💐प्रेम की राह पर-28💐
18-ध्यान की प्रगाढ़ अवस्था वह है जब ध्यान का भी अनुभव न रहे।त्याग यदि आवेश से होगा तो यह वास्तविक रूप से कष्ट ही पहुँचाएगा।तुम्हारे विषैले तत्समय व्यवहार ने मुझे बहुत संताप दिया।उसे कैसे व्यक्त करूँ।हम कितने स्वार्थी हो गए हैं अपने लाभ के लिए।यह सब अनमोल समय है जिसे किसी के लिए मैंने व्यक्त नहीं किया कभी।पर तुम्हारे लिए समग्र दृष्टिकोण परिवर्तित किया और जो कुछ कहना था उसे अपने सुखद निःस्वार्थ भावना से लिख डाला।यह सब मेरे लिए कितना ही सुखद था।पर कैसे एक पल में तुमने उसे बदल दिया दुःख में।तुम्हारे विषयक सभी उद्देश्यों का खण्ड-खण्ड होना लाज़मी हैं और यह गँवारा है कि तुमने एक साथ यह निर्णय कैसे कर लिया यह कहकर कि तेरे ऊपर मेरा थूक भी नही न गिरेगा।।तुम्हारा थूक लेने को नहीं।प्रथम दृष्टया में यह सब मिलेगा कभी न सोचा था।कितनी आशाएँ घोंसला बनाएँ हुईं थीं।उनके घोंसलों को तुमने अपशब्द कृन्तकों से नष्ट कर डाला।भौतिकी के दृष्टिकोण से भी यह निर्णय नहीं कर पाया हूँ कि मुझे निकट दृष्टिदोष था या दूरदृष्टि दोष।मैं कैसे उपरत हो सकूँगा इससे।मेरे अन्दर चाटुकारिता और असभ्यता भी नहीं थी और मैं टुच्ची प्रेमी बनकर तुम्हारा पीछा करता।सहसा तुमने हे मित्र!कैसे उन सभी आधारों को समूल नष्ट कर दिया,जिनमें आगे के जीवन के सभी कार्यों की सूची उपस्थित थी।तुम इतने विद्रोही क्यों थे।क्या वैमनस्यता तुमने अपने अन्दर पाल रखी थी।क्या तुम भी जीवन भर एकाकी रहोगे।नहीं न।तुमने कभी मेरे प्रति अपनी प्रवणता के लिए कभी न कथन किया और क्या ही बता सकोगे।तुम जो अपने अहंकार में एकदम डूबे जो हो।तुम ऐसे ही ख्याल बनाते रहना।तुम कैसे रहनुमा हो।अपने दुःख ही तो कहे थे मैंने तुमसे और तुमने उन्हें कहाँ कहाँ कह डाला।क्या मैं मृत हूँ।यदि तुम ऐसा मानते हो तो तुम मुझे जीवन दे दो।क्रमिक विकास की हर एक कड़ी को तुमने ऐसे भंजित किया है कि उनको अब कैसे जोड़ा जाए।कैसा भी परामर्श कोई नहीं देता है।अब तो किसी से जुड़कर भी अकेले ही रहेगें और इस अकेलेपन के मूल में तुम रहोगे।
©अभिषेक : पाराशरः