💐 निर्गुणी नर निगोड़ा 💐
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक 💐💐 अरुण अतृप्त
💐 निर्गुणी नर निगोड़ा 💐
हरि ओम तत्सत
हरि ओम तत्सत
रटा कर रटा कर
तेरे बिगड़े काम बन जायेंगे
माला हरि के नाम की
जपा कर जपा कर
जख्म सभी भर जाएंगे
रे प्राणी तेरे ज़ख्म
सभी भर जायेंगे ।।
रोता रहा उम्र भर तू तो
पुण्य किया ना कुछ भी
इस जग में आकर अबोध
तूने ना कर्म किया कुछ भी
बना अकर्मा हुआ वियोगी
माया समझी ना इस देह की
देह को माना सब कुछ तूने
देह को माना सब कुछ तूने
कैसा निपट निगोड़ी रे
कैसा निपट निर्गुणी
सांझ हुई जब जीवन की तो
पागल बन बौराया रे प्राणी
पगला बन बौराया
हांथ से निकला रेत सा जीवन
तू कब पकड़ ही पाया
कैसा निपट निगोड़ी रे
प्राणी कैसा निपट निगोड़ी
हरि ओम तत्सत
हरि ओम तत्सत
रटा कर रटा कर
तेरे बिगड़े काम बन जायेंगे
माला हरि के नाम की
जपा कर जपा कर
जख्म सभी भर जाएंगे
रे प्राणी तेरे ज़ख्म
सभी भर जायेंगे ।।