💐प्रेम की राह पर-32💐
14-किसी सुभाषित की सुभाषा को अपने अन्दर मौक्तिक के रूप में ग्रहण करना उसकी अप्रतिम माला को पिरो लेना कितना ही प्रभावी हो यदि उस माला से मानवता का जप किया जाए।तो निश्चित ही उसका तात्पर्य सफल होगा।यद्यपि यह इतना सुकर नहीं है परन्तु मानवता को साथ लेकर संकल्प पथ पर इसका वाचन किया जाए तो यह उस मार्ग की ओर संकेत अवश्य करेगा जहाँ से प्रेम गलियाँ अपने यात्री की धैर्य से प्रतीक्षा करती हैं।वे शांति से उसका धन्यवाद भी करती हैं।उन गलियों की यात्रा चाहे वह संक्षिप्त हो या दीर्घ हो यदि उसके पथिक सफल होतें है तो उन्हें वह साधुवाद भी देतीं हैं।यदि जीवन भी पथिकों द्वारा सादगी और सहूलियत के साथ जिया जाता है तो वे उन्हें उस विवाद से भी दूर रखती हैं कि वे पथिक सफल नहीं हो सके।चहुँ ओर घटित होने वाले विराट यज्ञ का सबसे बड़ा गवाह मानव है। जिसे वह अपनी नग्न आँखों से इस संसार की प्रकृति के रूप में सर्वत्र देखता है।जहाँ वह अधिक देखता है तो निश्चित ही उसका वहाँ कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होता है।बुराई या अच्छाई दोनों में संलिप्त भी हो सकता है या फिर तटस्थ भी रह सकता है।सर्वदा कुछ विशेष तथ्यों के साथ उन पहलुओं को भी जो उसके साथ अग्र-पश्च घटी विविध घटनाओं से संकलित किये होते हैं,को भी अपने हृदय की तराजू पर शनै:-शनै: तौलता है।फिर अपने ज्ञान की तराजू से स्थान-स्थान की प्रमुखता को देखते हुए बंटित करता है।इसमें उसका प्रेम भी अपनी योग्यता के अनुसार छिपा रहता है।जिसकी प्रस्तुति वह परिस्थिति विशेष में सत्वर भावना से करता है।हे मित्र!तुम्हारी इस तरह की भावनाएँ कहाँ खो गईं।कहाँ खो गई वह आह्लाद देने वाली अधरों की लहरें।किन कारणों से इस तरह शांन्ति का अंगीकार कर लिया है।कहाँ छिपे हुए हो।अपनी उस प्रतिभा को लेकर जो केवल और केवल तुम्हारी ही है।सुतराँ तुम विक्षिप्त चित्त तो नहीं हो कहीं जिसमें सदैव अनर्गल संवाद का उदय ही होता है।तुम्हारी रचना दक्षता का भाषिक प्रमाण तुम ही हो। जिसे मैं ही समझ सकता हूँ।तुम उज्ज्वल चरित्र की प्रतिमा तो हो इसका प्रमाण तुम्हारे उत्तर देने की अंतिम शैली से ज्ञात उसी समय हो गया था।परन्तु तुमने अपने नायिका तत्व को किसी भी प्रकार से उच्चतम शिखर तक नहीं पहुँचाया।जिस प्रकार तुमने इस गोपनीय संवाद का उद्धरण स्थान स्थान पर दे दिया,इससे मेरी बहुत बड़ी हानि हुई है। उन सब बातों को बताकर तुमसे।क्या मैंने कोई अपराध किया था।विचारों के सम्मेलन में यदि गोपनीयता भंग कर दी गई तो तुम ही इसके लिये जिम्मेदार हो।मैं तो दोषी नहीं।मेरा कपट कहीं तुमने यदि देखा हो तो बताना तुम।कहीं चरित्रहीनता की एक छींट भी देखी हो तो बताना।किसी गलत कृत्य की अफवाह भी सुनी हो तो बताना।फिर अपनी बात की स्वीकारोक्ति के लिए इतना लम्बा इन्तजार तुम कर रहे हो।क्यों।क्या मैं नेपथ्य में चला जाऊँ।बताओ।तुमसे मुझे बदनाम करने के कुछ न हुआ।तुमने ऐसी परिस्थितियों को बना डाला है जो अब मुझे कोसती हैं।धिक्कार है तुम्हें।
©अभिषेक: पाराशरः