💐प्रेम की राह पर-38💐
अन्य उपाय भी थे इस क़ाबिलपन को दिखाने के और दिखाया जा सकता था अपना एक अज्ञात मानव से न मिलने का माध्यम।परं इस व्यवस्था को अपने हाथों से जो तुमने अनावश्यक जन्म दिया जिसका यहाँ कोई औचित्य ही नहीं था।क्या किसी दासता की भावना से घिरे हुए थे।हे मित्र तुम्हारे अधखुली आँखे वह भी साक्षरता की, तुम्हारे अनुभवी न होने को सिद्ध करती हैं।पक्षी उड़ता है तो उड़ता है उस पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि तुम चलते क्यों नहीं हो।उड़ना उसका मौलिक गुण है।परं वह भी असीमित नहीं उड़ सकता है।वारिधि पर उड़ान के समय उड़ान के साथ-साथ तैरना भी आना चाहिए।यही सब प्रेम की विशुद्वता पर लागू होता है।वह सीमित हो या असीमित वह हो शुद्ध।इसे भी एक मोहक आकृति दी जा सकती है।पक्षी की उड़ान उसका निर्मल आत्मविश्वास है।उसे उड़ने से प्रेम है।इस सब व्यवस्था को लागू होने में प्रेम रूपी वारिधि पर स्नेह रूपी पक्षी त्यागरूपी उड़ान और ख़ुद के आत्मविश्वास की उत्प्लावकता चाहिए।अन्यथा भोग रूपी तलवार प्रेम रूपी सुन्दर पक्षी के दोनों पंखों को काट देगी। प्रेम प्रदर्शन के लिए न हो।इसे भी गौरव के साथ जिया जा सकता है।ख़ैर ज़्यादा उपदेशक होना ठीक नहीं,इन सब बातों को हृदय पर भी लेना ठीक नहीं।प्रेम भी परिस्थिति पर निर्भर करता है।यदि परिवार का बल मिल जाये तो इसका महाअनुमोदन समझा जाये। कोई भी पक्षी मल करने के बाद अपने मल को भूल जाता है और भूल जाता है कि इससे पीपल उगेगा या फिर बरगद या फिर नीम। यह प्रेम उसी मल की तरह है।परन्तु दोनों प्रणय जन इसके परिणामों को नहीं देखते हैं।इस के लिए तुम अपनी मूर्खता को क्या कभी दण्डित कर सकोगे।
©अभिषेक: पाराशरः
नोट-मुझे लिखने से मतलब है।कोई इसे ज़्यादा दिल पर न ले।