दिल का क्या है ….
दिल का क्या है ….
दिल चाहता है
दिल के साथ दिल की
कुछ बातें करूँ
बीते हुए लम्हों से
मुलकातें करूँ
उड़ कर जाऊँ
उसकी मुंडेर पर
उससे मिलने के कुछ वादे करूँ
दिल की चाहत बड़ी अजीब होती है
कभी उसके करीब होती है
कभी उसके वियोग में रोती है
दिल का क्या है
कागज़ की नाव पर सवार रहता है
मोहब्बत के फ़लसफ़े कहता है
ज़मीं पे आसमाँ रखता है
आसमाँ में पाँव रखता है
दिल का क्या है
अपने सीने में
न जाने ये क्या क्या अरमाँ रखता है
धड़कनों की दीवारों में
उल्फत के आशियाँ रखता है
आरज़ूओं की मौज़ों पर
ये कच्चे मकाँ रखता है
दिल का क्या है
अपने सीने में ये
चाहतों का बवंडर रखता है
परवानों सा जलता है
अरमानों में पलता है
उसकी चाहतों से
अपनी चाहतों में रंग भरता है
दिल का क्या है
ये कुछ भी करता है
उसकी चाहत में जीता है
उसकी चाहत में मरता है
दिल
अपने शानों पर
चाहतों से लबरेज़
हसीं गागर रखता है
सुशील सरना