💐प्रेम की राह पर-57💐
तुम्हें ईश्वरीय माया का परिचय करा दें तो इसे कम न समझना।पहले से ही अज्ञातवास में कट रहे दिन तुम्हें परामर्श देकर इन दिनों की सीमा बढ़ गई है।क्या करें?न तो तुम कुछ कहती हो और न ही कोई सही वार्ता ही प्रस्तुत करती हो।वैसे परमात्मा हमारे समीप हैं तुम्हारे समीप हैं या नहीं मुझे नहीं पता तुम्हारा कोई न कोई पक्ष कमज़ोर जरूर है।अब की बार तो कोई नशीली वार्ता मैंने नहीं की।कितना सुष्ठु परामर्श प्रस्तुत किया था।इतने परामर्श तो कभी किसी को न दिए।पर हाय!इस जगत का दूसरा झटका फिर उसी महा निष्ठुरता के साथ मुझे दिया गया।वह सजऱ उखाड़ दिया तुमने।मैंने बड़े मन से सोचा था कि चलो एक बार जरूर प्रयास करते हैं, ऐसा नहीं है कोई इतना क्रूर हो।पर न जाने क्यों फिर उसी क्रूरता का सामना मुझे करना पड़ा।एक तो कभी किसी स्त्री से बात नहीं की।तो इसका विशेष भय है।पर भेजे गए सन्देशों का अपहरण कर मेरे उन सभीं ख्यालों को भी कुचल दिया जिन्हें हे माधुरी!तुम्हारे लिए सजा रहा था।मैंने यह चर्चा कभी किसी भी व्यक्ति से कभी नहीं की।अब केवल रुदन ही बचा है।तुम ऐसे ही हँसती रहना।क्या यह तुम्हारा पशुत्व है?मेरा तो हो नही सकता क्योंकि कि मैंने तब भी और अभी भी कोई निरर्थक और तुम्हें सम्मोहित करने का संवाद न किया था।पर तुम इस तरह से कतराती हो तो यह निश्चित है कि तुम्हारा कोई न कोई पक्ष कमजोर जरूर है।उसे छिपाने की कोशिश करती हो।मैंने कहा था कि तुम्हारे घर पर किसी से बात करें तो दो वर्ष पूर्व ही बात हुई और उसमें भी परिवार की हैसियत ही पूछी थी।कैसे लोग हैं।क्या करते हैं?तो उत्तर भी सार्थक ही मिला।तब से कोई बात नहीं हुई।मैं इन सभी बातों को अच्छी तरह जानता हूँ कि गाँव में यदि ज़रा सा भी चरित्र पर सन्देह हुआ तो बात का बतंगड बना दिया जाता है।यह सहजात प्रवृत्ति है कि मनुष्य दूसरों में सदैव कमियाँ देखता ही है।भले ही वह उन कमियों में बाद में सम हो जायें।यदि तुम मेरे चरित्र में कोई कमी देखती हो तो सीधे बताओ।तो इस बात को तुम कभी भी न कह सकोगी।तुम निरन्तर ऐसे ही अन्य लोगों से मेरे प्रति महाज़ बनाती रहना।तो क्या तुम्हारे कहने से यह सब मैं इसे धिक्कार दूँगा।कदापि नहीं।विषयान्तर होने की जरूरत ही क्या है?जूता मार कर थूक दो।इसमें बहुत योग्य हो और बची कुछ नई योग्यताएँ दिल्ली से एकत्रित कर लेना।अपनी इन सोच से बाहर निकल कर सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दो।अन्यथा समाज सेवा का खुमार कुछ दिन बाद सिमट जाएगा।ब्लॉक कर देने से तुम अपना अयोग्य होना ही सिद्ध कर रही हो।यह याद रखना अन्दर से ही जब आवाज आये तो ही कदम आगे बढ़ाना अन्यथा अपने गाँव पहुँच शस्य सीख लेना।अब सब जानकर भी तुम यदि ब्लॉक करती हो।तो यह तुम्हारी अयोग्यता का प्रदर्शन है।यह सब नजदीकियाँ बनाने के लिए नहीं किया।कम से कम यह तो ज्ञात होता कि तुम्हारी इस परीक्षा में रुचि है।कोई सहज उत्तर न मिला।इसका अर्थ यह है कि तुम सब मुझसे ही कराना चाहती हो।इतना पिछलग्गू न बन सकूँगा।पर यह ध्यान देना की तुम अब यह सिद्ध कर रही हो कि तुम्हारी योग्यता पीएचडी तक सिमट गई है।तो हे चिरोंजी!तुम ऐसे ही दो नम्बर के कार्य सटोरीगिरी के कार्य करती रहना।क्या अर्थ है तुम्हारी इस कोरी पढ़ाई का एक सरल हृदय भी नहीं है।क्या तुम क्रूरता का अवतार हो।मैं तो एनीमल प्लेनेट की तरह फिर यही कहूँगा कि एक बार फिर नर, मादा को रिझाने में नाक़ामयाब रहा।हाय!तुम कुछ कहती क्यों नहीं हो।क्या मैंने पुनः तुम्हें कोई परेशानी का सबब दिया।नहीं न।तो फिर क्यों।ऐसा व्यवहार कर रही हो।मैं अपने जीवन के सबसे बुरे समय से गुज़र रहा हूँ।यदि तुम भी मेरा साथ न दोगी।तो अब किससे सरस आशा की अपेक्षा करूँ।यह सब मेरे भाग्य की चुनोतियाँ हैं जिन्हें मैं तुम्हारे संग से ही विजित करूँगा।पता नहीं अब क्यों तुमने ब्लॉक किया?विस्मय में हूँ।हाय!अब तो सब कुछ जानकर भी इस्लामी कोड़े बरसा दिए।ऐसा तिलिस्म क्यों किया?मना भी किया जा सकता था कि मुझे सन्देश न भेजो।तो मैं न भेजता।यह सब इतना दर्दनाक है कि अन्तिम पग तक याद रखे जायेंगे।मैं शब्दों का जाल नहीं बुनता हूँ।पर यह सब लिखना तुम्हें मैं किसी भी स्थिति पर आकर्षित करने के लिए नहीं लिखता हूँ।परन्तु यह भी नहीं कह सकता हूँ कि तुम्हें यह सब अच्छा लगता है या बुरा।चलो एक बार के लिए अच्छा मान लो।तो सभी इसकी अच्छाईयों की गणना करनाऔर यदि बुराइयों की गणना करती हो तो उन्हें बताओ।मैं कब कह रहा हूँ कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ और न हीं कोई गलतफहमी में हूँ।मैं तो अपनी त्रुटियाँ लोगों से पूछता हूँ और पूछता रहूँगा।मेरा निःशब्द होना लाज़मी है इस विषय में।मैंने पूछा मेरे घर तक किसने सूचित किया।वह सज्जन कौन हैं।वह नहीं बताया।क्यों?कम से कम उस व्यक्ति की मनोविज्ञान को तो जान सकूँगा।यह तुम्हारा कोई कौशल नहीं है कि तुम सभी की नजरों में आदरणीय बनी रहो।पर क्यों?तुम्हारा एक जनवरी को भेजा गया सुझाव मेरे पास है।तुम्हारा आदरणीय बनना अनुचित है।मैंने कहा मेरी आर्थिक विपन्नता मुझे कुछ करने नहीं देगी।इसे मैं चौथी कक्षा से पाल रहा हूँ।जो है सो है।क्या तुम्हें अपना उर फाड़कर दिखाऊँ।तो हे टॉमी!तो तुम भी मोम जैसी नहीं हो और वैसे भी तुम अब बुढ़ापे की ओर बढ़ रही हो।हाय!तुम्हारे झुर्रीदार चेहरे पर मुँह छिलवाने से मूँछें और घोड़ी जैसे होते सफेद बाल की कल्पना सशंकित करती है।कैसा हो जाएगा तुम्हारा गला।उसकी सिकुड़ती खाल।रदनक ढीले पड़ जायेंगे।फिर खाओगी सूजी का हलवा।हाय!यह है नश्वर शरीर।आवाज़ के मध्यम स्वर से कोई मुझे पानी दे दो।कोई न देगा तुम्हें पानी।क्यों कि तुम पर चढ़ रही है अभी जवानी।सभी खण्डित हो जाएगा।समय के साथ।तुम्हारे सब बहीखाते चल रहे हैं इह लोक के और परलोक के।सब खाते बिगड़ चुके हैं।हे निर्मले!तुम ऐसे ही व्यवहार से चेऊँ मेंऊँ करती रहना।पता नहीं क्यों तुम किसी मक़सद को ज़ाहिर नहीं करना चाहती हो।शायद कोई अमंगल तो नहीं है तुम्हारे साथ।तो वह ही बता दो।मैं गिरा तो नहीं हूँ इतना।मैं तो सबसे कमज़ोर हूँ।कैसे कहूँ अपनी बातें ।किससे कहूँ अपने हृदय की बातें।तुम सुनती नहीं हो।कृष्ण सुनते नहीं हैं।तो अब क्या कहूँ।संकुलित असत्य के साथ कोई द्विअर्थी भाषा का प्रयोग भी तुम्हारे लिए कभी मैंने नहीं किया।अगर किया हो तो बताना।यह प्रश्न सदैव मेरे लिए प्रश्न ही रहेंगे।तुम उत्तर कब दोगी।पता नहीं।कहीं तुमसे मैं मूर्ख कहता हूँ इससे बुरा मानती हो।तो मैं तुम्हें मूर्ख क्यों न कहूँ।कम से कम अपना पक्ष तो रखते हैं।पर तुमने अभी तक अपना पक्ष नहीं रखा।हाँ, अभी मैं क्रिप्टो क्रिप्टो खेल रहीं हूँ और पीएचडी घोल के पी रहीं हूँ।तो मैं अपने शब्दों को तुम्हारे कान तक दो महीने बाद पहुँचाउँगी।यह कोई बात है।क्या यही शोध है तुम्हारा।तो शोधती रहना।यह सब हवादिस हैं मेरे जीवन की,एक तुम्हारे विषय में और जुड़ जाएगी तो नवीन क्या है।कुछ नहीं।पर तुम अपनी मूर्खता का कलंक कभी न धो सकोगी।क्यों कि तुम स्निग्ध मूर्ख हो जिस पर बुद्धि टिक ही नहीं सकती हैं।मेरी मोमबत्ती।तुम हाँ तुम।मूर्ख हो।महामूर्ख।
©अभिषेक पाराशर