??पहली सुहागरात??
तेरी मेरी वो पहली मुलाकात
और
सुहाग की वो पहली रात
जब
मैंने छुआ था तुम्हारा बदन
ऐसे सिहर सी उठी एक लहर
जब
रात का था वो पहला पहर
जैसे बिजली ने ढाया हो कहर
मैंने जब
तुम्हारे उत्तप्त उरोजों को थामा
और
होठों से तुमने सुरापान कराया
तुम्हारी सर्पिली लहराती वह देह
जब लिपटी थी सशक्त मेरी-देह
धीरे-धीरे तुम्हारे भग-भंगुरो को
मैंने सहलाया और उससे उठता
वह धुआं ऐसे लग रहा था जैसे
शीत मौसम में बर्फ-गर्भ से उठता धुंआ
दिखलाई देता नहीं यह कुछ कैसे हुआ
तुम्हारी वो हालत और वो मेरा नशा
दोनों मदहोश थे
एक-दूजे को बाहों-कसा
मिल गया हो कोई अलादीन का चिराग
धीरे-धीरे पिघलता-घी जो चराग-उड़ेला
धधकी आग और फिर हुआ पानीपानी
शांत हुई अब यूं तुम्हारी-हमारी जवानी
मंजिल मिली तुम शांत मैं थका-हारा
मिल गया हो पथिक को जैसे किनारा
नींद के आगोश में खो गये हम-तुम
क्या यही थी तेरी मेरी पहली सुहागरात ।।
?मधुप बैरागी