💐प्रेम की राह पर-56💐💐
रेत के असीम आँगन में भी जीव ईश्वरीय दयालुता से जीवनसमीर का आनन्द लेता है।वह जीता है मात्र अपने उस समस्त पुरुषार्थ के साथ कि उस आँगन की उष्णता भी उसके लिए राहें आसान कर देती हैं।वह उस उष्णता के साथ जीवित भी अपने पुरुषार्थ से रह जाता है।प्रज्ञाचक्षु पुरूष भले ही नेत्रों से क्षीण हो वह भी सभी कष्टों को सहन करता है।उसमें भी संवेदना होती है।किसी किसी एतादृश दिव्यांगपन में गज़ब का ज्ञान का समुद्र भी देखने में आता है।तो वह अपनी इस दिव्यता को कमजोरी मानकर थोड़े ही बैठेगा।वह निरन्तर क्रियाशील भी अपने ही अनुसार रहता है।सुख और दुख के वियोग से योग को परिभाषित करना वह भलीभाँति जानता है।यदि कोई व्यक्ति परामर्श के योग्य हो तो उसे उसकी काबिलियत के हिसाब से परामर्श देय है।ख़ैर वह अपनी जन्मजात मूर्खता,धृष्ठता और अपने सीमित अहंकार का परिचय क्यों न दे।ऐसा भी हो सकता है कि हम जिस परामर्श से उस व्यक्ति को लाभान्वित करना चाहते हैं वह उस परामर्श से अभिज्ञ हो।कोरा ज्ञान लिए हुए हो अथवा उसकी उस परामर्श से पतलून गीली हो रही हो।अध्ययन के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ बड़े-बड़े महारथी अपनी प्रज्ञा का कौशल अपनी मस्तिष्क की क्षुद्र सोच के साथ उस क्षेत्र की मिति को कभी भी नहीं माप सकते हैं।क्यों कि वह उस क्षेत्र के सच्चे और निर्भीक योद्धा नहीं हैं।चलो भावना भले ही कर लो हम करेंगे पर उसका क्या जो तुम्हें जन्मजात कायरता के रूप में मिला है और सत्य परामर्श के लिए यदि आप उसे अस्वीकार करते हैं और यदि उसमें ईश्वरीय प्रेरणा आपके श्रेष्ठ के लिए सन्निहित हुई तो आप निश्चित ही उस ठोकर के योग्य हैं जो आपके पृष्ठभाग पर आपके द्वारा निर्मित कारनामों से पड़ती रहे।कभी कभी सामान्य व्यक्ति के वचन भी प्रेरणा का कार्य कर देते हैं और उस कार्य की गति को उसके शब्द अपनी स्नेहकता से एक विशाल त्वरण को जन्म देते हैं।वह कार्य किन क्षणों में क्रियान्वित हो गया उसे कुछ पता ही नहीं चला।अंततोगत्वा वह व्यक्ति उसको अपना साधुवाद भी निश्चित ही देगा।कहाँ तक किसी की भव्यता से प्रभावित होंगे जब उस व्यक्ति की भव्यता वहनीय न हो तो उसे त्याग दें।अन्यथा उसकी प्रतिभा और भेड़िए के बच्चे को पालने में कोई अन्तर नहीं रहेगा।कोई पथिक हमेशा चलता ही नहीं रहता है।उसे विश्राम भी चाहिए।परं हाँ वह व्यक्ति प्रेम पथ पर चल रहा है तो उसे स्नेह का विश्राम दें और यदि ज्ञान के पथ पर चल रहा है तो उसे बुद्धि का विश्राम दें।किसी प्रेमी की प्रेमिका अपने ज्ञान में अंधी हो और परामर्श से प्रेरित होकर स्वकायरता से भाग रही हो तो उसे उस क्षण की प्रतीक्षा से विश्राम दें।जो उसे उसके भाग्य में साक्षात ठोकरें खाने के लिए उपस्थित होंगीं।मेरा तो कुछ नहीं मैं स्वयं हर स्थान पर अपने अनुकूल हिसाब खोज लेता हूँ।तो हे घण्टू!मेरे शब्द जब कमज़ोर हो जातें हैं तो कुछ लोगों को कुरेद कर मुझे शब्द मिल जातें हैं।तो फिर शब्द का भण्डार लगभग हरि इच्छा से एक मास के लिए तैयार हो जाता है।तो तुम इस बार इसकी शिकार हुईं।तुम अपने गाने ऐसे ही गाती रहो।अपनी पीएचडी के साथ।कुछ महिलाओं के सिर के केश जब उड़ रहे होते हैं और उनके पलकों की रोमावली जब मिट जाए,आँखों पर पिटाई की सूजन लिए हुए हों,चेहरे पर झुर्रियाँ आने वाली हों,भृकुटियों की पंक्ति सफेद होने के कारण लाल कर ली हो।तो निरन्तर घटती फ़िजूल की सुन्दरता पर गली का सबसे मरियल कुत्ता भी अपनी विष्टा न करें और आगे के बातें तो अलग हैं।कुछ लोगों का चेहरा काल्पनिकता से घिसते घिसते इतना घिस जाता है कि बन्दर और उसके चेहरे में कोई अन्तर नहीं रहता और यदि उसे हम मानवीय रूप में बन्दर सदृश कह दें तो उसे बुरा नहीं मानना चाहिए।तो हे गोरी स्त्रीलिंग चिंपैंजी!यह संवाद तुम्हारे ही लिए है।यह ज्ञातव्य है कि तुम अपनी सूजी आँखों से इसे पढ़ोगी जरूर।पूर्व में जो संवाद थे मतलब इस छमाही से पूर्व वह सभी विनोद से भरे थे।परन्तु अब यह सब तुम्हारे हित में गम्भीरता के साथ किया था।चलो कोई बात नहीं।बंदर के हाथ में अदरख देना भी नहीं चाहिए।वह स्वाद तो जानता ही नहीं है और अनावश्यक परामर्श देकर आज के इस मंहगाई के युग में अपना नुकसान और करा लो।हमारा तो कोई नुकसान नहीं है क्यों कि अपनी तो सीट बुक है उस परम पिता के यहाँ और हे सटोरी!तुम अब क्रिप्टो क्रिप्टो खेलो।क्यों जानती हो यह संसारी धन और तुम्हारा ज्ञान तुम्हारा स्वयं इकठ्ठा किया हुआ है।तो ऐसे नष्ट हो जाएगा जैसे आँधी में राख के निशान मिट जाते हैं।क्यों मानवीय ज्ञान ज़्यादा दिन टिकता नहीं है क्योंकि वह मानव उसे निजी सम्पत्ति समझ लेता है।शनैः शनैः वह ऐसे मिट जाती है जैसे दुराचारी की कीर्ति।तो हे मुन्नी!तुम अपनी सभी संपत्ति को अनायास कारण से खो दोगी।तुम्हें मालूम भी नहीं पड़ेगा।तुम अब किसी भी संवाद के योग्य नहीं रहीं।क्यों कि तुम निश्चित ही इस विभाग में कमजोर हो और ऐसे ही बनी रहोगी।हमारा कुछ नहीं है सब गिरवी है परमात्मा के यहाँ तो तुम इस स्वयं उपजाई इस पाखण्ड की भूमि को स्वयं ही नष्ट कर डालोगी।इसका परिणाम अब तुम स्वयं देखोगी और इसके लिए जिम्मेदार होगी तुम्हारी धृष्टता और महामूर्खता।कहीं आते जाते तो हैं नहीं।यहीं से….………………………………..
नोट-चक्कर में किसी के नहीं है।लोमड़ी।हमारा जीवन अपना है और अपनी गलतियों को स्वीकार करने में माहिर हैं।जो सही है तो तुम्हारे प्रति तो कहेंगे हे गुन्नू।
©अभिषेक: पाराशरः