरक्षण
(मनहरण घनाक्षरी)

तुम प्रकृति बचाओ, सतत सेज सजाओ, नियमित चमकाओ, गंदा मत करना।

नित प्रेम किया कर, रह तुम बच कर, ध्रुव प्रिय बन कर , साफ स्वच्छ रखना।

अनमोल प्रकृति है, स्वयंभू संस्कृति यह, लक्ष्य प्यार करना है, प्रेमवत रचना।

हिंसक मत बनना, साधन बन चलना, तुम साध्य स्वयं मत, अपने को कहना।

पर्यावरण सुरक्षा, हो यह मन की इच्छा, तुम दूषित कारण, कभी मत बनना।

है सर्वोपरि सुंदर,नहीं कभीअसुंदर, इसकी सेवा करना, नित आगे बढ़ना।

165…. संविधान

संविधान कानून देश का, इसकी रक्षा करना धर्म।
इसे राष्ट्र का हृदय समझना, यह करता हितकारी कर्म।
राज्य राष्ट्र अथवा संस्था का, यह करता संगठित विकास।
लोक तंत्र का महा मंत्र यह, इसको मानो उत्तम न्यास।
नियमों की यह स्वस्थ व्यवस्था, इससे चलता रहता देश।
जीवन को आसान बनाता, नियमित जीवन का संदेश।
हैं समाज यह जंगल जैसा, अगर संगठन नियम विहीन।
सही गलत को निश्चित करता,संविधान का मोहक बीन।
विघटन दिखता है चौतरफा, जब नियमों का हो अपमान।
अनुशासन गिरता धड़ाम से, भैंसे देते अपना ज्ञान।
मांसपेशियों का जलवा हो, संविधान यदि खाये मार।
पूजनीय होता वनमानुष, जो करता है अत्याचार।
सत्य हमेशा धूल धूसरित, झूठ दहाड़े सीना तान।
इसीलिए कहता हूं सबसे, संविधान का हो सम्मान।
नैतिकता मानवता हंसती, जगता अनुकूलन का भाव।
स्वस्थ स्वच्छ मानव समाज ही, संविधान का अमिट प्रभाव।

166…. प्रीति जगाओ (राधेश्यामी छंद)

आना जाना विधि विधान है, इसको कौन बदल सकता है।
इस जीवन में सब कुछ निश्चित, समय चक्र घूमा करता है।
मिलन वियोग विरह सुख दुख सब, समय समय पर घटते रहते।
मिल जाने पर मन हंसता है, खो जाने पर रो कर सहते।
बहु रंगों का एक मंच है, भांति भांति से मंचन होता।
एक एक किरदार यहां पर, कोई हंसता कोई रोता।
शांति द्वंद्व सहयोग द्वेष नित, रूप दिखाते सब चलते हैं।
हाथ मिला कर कुछ चलते हैं, आंख दिखाते कुछ चलते हैं।
अजब गजब सी इस जगती को, सीखो जीना और जिलाना।
सुख की गंगा बन कर बहना, नीर बांटते हरदम जाना।
जीवन की दुनिया को देखो, दुख का सागर भ्रमण कर रहा।
प्रीति जगा कर इसे सोख लो, सुखद सिंधु प्रिय रमन कर रहा।

167…. मन की आवाज

मन जब तक मैला, बहुत विषैला, करता गंदा काम।
अति कामवासना, देह कामना, कभी नहीं विश्राम।
मन हरदम चाहत, धन में राहत, सदा लोक की प्यास।
आजीवन भटकत, भद्दी हरकत, नित्य भोग की आस।

जो मन को साधे, कान्हा राधे, करता सबसे प्यार।
निर्मल बन जाता, हरि गुण गाता, उत्तम भाव विचार।
नित आत्म प्रकाशित, सहज सुवासित, करता दिव्य प्रचार।
मधु अमृत रसना, मोहक वचना, अत्युत्तम किरदार।

प्रिय पावन मन से, सदा निकलती, परहित की आवाज।
अति मीठी बोली, रच कर टोली, करती दिल पर राज।
वह शांत पथिक सा, चलता रहता, करता सबका काज।
सबको खुश करता, जग दुख हरता, सत्य शुद्ध रसराज।

168…. मनहरण घनाक्षरी

राम श्याम हंस वंश,ब्रह्मवाद शुद्ध अंश,
लोभ मोह दर्प त्याग, स्पष्ट शब्द बोलिए।

नाप तौल बोल डोल, स्वर्ग द्वार खोल पोल,
अर्थवान भाव द्रव्य, सत्य पंथ खोलिए।

लोक तंत्र मंत्र भव्य, आचरण विशुद्धता,
हार जीत साम्यवाद, सौम्य मग्न होइए।

द्वंद्व फंद मार डार, धर्म चक्र नीतिकार,
शालिनी सुसभ्य प्रीति, तुच्छ भाव खोइए।

169…. जीवन (आल्हा शैली)

इसीलिए मिलता है जीवन, करते रहना सुंदर कर्म।
कभी असुन्दर का मत चिंतन, करते जाना पावन धर्म।
भीतर बाहर से पवित्र हो, सबको गले लगाओ यार।
बन जाओ दिलदार मुसाफिर, मन से करना सबसे प्यार।
हाथ जोड़ कर शीश नवा कर, उर से हो सबका सत्कार।
नहीं किसी को निम्न समझना, यही स्वयं में शुद्ध विचार।
भावों में संसार बसे जब, दौड़े आता शिष्टाचार।
दिव्य आचरण नतमस्तक हो, करे सभी से सत्याचार।
सच्चाई की राह सुहानी, ढह जाता है मिथ्याचार।
झूठ मुठ के पैर टूटते, धनुष बाण जब ले अवतार।
राम बने वनवासी जग में, करते रहे असुर संहार।
जगती जब लगती मायावी, अच्छे का लगता दरबार।
मनमोहन आते अंतस में, सबका होता शुचिर सुधार।
स्वर्ग विचरता है भूतल पर, होता दिखता सुख संचार।
पाप भागता पुण्य थिरकता, संतों का बनता घर द्वार।
नहिं विवाद का मेला सजता, सहज शांति रस ले आकार।
मेल परस्पर बढ़ जाता है, होता खुशियों का व्यापार।
सहयोगी प्रवृत्ति जग जाती, सदा विरोधी खाते मार।
ईश्वर ने भेजा है सबको, सबका करने को उपकार।
संघर्षों को काट निरंतर, श्रम का लेकर नित तलवार।
उत्तम शिक्षा है जीवन की, अंतर्मन में हो सुविचार।
सुंदरता आए मानस में, सकल महीं से मिटे विकार।
बने नेह का मेह गगन में, हो प्रसन्न सारा संसार ।

170…. जीवन साथी

जीवन साथी यदि अनुकूल, धन्य धन्य जीवन विस्तार।
मिलता स्वर्गिक सुख आनंद,मन में रहती खुशी अपार।
भाव संपदा घर में देख, लक्ष्मी नारायण साकार।
सारे संकट होते दूर, मोहक लगता हर व्यवहार।
हंसी खुशी का प्रिय माहौल, आ कर रहता सदा बहार।
मिट जाते हैं सभी अभाव, बहती मोहक गंध बयार।
पुण्य धाम बन जाता गेह, सीताराम होय साकार।
जीवन साथी का यह मेल, अद्वितीय अनुपम आकार।
सदा हाथ में डाले हाथ, दिखता अतिशय अमृत प्यार।
जीवन साथी दिव्य प्रसाद, ईश्वरीय वरदान प्रकार।
समझो यह किस्मत की बात, साथी जीवन का है सार।
जीवन साथी यदि प्रतिकूल, हो जाता है बंटाधार।

171…. प्रीतिसंगिनी
(अमृत ध्वनि छंद)

अति सुकुमारी प्रेमवत, अनुपम मधु मुस्कान।
रहती हरदम साथ में, देती रहती ध्यान।।

सुंदर कोमल, अति प्रिय निर्मल, भावुक सरला।
पावन गंगा, रखती चंगा, अति तरला।।

प्रीतिसंगागिनी प्रेयसी, रूपवती मदमस्त।
साथ निभाती हर समय, सदा स्नेह में व्यस्त।।

प्रीति परस्पर, सहज निरंतर, अति सुखकारी।
शुभ संवादी, सीधी सादी, सतयुग नारी।

बोलत मधुरिम बोल है, नहीं कपट नहिं छद्म।
ऐसी संगति भाग्यवश, लगती मोहक पद्म।।

चाल मनोहर, गाती सोहर, जागृत महफिल।
क्रोध रहित है, शांत पथिक सम, नित शुद्ध निखिल।।

172…. ममता (सरसी छंद)

मां की ममता सर्वोपरि है, यही दिव्य है स्नेह।
जिसमें ऐसा भाव मनोरम, वह मां का मन देह।
मां सचमुच में प्रभु की मूरत, धरती का भगवान।
उसके अपनेपन के आगे, झुकता सच्चा ज्ञान।

दुनिया को जो निजी समझता, रखता मधुरिम भाव।
विश्व हितैषी बना विचरता, सबके प्रति सद्भाव।
मां आत्मा है वह मंदिर है, प्रेमिल कर्म अनंत।
कण कण में वह अनुपम चेतन, ज्ञान चक्षुमय संत।

मां आदर्श भावमय ममता, व्यापक अर्थ महान।
मातृ हृदय कोमल अति भोला, रत्न अलौकिक खान।
मां का उर्मिल रूप संजो कर, बनो शक्ति का पुंज।
राधा बन कर नित्य थिरकना, वृंदावन के कुंज।

ममता में समता को देखो, सबको गले लगाय।
चलते जाना धर्म पथिक बन, यह है मधुर उपाय।
रबर बने नित बढ़ते जाना, लो असीम आकार।
माता की ममता को चूमो, कर आत्मिक विस्तार।

173…. नमामि मातृ शारदे!
(पंचचामर छंद)

लता सदा सुगंधिता विनम्रता अनंतता,
सुपात्रता सुशीलता नमामि मातृ शारदे!

सुहाग नव्य भव्यता प्रशांत शांत चित्तता,
सनातनी धरोहरी प्रण्म्य मातृ शारदे!

लिये सुग्रंथ साथ में लिखंती लेख लेखिका,
बहंति मालिनी बनी नमामि मातृ शारदे!

सदैव हंसवाहिनीं विवेकिनी सुधा प्रिया,
सुचिंतना शुभा शिवा भजामि मातृ शारदे!

रमा रमेश व्यापिनी सुबुद्ध शुद्ध सात्विकी,
स्वयं सुज्ञान दायिनी नमामि मातृ शारदे!

सुवोधिनी सहर्षिणी सुगम्य शोध साधिका,
अगम्य निर्गुणी निरा नमामि मातृ शारदे!

निराश की सहस्र आस प्यास को बुझा रही,
अनाथ की कृपालु मातृ वंदनीय शारदे!

अबोलती प्रचंड वेग मौन मूकदर्शनी,
असीम रूप धारिणी नमामि मातृ शारदे?

दिया करो विनीत प्रेम प्रीति स्नेह दिव्यता,
अखण्ड ज्योति स्वामिनी नमामि मातृ शारदे!

अमर्त्य देव भूमि की विराट शक्तिशालिनी,
मनोहरी विलासिनी सुसाध्य मातृ शारदे!

स्वरूप सुष्ठ सौम्य शिष्ट सभ्य शुभ्र शानिनी,
पयोधरी यशोधरी नमामि मातृ शारदे!

स्वतंत्र शब्द भाव रूप अर्थयुक्त अप्सरा,
सुलक्षणा सुलोचना सुमान नाम शारदे!

सुदर्शना सुवंदना सुगीतिका सुनंदना,
अजानबाहु वर्णिका नमामि मातृ शारदे!

174…. सफलता

वही फूलता अरु फलता है, जिसके मन में दृढ़ विश्वास।
करता रहता कर्म निरंतर, अटल अचल प्रिय मौलिक आस।
एक लक्ष्य पर केंद्रित रहता, एक पंथ धर चलता दूर।
कभी नहीं विचलित होता है, मेहनत करता नित भरपूर।
थकने का वह नाम न लेता, सुंदर साधन ही आधार।
बढ़ता जाता कभी न रुकता, दिल में रखता शुद्ध विचार।
बाधाओं से लड़ता रहता, धीरज रखता बन बलवान।
अंतर्मन में जोश भरा है, खड़ा अडिग अतुलित इंसान।
वीर बहादुर सा दिखता है, रण क्षेत्र को करता ढेर।
लगातार वह कोशिश करता, लेत परिस्थिति को वह घेर।
सबको वह अनुकूल बनाता, नहीं मानता है वह हार।
विजय तिरंगा हाथ लिये वह, भरता रहता है हुंकार।
यही सफलता की कुंजी है, पावन कृत्य सहज फलदार।
कर्मवीर श्रम साधक पंथी, की फलदायी अमृत धार।

175…. प्रीति

प्रीति भावना अमोल रागिनी तरंगिनी।
सत्व रूपिणी सदा रहे सदेह संगिनी।
मस्त मस्त चाल में चले बनी सुगंगिनी।
हाव भाव भंगिमा सतत मलय सुचंदिनी।

सद्गुणी सुसज्जना नितांत शांत सांत्वना।
जाति पांति से अलग थलग विशुद्ध पावना।
मोहिनी चमक दमक सुशील सौम्य कामना।
धारणीय कामिनी उरस्थ नेह भावना।

प्रेमिका बनी निहारती सदैव सत्य को।
अंक में अपार शक्ति मारती असत्य को।
द्वेष को नकारती कवित्त को उकेरती। काव्य रूप भामिनी धरा प्रिया सहेजती।

176…. सरस्वती वंदना
(पचचामर छंद)

जहां कही चलो मुझे सहर्ष साथ ले चलो।
पकड़ सदैव हाथ को स्व धाम नित्य ले चलो।
नहीं अकेल छोड़ कर अदृश्य में न भागना।
यहीं असीम कामना करूं अनंत साधना।

मना नहीं किया करो रखो मुझे सुसंग में।
रमा करो सदेह मातृ प्रेम ज्ञान रंग में।
तुम्हें पुकार कह रहा सुनो सुबोधिनी सदा।
चलो बनी सुशिक्षिका सुयोग योगिनी सदा।

पढूं लिखूं बनूं सुजान भक्ति दान दीजिए।
प्रकाश रूप में बहो विनीतवान कीजिए।
पवित्र निर्मला जला बनी थकान मेट दो।
नदी बनी सुगंगिनी शिवा तरान भेंट दो।

हरा भरा रहे हृदय स्व नाम धन्य भारती।
शुभेच्छु मातृ शारदे! सदैव बुद्धि आरती।
विमान हंस सद्विवेक नीर क्षीर भिन्न हैं।
समस्त सृष्टि लोक में, अनाम मां अभिन्न हैं।

177…. विनती (सरसी छंद)

सकल जगत से विनती करता, जागे अमृत भाव।
शक्ति प्रदर्शन का हो मतलब, सब मिल धोएं घाव।
अंतर्मन में स्नेह वृष्टि हो, होय हृदय से मेल।
जन सहयोगी मन विकसित हो, जग हिट में हो खेल।
हो विचार में सदा बड़प्पन, उत्तम धन स्वीकार।
श्रम से संग्रह सीखे मानव, फैले यही विचार।
आग्रह और निवेदन सबसे, सभी करें प्रिय कर्म।
शोषणकारी वृत्ति त्याग कर, मन से हो शुभ धर्म।
जाति पांति का भेद भुलाकर, सभी करें कल्याण।
साफ स्वच्छ अंतस से निकले, सहज प्रीति का बाण।
सकल परयापन मिट जाए, जग अपना बन जाय।
जीवन सबका धन्य बने अब, पाप त्वरित मिट जाय।
अनुनय विनय यही बस प्रियवर, रखना सबका मान।
ऐसे ही रहना आजीवन, हो प्रेमिल मुस्कान।
मिन्नत है बस यही एक प्रिय, करें काम सब नेक।
बहु संख्यक संसार लिखे मधु, मोहक ग्रंथ अनेक।

178…. गंदे लोगों की जमात

गंदे लोगों की जमात में, पीसे जाते अच्छे मानव।
दिखते आज चतुर्दिक बन ठन, दूषित असहज कुंठित दानव।
भोले भाले सुंदर सज्जन, को सब मिल कर लूट रहे।
सब फिराक में रहते हरदम, फांस फांस कर फूट रहे।
गलत तरीके से धन संग्रह, का चक्कर सब काट रहे हैं।
धोखेबाज उचक्के चोरकट, जन मानस को चाट रहे हैं।
सड़ियल कुत्ता बने घूमते, चारोंतरफ निरंकुश देखा।
बने अनैतिक नीच अपावन, लांघ रहे हैं सीमा रेखा।
“ब्लैक मेल ” करने को आतुर, उत्सुक व्याकुल आज घिनौना।
धर्म कर्म से विचलित कायर, नित फौरेबी कुत्सित बौना।
मर्यादा से बहुत दूर ये, नहीं प्रतिष्ठा से नाता है।
नित कुकृत्य को करनेवाला, कब सम्मानित हो पाता है।
रग रग में है सिर्फ वासना, धोखाघड़ी किया करता है।
सदा विरोधी नैतिकता का, आत्मघात करता रहता है।

179…. प्रेयसी

प्रेयसी सदा प्रसन्नचित्त भावनिष्ठ हो।
मनोरमा सुदर्शनीय दिव्य प्रीतिनिष्ठ हो।।
काव्य की मनोहरी छटा बिखेरती रहे।
घनाक्षरी सुलेखिका लिखा करे बनी रहे।।

प्रेम रत्न खोज खोज देव दृष्टि जागरण।
उर्वशी बने सदैव नव्य प्रेम आचरण।।
देखती रहे विनम्र भाव में सजी धजी।
मंत्र मोहिनी बनी दिखे सदा अमर ध्वजी।।

एक बीज मंत्रिका सुहागिनी सुनामिनी।
प्रेम वृक्ष वाटिका सुहावनी लुभावनी।।
शोधिका सुबोधिका अनंत प्यार कामिनी।
बात चीत मस्त मस्त स्नेह रंग स्वामिनी।।

अमर्त्य लोकवासिनी अमी धरा बनी दिखे।
सदा सुखी कदम बढ़े चले सुभाग मन लिखे।।
प्रिया बनी अनंतिमा अनूपमा स्वरांगिनी।
कवित्त रूप मनहरण सुधा समुद्रवासिनी।।

मजी हुई सुगीतिका विहारिणी सुगंधिका।
रहे सदैव प्रेमिका सुलोचनीय राधिका।।
दिनानुदिन सुशांत रश्मि तेज पुंज भावना।
दिलेर चित्तचोरनी असीम राग कामना।।

180…. प्रीति रसामृत (सानेट)

प्रीति रसामृत हरदम टपकत।
अतिशय भावुक है प्यारा मन।
करता रहता स्नेह आचमन।
हृदय विशाल हमेशा चमकत।

चोर लुटेरा दिल व्यापक है।
जगती व्याकुल है पाने को।
राजी नहीं कभी जाने को।
नायक प्रियतम का मापक है।

आंखों में है मोहक तारा।
मस्तक पर है तेज विराजत।
अधरों की मुस्कान बुलावत।
चेहरा मनमोहक मधु प्यारा।

प्रेमिल मधुरिम मन मस्ताना।
मिलने को व्याकुल दीवाना।।

181…. गगन (पंचचामर छंद)

गगन अनंत अंतरिक्ष किंतु प्राप्य मान लो।
पहल सतत चला करे सुदूर दृष्टि तान लो।
अचंभ कुछ नहीं यहां वहां सभी समीप हैं।। सहज सभी खड़े पड़े लखो प्रसिद्ध द्वीप हैं।

क्षितिज निहार व्योम को प्रसन्नचित्त होत है।
असीम सीम दीर्घ सूक्ष्म ज्ञान ध्यान स्रोत है।
महान विज्ञ के लिए नहीं कठिन यहां कदा।
अदम्य बुद्धि ज्ञान से पहुंच रहा सदा सदा।

मनोबली महत्वपूर्ण काम कर दिखा रहा।
जुनून कर्म ज्वार का सप्रेम वह सिखा रहा।
प्रतिज्ञ बन चले सदा शनैः शनै: बढ़ा करे । चलो पकड़ अलभ्य को सुलभ्य पर चढ़ा करे।

गुलाब बन महक अनंत चूम कल्पना परे।
उड़ा करो सदा बहो स्वतंत्र रूप को धरे।
नियम यही बता रहा गिरा भले संभल गया।
गगन बना सुपंथकार ऊर्ध्व गंत बन गया।

182… . लेखनी

लेखनी उठे चले लिखे सदा प्रियंवदा।
शब्द अर्थ भाव लोच गेय गीत संपदा।
विघ्न हारिणी बने दिखे सदा सुखांतिका।
राग रागिनी निकल खिले जगत सुशांतिका।

एक एक अक्षरा सुमंत्र सिंधु कोश हो।
भावना बहे अनंत तंत्र इंदु तोष हो।
रात दिन दिखा करे सुनंदनीय चांदनी।
वृत्ति प्रेम वाहिनी हंसे सजी सुहागिनी।

द्वेष दैत्य चूर चूर स्नेह राशि पूर पूर।
दिव्य तंत्र नूर नूर क्लेश धन्य धूर घूर।
मान्यता सुबुद्घ की उलाहना कुबोल की।
कामना महान हो उपासना सुबोल की।

लेखनी उबल रही विडंबना कुरेदती।
वांछनीय सभ्यता सुसत्य को उकेरती।
हिंसवाद मारिका सुकाम्य रत्नधारिका।
पंच ईश्वरीय शक्ति नायिका सुधारिका।

183…. महफ़िल

आना जरूर आना, महफ़िल बुला रही है।
दो बूंद रस पिलाना, आवाज आ रही है।।
आना सजे धजे तुम, कुछ गीत गुनगुनाते।
मुस्कान ले अधर पर, वैदिक ऋचा सुनाते।
होगा यहां सुनर्तन, झूमे सभी मचल कर।
फरियाद होय पूरी, आकर्ष हो दिलों पर।
सबको दिखे सबेरा, सब प्रेम के बसेरा।
दिल से सभी कहें यह, बस प्रेम हो घनेरा।
मायापुरी रसीली, दैहिक बने सभी हैं।
नित झूठ के शिकारी, फौरेब में सभी हैं। सब क्षीण कर नियम को, उस्ताद बन रहे हैं।
सुख शांति त्याग अपना, आंसू बहा रहे हैं।
महफ़िल वही सुहानी, तप त्याग जो सिखाती।
स्नेहिल बड़ी दिवानी, गोष्ठी सुघर दिखाती।
आओ मनुज यहां पर, बन जा सुभग सुहाना।
सबसे मिलो सहज में, बन प्रीति का दिवाना।

184…. कलम (सानेट)

कलम चलेगी मन बहलेगा।
सोच सोच कर चिंतन होगा।
भावों का चिर मंथन होगा।
कागज पर प्रिय सुमन खिलेगा।

देवदूत सब नृत्य करेंगे।
चले लेखनी जब असुरों पर।
राक्षस मर जायेंगे डर कर।
लेखकगण सब क्लेश हारेंगे।

कलम सिपाही शक्तिमान है।
विकृतियों का वह है मारक।
सकल लोक का प्रिय उद्धारक।
वह जनसेवक कीर्तिमान है।

पावन निर्मल मन से लेखन।
विघटित मन का सहज विरेचन ।।

185…. वतन (दोहे)

जिसको प्रिय लगता वतन, वह मानव खुशहाल।
सबसे पाता प्यार है, चलता मोहक चाल।।

अपनेपन के भाव में, हरदम रहता मस्त।
नहीं किसी से वैर है, नहीं किसी से त्रस्त।।

मातृभूमि को नमन कर, पाता रहता चैन।
सदा स्वजन के मेल से, खुश रहता दिन रैन।।

भाग्यशालियोंं को सहज, नित स्वदेश से प्यार।
सबके प्रति कल्याण का, रखता सत्य विचार।।

बाहर अच्छा है नहीं, अंतस है अनमोल।
अंतर्मन के द्वार से, बोले मीठे बोल।।

रग राग में अति स्नेह है, वतनपरस्त महान।
पास पड़ोसी दिव्य जन, पर रखता है ध्यान।।

रक्षा करता वतन की, ले कर तीर कमान।
बनकर सैनिक वीर वह, रखे देश की शान।।

186…. किन्नर (दोहे)

देव लोक के हो तुम्हीं, कहलाते उप देव।
गायन विद्या में निपुण, देव तुल्य अतएव।।

अश्वमुखी किन्नर सरल, भाव रूप संगीत।
गाते रहते हर समय, भिन्न भिन्न प्रिय गीत।।

इनका वर्णन है लिखित, देखो पढ़ो पुराण।
गीत प्रीत मधु रीत के, ये सचमुच में प्राण।।

खुश रहते हैं देवगण, सुन कर मधुरिम बोल।
किन्नर की इस जाति का, मत पूछो कुछ मोल।।

संस्कृति के रक्षक यही, दिव्य लोक है धाम।
दिये इन्हें आशीष हैं, त्रेता युग के राम।।

इस भौतिक संसार में, पूजनीय ये लोग।
हिजड़ों की शिष्टोक्ति यह, किन्नर नामक योग।।

इनकी चलती है सदा, ये स्वतंत्र मनमस्त।
ढोल मजीरा साथ ले, रहते हर पल व्यस्त।।

187…. आंसू

आंसुओं से कहो गीत बन कर बहें ,
लेखनी से कहो गीत लिखती रहे,
धार आंसू की रुकने न पाए कभी,
गुनगुनाता रहूं गीति बनती रहे।

दर्द बन कर पसीना निकलता रहे,
चांदनी के लिए सूर्य ढलता रहे,
जिंदगी को समझना कभी मत बुरी,
नीर बहता रहे प्रीति गाती रहे।

लोक में देवताओं का शासन रहे,
कंठ में शारदा का शुभासन रहे,
मन का मालिन्य बह कर पिघल जायेगा,
दिल में अच्छे विचारों का सावन रहे।

संसार सागर में शुचिता रहे,
सबके मन में समादर समाहित रहे,
मत समझना किसी को पराया कभी,
अपनापन ही सहज अश्रु सिंचित रहे ।

दिव्य धारा सदा आंसुओं की बहे,
प्रेमदायक कहानी सदा प्रिय कहे,
जीवनी का यही एक मकसद सफल,
दुख सहे गैर का किंतु खुशदिल रहे।

188…. हिंदी की उपासना

हिंदी जिसकी अभिलाषा है।
उससे दुनिया को आशा है।।
बिन हिंदी दिल बहुत उदासा।
रह जाता मन प्यासा प्यासा।।

अति प्रिय मोहक मादक। उत्सव।
नित प्रयोगधर्मी शिव अभिनव।।
छंदों का संसार निराला।
अनुपम अद्वितीय नभ प्याला।।

नित्य नवल कविता की रचना।
हिंदी कहती मधुरिम बचना।।
सत शिव सुंदर इसके ग्राहक।
उत्तम मानव मन संवाहक।।

ब्रह्मा विष्णु महेश समाये।
सभी देवता इसमें छाये।।
लक्ष्मी सीता माता इसमें।
जगत सहोदर भ्राता इसमें।।

मीठी और सुरीली भाषा।
वैश्विक हित की यह परिभाषा।।
नये नये संधान सुशोभित।
इस पर सारी जगती लोभित।।

काम क्रोध को नित्य भगाती।
शिवशंकर को सहज सजाती।।
हिंदी में आदर्श लोक है।
जग जननीमय देवि कोख है।।

परम अहिंसा की रखवाली।
मानवता की नैतिक प्याली।।
हिंदी का सम्मान जहां है।
स्वाभिमान का ध्यान वहां है।।

जिसको लगती हिंदी प्यारी।
उसकी रचना सुरभित न्यारी।।
अश्लीलों की घोर विरोधी।
पुण्य फलामृत की उद्बोधी।।

इस भाषा में शिष्ट आचरण।
मानव मूल्ययुक्त व्याकरण।।
मधुर मनहरी इसकी मूरत।
दर्शनीय मधु पावन सूरत।।

इसका जो अभ्यास करेगा।
अति कोमल अहसास भरेगा।।
अति संतुष्ट बना विचरेगा।
भूख प्यास से नहीं मरेगा।।

बना फकीरा चला करेगा।
सदा कबीरा बना रहेगा।।
हो संतृप्त दिखेगा मानव।
सहज भगायेगा यह दानव।।

189…लक्ष्य (मरहठा छंद)

मानव बनने का,लक्ष्य सदा हो, यह अति सुंदर कर्म।
जो सबके हित में, चिंतन करता, वही निभाता धर्म।।

यदि साध्य बड़ा हो, अटल खड़ा हो करे सभी का ख्याल।
वह हो वितरागी ,जन अनुरागी, चले नीतिगत चाल।।

गंतव्य निराला, करे कमाला, रहे पथिक खुशहाल।
पग थिरकत हरदम, चलता दन दन, जाता जिमि ननिहाल।।

हो भाव मनोरम, प्रिय लोकोत्तम, शुचि सर्वोच्च विचार।
मिलता फल निश्चित, सहज सुनिश्चित, पहुंचे अपने द्वार।।

कुछ नहीं कठिन है, सब कुछ संभव, रहे अचूक निशान।
अपने में अर्जुन, की रखना है, एक अमिट पहचान।।

अभ्यास करोगे, सतत बढ़ोगे, चूमोगे आकाश।
तम छंटता जाए, कदम बढ़ाए, चमके परम प्रकाश।।

विश्वास अचल हो, स्वस्थ विमल हो, देखो पावन धाम।
जो चलता रहता, कभी न रुकता, वह मानव श्री राम।।

190…. सत्य की डगर
असत्य को लताड़ता सदा सुपंथ मर्म है।
उखड़ पुखड़ चले असत्य किंतु मूर्ख गर्म है।
सदा चले कुचाल पर कुचाल जड़ प्रधान है।
कुबोल बोलता कहे यही विशुद्ध ज्ञान है।
बड़ा बना रहा करे घमंड का शरीर है।
कुरीति को सकारता पतित बना कबीर है।
स्वयं बना क्षितिज कहे अनंत आसमान हूं।
दिनेश हूं महेश हूं वृहस्पती सुजान हूं।
नहीं कहे असत्य को असत्य झूठ मूठ है।
सुसत्य को कहे सदैव वृक्ष रेड़ ठूठ है।
नकारता सुयोग को कुयोग ही भला लगे।।
जगत कहे भले बुरा कुभाव दृष्टि ही जगे।
पथिक बना कुपंथ का कुपथ्य सेवनीय है।
प्रशंसनीय बन रहा परंतु निंदनीय है।।

191…. पैगाम (अमृत ध्वनि छंद)

अतिशय प्रिय पैगाम है, मनमोहक संदेश।
कवि आया है द्वार पर, धर योगी का वेश।।

जोगी बन कर, पीत रंग का, वस्त्र पहन कर।
थिरक थिरक कर, निज कवित्त का, प्याला भर कर।।

गायन करता प्रेम से, गढ़ गढ़ कहता बात।
लिये सरंगी हस्त में, नाच रहा दिन रात।।

नाचत गावत, प्रीति पिलावत, मोहित करता।
प्रणय सूत्र का, वर्णन कर कर, हृदय विचरता।।

देख रूप मधु भाव को, आकर्षित सब लोग।
कवि योगी के गान से, होते सभी निरोग।।

बालक बाला, सब मतवाला, मोहक मंजर।
एक सयानी, पर चल जाता, मोहन मंतर।।

बहुत कटीली रूपसी, पर चलता प्रिय बाण।
चाह रहा कविस्पर्श को, उसका जीवन प्राण।।

प्रीति निभाने ,ह्रदय सजाने, को कवि उत्सुक।
देख चपलता, अति मादकता, कविवर भावुक।।

192…. कुंडलियां

आशा मन में सिर्फ यह, तुम आओगे पास।
अंतस का संकल्प यह, होगा नहीं उदास।।
होगा नहीं उदास, हृदय का कमल खिलेगा।
यह अंतिम विश्वास, प्रेम से स्वयं मिलेगा।।
कहें मिश्र कविराय, त्यागना सदा निराशा।
करते जा शुभ कर्म, फलेगी निश्चित आशा।।

रहना हरदम पास में, समझो अपना मीत।
बहुत दूर से आ निकट, गाओ मधुरिम गीत।।
गाओ मधुरिम गीत, प्रीति की राह बताओ।
खेलो मोहक खेल, हृदय को नहीं सताओ।।
कहें मिश्र कविराय, अंक में भर सब कहना।
लुका छिपी को छोड़, चूमते मन से रहना।।

बनकर दीवाना चलो, बंधन को अब त्याग।
आगे पीछे सोच मत, भरो प्रीति का राग।।
भरो प्रीति का राग, पुराना सारा छोड़ो।
हो जा अब रंगीन, भव्य के प्रति मुंह मोड़ो।।
कहें मिश्र कविराय, देख लो प्यारे चल कर।
दिख जा मालामाल, प्रेम की कविता बनकर।।

193…. पथ (दोहे)

पथ से जिसको प्यार है, पाता सुखद मुकाम।
चलता रहता भाव से, लेते हरि का नाम।।

पथ पर चलना जानते, सच्चे योगी संत।
इनके जीवन में सदा, रहता नित्य बसंत।।

सुंदर मोहक पंथ का, जो साधक वह साध्य।
सारी दुनिया के लिए, बन जाता आराध्य।

उत्तम मानव नित गढ़े, पर उपकारी राह।
स्वर्गिक धरती की सदा, रहती मन में चाह।।

राहगीर उसको समझ, जिसमें शुभ संदेश।
अपनी मोहक चाल से, रचे मनोहर देश।।

पथ निर्माता है सहज, दे विद्या का दान।
विनयशील बनकर चले, छोड़ सकल अभिमान।।

पथिक वही जिसका हृदय, उन्नत दिव्य विशाल।
अमर कहानी नित लिखे, भयाक्रांत है काल।।

194… बढ़ा कदम रुके नहीं

बढ़ा कदम रुके नहीं न प्यार क्षीण हो कभी।
बढ़े चलो मचल चलो अटल रहो मिलो अभी।
वियोग गीत गान की पुकार हो कभी नहीं।
मिलन करो सप्रेम तू विसारना कभी नहीं।
अचल रहे अनंत हो मधूलिका अमर रहे।
गगन चढ़े अनामिका सुनामिका अजर रहे।
प्रणय सहस्र बाहु हो विराजता रहे सदा।
सटीक मंत्र मुग्ध हो निहारता रहे सदा।
अनन्य प्रेमिका मिले जहां न भीड़ भाड़ हो।
दिशा रहे सुहागिनी दिखे सदैव ठाढ़ हो।
रहे न राह रोधिका विशाल काय प्रीति हो।
तिमिर मिटे प्रकाश हो मधुर असीम गीति हो।
सुहाग रात ख्यातिप्राप्त पूर्णिका निहारती।
सुप्रेमिला सुकोमला सदेह बन विचरती।
रुके न पांव अब कभी दिलेर मन बुला रहा।
शनै: शनै: चलो सदा हृदय सुगीत गा रहा।
नहीं विरह वियोग को सकारना कभी प्रिये।
अनंत आसमान की तरह सदा रहो हिये।

195….. दगा (दोहे)

दगा जो जो देता वह पतित, कुटिल नीच शैतान।
क्षमा नहीं करते उसे, शिव महेश भगवान।।

शिव का हत्यारा वही, जिसमें कपट कुचाल।
गला घोट विश्वास का, बनता जग का लाल।।

छल करता जो मित्र से, दगाबाज इंसान।
अपना मुंह काला किये, देता सबको ज्ञान।।

मूर्ख अधम पापी सदा, नहीं किसी का मीत।
बना अनैतिक घूमता, गाता गंदा गीत।।

दागदार नापाक अति, बदबूदार विचार।
गंध मारता दनुज वह, करता पपाचार।।

मायावी कुत्सित हृदय, कुंठित असहज भाव।
अति विघटित व्यक्तित्व ही, देता सबको घाव।।

दूषित जीवन जी रहा, करता है आघात।
मन में शोषण वृत्ति है, सदा लगाए घात।।

196…. नमामि शंभु शंकरम

नमामि शंभु शंकरम भजामि वामदेव को।
प्रणम्य भक्तवत्सलम जपामि ब्रह्मदेव को।
कृपालु विश्वनाथ ज्ञान सिंधु ईश्वरेश्वरा।
दयालु एक मात्र नील लोहितम महेश्वरा।

त्वमेव शूलपाणिनी शिवाप्रिया दिगंबरम।
जटा विशाल गंगधर त्रिनेत्र शिव चिदंबरम।
महा विनम्र बोधिसत्व कालदेव देव हो। विनीत यज्ञ बुद्धिप्रद विवेक एकमेव हो।

त्रिपुरवधिक कुशाग्र उग्र शर्व सर्व प्रेमदा।
सहानुभूति योग पर्व दिव्य धन्य स्नेहदा।
जगत गुरू अजेय विज्ञ सोम शांत संपदा।
कपट रहित विदेह देह नीर भव्य नर्मदा।

वृषांक वीरभद्र सौम्य भर्ग सूक्ष्म साधना।
गिरीश नेक आतमा अनेक सिद्ध आसना।
समूल रूप तत्व रूप हित जगत सुकामना।
अनंत राशि रश्मि शिव हरी हरीश ध्यानना।

197…. नादान (दोहे)

गलती करता है सदा, जड़ मूरख नादान।
ज्ञानशून्य अनुभवरहित, नहीं क्रिया का भान।।

आगे पीछे सोचता, कभी नहीं नादान।
परिणति से मतलब नहीं, नहीं अर्थ का ज्ञान।।

गलती पर गलती करे, समझ शून्य नादान।
पता नहीं उसको चले, अपनों की पहचान।।

दोस्त अगर नादान है, तो सब गड़बड़झाल।
सहज बिगाड़े स्वाद वह, अधिक नमक को डाल।।

अधकचरे नादान का, मत पूछो कुछ हाल।
बिन सोचे बोले सदा, लाये संकट काल।।

अज्ञानी मतिमंद ही, कहलाता नादान।
बना हंसी का पात्र वह, जग में रखता स्थान।।

संज्ञाशून्य बना सदा, दिखता है नादान।
खुद को जाने वह नहीं, नहीं किसी का ज्ञान।।

दूर रहो बच कर चलो, देख नहीं नादान।
नादानों की बात पर, कभी न देना ध्यान।।

198….. नारी का जीवन

तुला समान नारियां असभ्यता नकारतीं।
त्रिशूल कर लिए सदा स्वतंत्रता पुकारती।
समान भाव भंगिमा सुतंत्रिका सुमंत्रिका।
बनी हुई सुनायिका सुपंथ लोक ग्रंथिका।

निरापदा सदा सदा सशक्त वीर अंगना।
सुशोभिता सुकोमाला सहानुभूति कंगना।
दया क्षमा करुण रसिक प्रशांत चित्त भित्तिका।
असीम नीरयुक्तता अपार धर्म वृत्तिका।

कभी नहीं वियोगिनी सुरागिनी सुशांतिका।
अपूर्व युद्धगामिनी अजेय शौर्य क्रांतिका।
पराक्रमी विशाल भाल लोचनीय देहिका।
विराट शिवशिवा सरिस शिला उदार स्नेहिका।

कठोर वर्ण रंग रूप न्यायमूर्ति भामिनी।
अमोल बोल मोहनी वृहद सुवीर्य दामिनी।
सदैव क्लेशहारिणी सतत हरित वसुंधरा।
अनादि सृष्टि साधिका जनन मनन पयोधारा।

199…. फर्ज (दोहे)

प्यार किया अच्छा हुआ, किंतु निभाना फर्ज।
नहीं प्यार से है बड़ा, जीवन में कुछ कर्ज।।

नैतिकता के ग्रंथ में, है पहला अध्याय।
मानव का यह फर्ज है, करे हमेशा न्याय।।

जिसे फर्ज का ज्ञान है, मानव वही महान।
सबके प्रति संवेदना, का हो असली भान।।

फर्ज बहुत अनमोल है, इसका रखना ख्याल।
फर्ज निभाता हर समय, चलता हीरक लाल।।

मत घमंड हो फर्ज पर, यह नैतिक कर्त्तव्य।
जिसे बोध है न्याय का, वह नित मोहक भव्य।।

फर्ज निभाता जो चला, वही सफल इंसान।
जिसे कर्म का ज्ञान है, जग में वही महान।।

फर्ज समझ में आ गया, तो पढ़ना साकार।
अनुचित उचित विचार ही, जीवन का आधार।।

चला पथिक जिस पंथ पर, सदा निभाता फर्ज।
सर्व विश्व अभिलेख में, नाम उसी का दर्ज।।

जीवन के सच अर्थ को, सहज जानता फर्ज।
फर्ज निभाने में कहां, कोई कुछ भी हर्ज।।

हाला पीता फर्ज की, मस्ताना बलवान।
मस्ती में वह झूमता, स्थापित हो पहचान।।

200…नजारा

बहुत मस्त तेरा नजारा अलौकिक।
असर जादुई दिव्य मोहक अभौतिक।

बरसती जवानी मचलता वदन है।
गमकती सुनयना चहकती सुगन है

सदा छेड़ती तान मादक रसीली।
बड़ी मोहनी है सुघर नित छबीली।

बहुत कोमलांगी नवेली कली है।
सुहानी लुभानी बहकती चली है।

सदा प्रेम खातिर तड़पता हृदय है।
फड़कती अदाएं मनोरथ उदय है।

गरमजोश विह्वल बनी दामिनी है ।
सदा नित्य नूतन गगन गामिनी है ।

भुजाएं ध्वजा सी चमकती त्वचा है।
मदन मस्त मौला मधुर रस रचा है।

कराओ सदा पान अमृत कलश ले।
नशीले अधर लोक रख दो अधर पे।

Language: Hindi
220 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
स्याह रात मैं उनके खयालों की रोशनी है
स्याह रात मैं उनके खयालों की रोशनी है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
#काकोरी_दिवस_आज
#काकोरी_दिवस_आज
*Author प्रणय प्रभात*
💐प्रेम कौतुक-445💐
💐प्रेम कौतुक-445💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*करिश्मा है ये कुदरत का, हमें मौसम बताता है (मुक्तक)*
*करिश्मा है ये कुदरत का, हमें मौसम बताता है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
रंगमंच कलाकार तुलेंद्र यादव जीवन परिचय
रंगमंच कलाकार तुलेंद्र यादव जीवन परिचय
Tulendra Yadav
सनम
सनम
Sanjay ' शून्य'
दृष्टि
दृष्टि
Ajay Mishra
कुछ बूँद हिचकियाँ मिला दे
कुछ बूँद हिचकियाँ मिला दे
शेखर सिंह
रेल यात्रा संस्मरण
रेल यात्रा संस्मरण
Prakash Chandra
కృష్ణా కృష్ణా నీవే సర్వము
కృష్ణా కృష్ణా నీవే సర్వము
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
शून्य से अनन्त
शून्य से अनन्त
The_dk_poetry
Shayari
Shayari
Sahil Ahmad
"वक्त"
Dr. Kishan tandon kranti
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
Shweta Soni
Biography Sauhard Shiromani Sant Shri Dr Saurabh
Biography Sauhard Shiromani Sant Shri Dr Saurabh
World News
आत्मघाती हमला
आत्मघाती हमला
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
हत्या-अभ्यस्त अपराधी सा मुख मेरा / MUSAFIR BAITHA
हत्या-अभ्यस्त अपराधी सा मुख मेरा / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
* आस्था *
* आस्था *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तेरा कंधे पे सर रखकर - दीपक नीलपदम्
तेरा कंधे पे सर रखकर - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
ख़्बाब आंखों में बंद कर लेते - संदीप ठाकुर
ख़्बाब आंखों में बंद कर लेते - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कुप्रथाएं.......एक सच
कुप्रथाएं.......एक सच
Neeraj Agarwal
कछु मतिहीन भए करतारी,
कछु मतिहीन भए करतारी,
Arvind trivedi
दर जो आली-मकाम होता है
दर जो आली-मकाम होता है
Anis Shah
सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll
सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll
गुप्तरत्न
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
अंसार एटवी
★मां ★
★मां ★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
नये गीत गायें
नये गीत गायें
Arti Bhadauria
आपदा से सहमा आदमी
आपदा से सहमा आदमी
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ
पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ
Buddha Prakash
Loading...