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24 Apr 2022 · 3 min read

🍀🌺प्रेम की राह पर-42🌺🍀

शान्ति को भंग करती महाशान्ति और उसका निर्वचन करना इतना आसान नहीं है।चूँकि शान्ति के अन्दर भी महाशान्ति परिवेश को अपना जीवन देने का प्रयास करती है।उसका अनावरण तब होता है जब व्यक्ति अन्तः से सन्तुष्ट होता है।नहीं तो शान्ति उलाहना दे देकर महा क्लेश के जन्म देती है।इतना आसान नहीं है शान्ति का पथ।इसे प्राप्त करने में अच्छे अच्छे घुटने टेक देते हैं।लोगों की धृति, मेधा आदि निरुत्तर होकर शान्ति के प्रति खोज को शिथिल बना देती है।शान्ति कोई पेड़ पर लगने वाला फल नहीं है जिसे जब चाहा तभी तोड़ लिया।शान्ति के वृक्ष के लिए निसर्ग सिद्ध आनन्द के बीज बोए जाते हैं, न्यायिक पद्धति से समदर्शी बनकर उल्लास से ओतप्रोत होकर, स्वच्छ विचाररूपी जल से वर्द्धित पौधों में जल दिया जाता है,तब कहीं जाकर उस भूमिका के चिन्तन पर शांति का आन्दोलन अपने मनन से ही उठता है।अपने मनन का कौशल न होने पर आप शान्ति के व्यवहार को कभी समझ नहीं सकोगे।किस स्तर पर शान्ति का समावेशन जरूरी है यह परिस्थितियाँ भी तय करती हैं।उपलक्षित जीवन का व्यवहार शान्ति के बिना त्याज्य है।अन्यथा दासता की भावना का ही उदय होगा।यदि आपमे समझदारी की प्रगाढ़ भावना है तो आप उपलक्षित जीवन को जिएंगे ही नहीं।क्यों कि उपलक्षित जीवन निश्चित ही कभी भी एकाकार नहीं होगा।यह शान्ति का प्रसंग उस रोचकता को लेकर किया है जिसमें हे मित्र मैंने तुम्हारे अन्दर किसी भी उपलक्षित दशा को नहीं देखा था।मेरी दशा लक्षित थी।इस दशा की प्रतिपूर्ति के लिए तुमसे तुम्हारी पुस्तक की माँग मैंने की।जिसे तुमने मुझे एक विशुद्ध चरित्रहीन समझकर अभी तक भेजा नहीं है।शायद तुम अपने विचारों के स्वामी नहीं हो।ज़्यादा तरंगित होना किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति में, फलदायी नहीं हो सकता है।यदि एक तरंग से भावित हैं तो ही सांसारिक व्यापार में और पार लौकिक परमार्थ में सफल होने की संभावना है।इसके विपरीत कोई ही अपवाद के रूप में सफल हो सका है।तुम अपनी मित्र मण्डली को परखकर ही आगे बढ़ो।हाँ, यह तो सही है कि इंद्रप्रस्थ में मित्रमण्डली की आवश्यकता होती है।परन्तु उस मित्रमण्डली की प्रमेय की सिद्धि अनुमन्य उनके विचारों से ही होती है।संकटासीन स्थिति में वे अपने पेट भरने के लिए महीनों से भूखे की तरह लटपट तैयार हो जाते हैं। परन्तु अपने घटिया विचारों को भी साझा कर देते हैं।यह सब मेरे संसारी प्रयोग हैं।तो मित्र शायद यह अब तक अज्ञातवास है तुम्हारा।पर क्यों है।यह किस भय से है।कोई मौलिक व्यवधान आ पड़ा है।या फिर मैंने कोई ऐसा दंश दिया है जिससे तुम अवसाद से ग्रसित हो।तो मुझे दोषी ठहराना गलत है।हाँ, डिजिटली पीड़ित तो कर सकता हूँ और तुम लोग कौन से कम हो, पर मैं इतना नहीं करूँगा कि भय का जन्म हो जाये।मैं, अपनी एक भगिनी के अलावा किसी अन्य लड़की से वार्ता नहीं करता हूँ।अतः कोई सन्देश मिलना मेरे नम्बर पर मुझे ज़्यादा आक्रामक व्यवहार देने के लिए प्रेरित करता है।मैं फिर कह रहा हूँ कि घुमाफिराकर ज्यादा बातें करना मुझे पसन्द नहीं हैं।तुमने मेरे ऊपर थूका और दिया शानदार जूता,यह व्यवहार मुझे अच्छा लगा।क्यों कि यह सीधा और सपाट था।ज़्यादा इंग्लिश में लिख कर भेजना, घुमा फिराकर बातें करना बर्दाश्त नहीं होती हैं।फिर मेरे अन्दर का बचपन वाला शैतानी दिमाग़ जागृत हो जाता है और फिर करता हूँ डिजिटली एनकाउन्टर और रुला देता हूँ।हे चिसमिस!तुम ज़्यादा लपकागिरी पर मत ध्यान दो।तुम उन विषयों को जिन्हें इस क्षेत्र में सिद्धहस्त समझते हो।उनका प्यपदेश न देकर एक सीधे संवाद को जन्म दो।वह भी मुझसे।मैं फिर कह रहा हूँ।घुमा फिराकर बात नहीं।फिर मैं आक्रामक व्यवहार का परिचय दूँगा।यह सब फालतू है कि औरत को व्यसन के रूप में देखा जाए और मैं क्या कोई नरभक्षी पिशाच हूँ जो तुम्हें खा जाऊँगा।फिर ज़रा सा भी भय न करना।तुमने एक नाबालिग को पकड़ रखा है।जिससे तुम्हारे बारे में सन्देश करता रहता हूँ।तो वह टपोरी कभी राजनेता नहीं बन पाएगा।ऐसे राजनेता बाद में जाकर परचून की दुकान खोल लेते हैं।ऐसा हश्र मेरे एक रिश्तेदार का भी हुआ है।तो हे सूखी हड्डी!तुम भयभीत न हो और अपने दाँत न निपोरो।यह मेरा संसारी प्रेम के प्रति शोध है।इसमें गम्भीरता को देख रहा हूँ कि मैं और तुम कितने गम्भीर हैं और कुछ नहीं।उपन्यास की पृष्ठभूमि तैयार है।कितने मौक्तिक एकत्रित हो चुके हैं और भी हो जाएंगे।तुम्हारे हिस्से में तो वही बचेगी कविता बाबा जी का ठुल्लू।तुमने अभी तक अपनी किताब नहीं भेजी है।पर क्यों?शायद धन की न्यूनता ने घेर लिया है तुम्हें।मैं इस पथ पर चल रहा हूँ कि आख़िर निष्कर्ष क्या निकलेगा।क्यों कि एक पक्ष से संवाद जारी है दूसरे पक्ष से एक शब्द का उद्भव उक्त को छोड़कर अभी तक नहीं हुआ है।

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Hindi
1 Like · 1059 Views
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