💐प्रेम की राह पर-25💐
21-चलो कोई बात नहीं, तुम नहीं तुम्हारे द्वारा भेजा गया फेसबुक कोड मिला।इसे मैं शान्ति का दान समझूँ या फिर एक सरल हृदय मानव को दी गई धैर्यशील चुनौती।क्या समझूँ इसे मैं?।प्लीज ऐसे ही भेजते रहना मैं उन्हें भी डिलीट नहीं करूँगा।रख लूँगा किताबों के पन्नों के बीच गुलाब समझ कर।ऐसा ही कुछ रोज़ नया कर दिया करो मेरे लिए।उसे पत्र की तरह रखेंगे।तुमने प्रिय सिद्ध कर दिया कि तुम इस विषय में भी पक्की हो।मैं तो तुम्हें नाहक़ समझ रहा था इस विषय में।क्या मैं यह समझूँ कि हे मित्र!तुमने मुझे शांति देने का प्रयास किया है।शायद यह मान लिया हो कि मेरी और तुम्हारी शान्ति मिलकर,महाशान्ति हो जाएगी।तो तुम्हारा मानना बहुत सही है। मैं इसे प्राप्त कर महाशांत हो गया।तुम्हारा क्या है कुछ भी करो।इसके अलावा कर भी क्या सकते हो।पहले फ्रेंड सजेसन भेजते थे अब मेरे फेसबुक पटल को हैक कर लो।पर मैं तो इसे प्रक्षिप्त प्रेम ही समझूँगा तुम्हारा मेरे प्रति। घूँघट ओढ़ कर छिप जाओ अपने कमरे में और मुस्कुराते रहो दाँत निकाल कर।पर हाँ थूकती हों तो क्या पता है तुम्हारा।थूकन क्रिया में महारत जो हासिल है। बहुत बड़े विद्रोही हो।पर तुम्हारा विद्रोह मेरे प्रति क्यों।विद्रोह करो तो सामाजिक बुराइयों के लिए।यदि प्रिय मित्र मुझे भी सामाजिक बुराई मानते हो तो मेरे लिए भी कर सकते हो विद्रोह। विगत दो वर्षों से विद्रोह तो कर ही रहे हो।क्या ही मैं सामाजिक बुराई हूँ? मैंने तुम्हारे रास्ते पर ही तो फूल बिछाएं हैं यदि तुम उन्हें शूल समझ लो तो मेरा क्या।पर हाँ तुम तो सामाजिक अच्छाई हो।ज्ञात हो या अज्ञात हो यह तो पर्दे के पीछे है।अब में जल्दी ही यहाँ से हट जाऊँगा।तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो।मुझे नहीं पता।अँगूर वाली किताबें पढ़ो और अँगूर का मौसम है अँगूर खाओ।मेरी अभिव्यंजना का कोई तो स्थान बताओ।मुझे पता है तुम पढ़ते हो मेरे अन्दर और बाहर लिखे सभी को।पढ़ते रहो।भीति से ग्रसित न होना।मैं कोई कबीर सिंह नहीं हूँ।दीवारों को फोडूँगा।नहीं न।मुझे लिखकर शान्ति मिले और तुम्हें पढ़कर।ऐसा ही लिखने का प्रयास रहता है।बड़ा कठिन जीवन है और फिर इसकी यात्रा।पहली वार कोई चीज़ आज़माई और उसका परिणाम अभी भी परिणाम में हैं।तुम्हें यह मेरा लिखना अच्छा लगता है या बुरा।यह भी तो तुम्हें बताना है।तुम चले कहाँ गए हो?कुछ तो बोलो।मुझसे जुडोगे तो मेरे जैसा जीवन जिओगे।मेरे जीवन है एक दम शाकाहार की तरह।फिर सोच लेना।मुझ अज्ञात का इतना श्रम।तुम भी श्रमशील बन जाओगे।पर अब अज्ञात नहीं हूँ।तुम मुझे ज्ञात कर चुके हो।आज कुछ नया करना।मेरे लिए।मुझे पता है फेसबुक का कोड मेरे लिए तुम्हारे अलावा कोई नहीं भेज सकता है।यह ज्योति विष्ट कौन है बहुत परेशान कर रही है बच्ची।
©अभिषेक: पाराशरः