💐💐प्रेम की राह पर-12💐💐
34-हे तितलियों तुम्हारी रंगीन आभा मुझे हास्यास्पद सन्देश देने के कार्य में लिप्त है।तुम्हारी रंगीन लकीरें मुझे बरबस एक स्थिर रंगीन आभा धारण स्त्री की याद दिलाती हैं।तुम्हारा परागों को चुनना मुझ पूर्व बिलम्बित प्रेमाछूत को किस साधन की प्राप्ति हेतु प्रेरित कर रहा है।तुम सब मेरे लिए कोई प्रयास न करना।वह सब व्यर्थ ही होगा।प्रेम पराग से पूर्णित मेरे हृदय को कोई एक निष्ठुर तितली ले उड़ी जो शुद्ध कामिनी का छद्म रूप धारण किये हुए थी।कहीं वह तुम्हारी राजकुमारी तो नहीं,जो स्वयं के अहंकार में इतनी वलित है कि कभी भी टूट जाए उसका यह नश्वर शरीर।।जब वह इतनी ही रुतबेदार है तो भला वह तुम्हारी सिफारिश को भी कैसे मानेगी।वह इतनी निष्ठुर है कि कोई व्यक्ति जीवनदान चाहे तो उसे जीवनदान भी ने दे,उसे घूर घूर के ही मार दे।यदि कोई शब्द भी सुनना चाहे तो भी न सुनाए।इतनी जटिल है कि पहेली को उसका नाम दे दो तो कोई बड़ी बात नही।हे तितलियो तुम ही कुछ अलग करो उस तितली को मनाने के लिए।जब वह इतनी ही निष्ठुर है तो हर्ष की भावना का निश्चित ही अभाव होगा।तो वह हर्षिता की संध्या का प्राकट्य ही करेगी और संध्या के बाद आने वाली निशा कैसे करेगी अभिषेक का अभिषेक।मेरा लिखना तुम पढ़ लोगी तो क्या निष्ठुरता कम हो जाएगी।तुम्हारे अन्तिम शब्द चक्र अभी भी घूम रहे हैं।जो बार-बार उन विषयों की विमुख रागिनी को घन की मार से मारक बना दे रहे हैं।फिर वे विषय मुझ प्रेम विश्वासघात से पीड़ित मानव को,जो अब शिला हो गया है,छैनी बनकर उसकी चोट से बार-बार तुम्हरा स्मरण करा दे रहें हैं।हाय!यह मेरी चोट तुम्हें ज़रा सा ही प्रेरित कर दे कि दे दो उसे प्रेमामृत जिसे पी सके वह भोलाभाला मानुष।क्यों उजाड़ा था तुमने वह प्रेम संसार।तुम न चल सकते थे मेरे साथ तो मना कर सकते थे अन्य प्रकार से।फिर उन अपशब्दों के मेघ वर्षाएँ क्यों की।वह भी एक जीवन जीना सीख रहे बच्चे से कहकर।कुछ कह भी नहीं सकता था उससे।।तुम इतने निर्लज्ज होगे और इस प्रकार से कि अपने मतलब के लिए किसी का भी बुरा कर सकते हो।तुम्हें इस रूप में देखना कि एक अनुभवशील नारी निश्चित ही मेरी बात को समझेगी।वहाँ समझना तो दूर सम्मान जनक भाषा का प्रयोग भी बन्द कर दिया गया।आखिर क्यों?तुमने मेरे प्रेमभरे जीवन को एक चिंगारी की तरह अग्नि प्रकट कर नष्ट कर दिया।अधुना प्रसन्नता के चिन्ह बाह्य हैं अन्तः नहीं, आशा निराशा से पूर्ववत स्थिति में आने की भिक्षा माँग रही है।कोई दिलाशा भी न दी गई।हाय!क्या मैं अछूता ही बना रहूँगा।हाँ, स्वयं में मैं अछूता ही बना रहूँगा।कोई न मुझे स्पर्श करेगा प्रेम से।कहेगा तू मनुष्य उन सब प्रेमोपकरण से हीन है तुझे स्पर्श नहीं किया जा सकता है।फिर तुम लगी रहना ग़लत जगहों से,ग़लत व्यक्तियों से सन्देश भेजकर कि मुझसे इंग्लिश में ही बात करो मैं Gebru Alitash बोल रहीं हूँ इथोपिया से।तुम मेरा चरित्र अभी भी नापना चाहती हो।फिर करवाना ज्योति विष्ट से व्हाट्सएप मैसेज।तुम खुद टपोरी बन चुकी हो।तुमसे हिम्मत ख़ुद बात करने की नहीं होती है।किताब भी अभी तक नहीं भेज सकी हो।आख़िर किन उद्देश्यों का प्रेरण चाहती हो तुम।मैं कोई असंस्कारित पुरुष नहीं हूँ।जो तुमसे मिलने के लिए एकपक्षीय निर्णय की रेखा का अनुगमन करूँगा।किसी वस्तु,विचार और विवेक की सिद्धान्तहीन विस्तृत व्याख्या,आचरणहीन पुरुष का संवाद, स्त्री का सुष्ठु सौन्दर्य कटु संवादयुक्त होने पर सर्वदा निन्दनीय है।अपरञ्च क्या तुम्हें उपहार में अपना हृदय दे दूँ तुम्हें।परं इसकी प्रत्याभूति लो कि किञ्चित भी कोई दोष तुममे हो।वह उससे स्पर्श न हो।मेरा शरीर नही बिकाऊ नहीं है और तुम्हारा भी नहीं।स्त्री पर किसी को भी दासत्व देने का अधिकार नहीं है।स्त्री पुरूष से कहीं अधिक बुद्धिजीवी है।वह उन विषयों से भी रण लड़ती है जो एक पुरुष के विवेक में कभी आते ही नहीं।हे बूची!तुम किसी अन्य प्रसंग में संलिप्त प्रतीत होती हो।तुम अपनी पुस्तक भी न भेज सके।मेरे मूर्ख कहने से तुम मूर्ख नहीं हो जाओगे।मूर्खता मिति की मेरी कसौटी अलग है।मैं शीघ्र विदा लेना चाहता हूँ यहाँ से।अपनी किताब तो भेज दो।हे सुनहरी।
©अभिषेक: पाराशर: