💐प्रेम की राह पर-40💐
तुम्हारी टपोरीगिरी किस स्तर की है यह तो पता लग गया है।तुम्हारी निर्लज्जता का अनुमान भी।तुम किसी भी स्तर पर गंभीर नहीं हो।कैसा शोध है तुम्हार मानवीय गुणों का ह्रास कुछ इस तरह से हुआ है तुम्हारे अन्दर से जैसे बन्दर के खाज हो जाने पर उसके शरीर से बाल गायब हो जाते हैं।बातों का पर्दाफाश कुछ इस तरह किया है जिससे तुमसे विश्वास हट गया है मेरा। तुम पूर्णतया शहरी हो चुकी हो।पगली कहीं की। पढ़ाई पर ध्यान दो । लाली तुम बहुत बड़ी मूर्ख हो। तुम्हारे पदचिन्ह कहीं भी छूट जाते हैं। जिनका भान तुम्हें नहीं है।खींच मेरे फ़ोटो पर ही डांस करते रहना।तुम।पगली।
तुम्हारे पास केवल स्वयं के झुनझुने हैं। जिन्हें बजाती रहना।महत्त्ववादी बुद्धि है तुम्हारी।जो चासनी से लपेटे हुई है मूर्खता की।रंजित भावना की पोषक है तुम्हारी पढ़ाई। जिसने तुम्हारे गुनने का प्रकल्प समाप्त कर दिया है।2011 से अब तक ऐसे ही किताबों को चाटती रहो।फिर उस चाटत्व की आधार पाकर भी तुम्हारा मन और दिल एकाकार न हुआ।बड़ा कष्ट है।आदर्श की संजोई हुई तुम्हारी रात्रि की क्षणिका दिन रूपी सुन्दरता और प्रेमिक उदारता को कभी वृद्धि न दे सकी।यह कलंक तुम्हारा निजी है।जिसका गहरा दाग तुम्हारे अंग प्रतिअंग पर सुनहरी आभा से छपा रहेगा।किञ्चित भी कोई पुष्प तुम्हारे सौन्दर्य की पुष्टि कर सके।शायद ही अगणित रोशन दान तुम्हे रोशनी दे सकें।शायद ही शशि की अशेष राशि तुम्हे भेषजीय गुण से पुनीत बना सके। घण्टाघर की घण्टा हो तुम जिससे बाल मन अचम्भित रहता था वहाँ घण्टे ही होंगे।दर्शन की स्थिति में वहाँ घण्टे होते ही नहीं थे। तुम ऐसे ही छलावा हो।इसे तुम्हें अंगीकार करना होगा। निवेदन नहीं हैं मेरा। प्रेम के उद्दात्त भावनाओं को तुमने ऐसे दबा दिया कि वहाँ आशाओं का वृक्ष कभी न उगेगा और नही फलित होगी प्रेमनिधि।मूर्ख कहीं की।मैं फिर कह रहा हूँ तुम रेवड़ी हो।जिसमें प्रेमरूपी तिल हैं ही नहीं।मात्र छलावा हो।
अर्थव्यवस्था के अवमूल्यन के समतुल्य तुम्हारे शब्द तुम्हें ठग रहे हैं।साइकिल की चैन जैसी स्थिति में फसा के मुझे बिना पैडल के साइकल भी न बढ़ेगी।नकसुट्टी हो बाकई तुम। नाक सूतती रहना और “ये मोमबत्ती” के मेरे सम्बोधन से यही समझते रहना कि मैं बहुत बड़ा तान्त्रिक और मान्त्रिक हूँ। मैंने तुम्हें अपने हुनर से तुम्हारे अन्दर से वह सब निकाल लिया जो एक श्रेष्ठ महिला के शब्द होंगे।विन्यास का आधार तो तुम्हारी सुनने और सुनते रहने की शैली ने वह भी बड़ी शांति से और उत्तर देने के स्तर ने अवगत करा दिया कि तुम भीतरी हो।पर रायता फैलाकर वह भी अंधाधुंध बातों का तुमने यह बहुत गलत किया। इसका कोई निर्णय नहीं निकलेगा और शायद ही निकले।पर तुम्हारे सब शाब्दिक कर्म बड़े हास्यास्पद हैं।चिन्तन का लोटा फैल चुका है।जिसने बना दी है हँसी की पृष्ठभूमि। जिस पर मुझ पर तो सभी जानने वाले हँसेंगे।पर जब मैं भी तुम्हारी कार्यशैली बताऊंगा वह भी एक जनवरी को सजेशन भेजने वाली तो, परत तो तुम्हारे अन्दर छिपी भावना की भी खुलेगीं।बहरहाल तुम विशुद्ध पागल हो।बकरी कहीं की।
©अभिषेक: पाराशरः