💐💐प्रेम की राह पर-19💐💐
27-पेड़ो के बीच टहलना भी कितना असीम सुख देता है।स्वाभाविक है इस तरह के सुख को बंटित करना।जिनके चरित्र भी सुखभरा हो वो सुख तो देंगे ही।नीम कटु जरूर होता है पर छाया तो वह भी देता है।भोर में टहलकर लौटते समय नीमबाड़ी में फुटपाथ पर पड़े बैठकासन पर फ़ुरसत के साथ कुछ देर बैठा रहा।यत्र-तत्र दृष्टि जा रही थी।सहसा नीम पर बैठे उल्लू पर दृष्टि जम गई।वह जीव अपने गोल-गोल आँखे लम्बी गर्दन सहित निकाल कर मुझे उल्लू सिद्ध करने में लगा था।इस अचानक हुई घटना को,मैंने सोचा,कि यह अभी ही होना था।मन ही मन कह उठा,हे जीव!कितने सोज़ से गुजर रहा हूँ।उस जीव को कहाँ पता थी।उल्लिन से भिड़ा होता तो पता होती।मुझे ज्ञात था कि यह जीव दिन में उड़ न सकेगा।इसे रात्रि से ही तो जन्मजात प्रेम है।कितना सार्थक है यह सब कुछ।बड़ी बात तो नहीं करूँगा।मेरा प्रेम भी तुमसे ऐसा ही है।पर कष्ट रूपी दिन सर्प बनकर मुझे डंसता है मेरे पर काट दिए हैं इसने।विभावरी में तुमको खोजता रहता हूँ।शायद उस उल्लू ने मुझे महाउल्लू समझा हो।वह सोचता हो कि तुम मेरे गुरु हो।शायद मेरे प्रेम को स्वयं के प्रेम से अधिक जीवन्त समझा हो।पर उसे क्या पता है कि यह प्रेमापदा के मूल में जो छिपी है,वह कितनी कठोर, निर्दयी और निष्ठुर है।एक बार भी अपनी प्रसन्नता का मिथ्या दर्शन न कराया।फिर सत्य की ही तो बात क्या है।पता नहीं हँसने के भी रुपये चाहिए।बन्दूक नहीं चली थी क्या जन्म के समय।बताओ रुपये औकात में हुए तो दे दूँगा।वह उल्लू भी समझ गया था कि यह किसी चालाक उल्लिन के चक्कर में फँसा है।फिर भी वह जीव मेरी हृदय की व्यथा को जाने क्यों समझ रहा था।कहीं वो तुमने तो नहीं भेजा था।हाँ हाँ।तुमने भेज दिया हो उसे।और ही क्या, तुम ही बनकर आ गए हो तो।तुम मायावी तो ठहरे ही।तुम्हारी माया ने मेरा सबकुछ छीन लिया।अब तो तुम प्रसन्न होगे।हैं न।हे मायावी।तुम्हें क्या मतलब हमें उल्लू चिढ़ाये या उल्लिन।तुम्हे तो हँसने से मतलब।वह भी भीतरी।बाहरी हँसे तो धन भी माँग सकते हो।कू-ए-यार का रास्ता भी तो न देखा है।धन भी भेज देते।हमारा पता तो मिल गया होगा।मकतब-ए-इश्क़ के रहनुमा हो तो अपनी किताब तो भेज देना।अब जीवन में सुकूँ नहीं मिलेगा।तुम्हारे अलावा कोई बज़्म ठहरती नहीं है।ठहर भी गई तो निग़ाह कैसे मिलेगी।और फिर यही बात तुम पर लागू हुई तो तुम कैसे जिओगे।पर तुम निष्ठुर हो।तुम ठहरालो किसी की महफ़िल अपने हृदय में तो क्या प्रत्याभूति हो।तुम तो इतने निष्ठुर हो कि एक डॉट भी न भेज सके,इस बेचारे नर के लिए।हाय!यह क्षण अब न आ सकेंगे मेरे पवित्र जीवन में।मैं अकेला ही बहुत ख़ुश था।तुम उठापठक न करते तो क्या हो जाता।यह कैफ़ियत तुमने मुझे दी है।सोज़-ए-दिल क्या करे।सवाल-ज़बाब में फंसी जिन्दगी फँसती चली जा रही है।हे निष्ठुर!तुम क्रोध से ही मुझे इससे निकाल दो।कुछ तसल्ली देने का प्रयास ही कर दो।मेरे हाथ में अब कुछ नहीं है।मुझे बर्बाद न करो।कुछ दिनों बाद मैं यहाँ से बहुत दूर चला जाऊँगा।तुम्हें कोई कष्ट न दूँगा।मैंने इस प्रसंग में कभी अपनी जीत मानी ही नहीं।मुझे तुमसे हार जो लेनी थी।देख लो।हारकर भी जीत है मेरी।तुम न मानो।तो क्या?कबूतर वाली थ्योरी को तो तुम जानती होगी कभी-कभी निकल जाया करो उसके नीचे से।कितनी आशाएँ कर बैठता है मानव किस-किस से।पर वे कायर कभी अपने बेढंगी स्वर से बाहर ही नहीं निकलते हैं।तुम्हारे गुमान सब उड़ जाएंगे।नक्षत्रों में विलीन हो जाओगे तुम और तुम्हारे गुमान।देखना तुम भी भुगतोगे यह पीड़ा।यह जो तुम्हारे द्वारा सउद्देश्य अपशब्दों की टिप्पणी की गई थी उसका आधार क्या था।अभी तक न मालूम हुआ।निश्चित ही कोई ख़सूसियत का मेल रहा होगा।ख़ैर चलो।घाव कुरेदेगें तुम्हारे समय आने पर हम भी।हाल तो पूछ लिया करेंगे।तुम मेरा तत्क्षण सहयोग करते तो परिणाम आज यह नहीं होता।तुम्हारे पीछे तो मैं न घूम सकूँगा।टपोरी मजनू बनकर और मैं भी नहीं चाहता तुम भी बनो टपोरी लैला।अपने-अपने सुष्ठु अभिनय का परिचय दो।मैं तुम्हारा शत्रु नहीं हूँ।कब दिलाशा दोगे तुम मुझे।मूर्ख उल्लिन!अपनी किताब तो भेज देना।मैं अपनी ज़ानिब से न मगाऊँगा।भेज देना उल्लिन।
©अभिषेक: पाराशर: