💐प्रेम की राह पर-39💐
आरोपित होने का तंज तुम्हारे ही कारण सहन करना होगा।मध्यम संगीत की तरह तुम्हारे कुछ शब्द अभी भी पीछा नहीं छोड़ते हैं। किन कारणों से कुछ मूर्खों के साथ तुम्हारे अन्दर असंगति की भावना का प्राकट्य हुआ।जीवन के इस परिस्थिति के पश्चात् अंतिम पड़ाव के क्षण ही आगे बढ़ेंगे।जिसमें एक क्षीण हृदय अपने विरह के शुष्क फूलों को जो तुमने कभी ताज़ा दिए ही नहीं थे,हमेशा सँजोये रखेगा।यह एकान्तिक वार्ता किसी अन्य गोपनीय परिस्थिति की मोहताज नहीं है।परन्तु तुम्हारे ऊपर पड़ने वाली रश्मियाँ प्रेम की लाक्षणिक तरंगों को उत्पन्न न कर सकीं।निष्ठुर होना भी एक पत्थर जैसा ही व्यवहार है।पत्थर जैसा क्या वह मानुष पत्थर ही ही जिसने विशुद्ध प्रेम की मंदाकिनी में हस्तधावन न किया हो।प्रेम सत् चित् आनन्द की सजीव मूर्ति है जिसे अपने हृदय में जिया जाता है।परन्तु तुम्हारी कमनीयता तो तेज़ाब जैसी है जो दर्शन मात्र से अम्लराज़ का लक्षण प्रकट करती है।यह कैसा विनोद है तुम्हारा जो फेफड़ों में अमोनिया जैसी छद्म ठण्डक देता है।नुक़सान कितना होगा फेफड़ों का यह यह विनोद रूपी अमोनिया की तनुता और सान्द्रता पर निर्भर करेगा।तुम आवर्त सारणी में हर वार खोजे जाने वाले तत्व जैसी हो।जिसमें रसायनज्ञ का चार्म उसकी खोज के लिए सदैव तत्पर रहता है।बहरहाल तुम मूर्ख हो और तुम्हारी मूर्खता चरम पर है।इसे डंके के चोट पर कहा जा सकता है।
©अभिषेक: पाराशरः