??मानव का दम??
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वीर हैं हम दमदार हैं हम,
है हमारे बाहुबल में दम।
हम न हारेगें मेहनत से,
खुद हारेगा हम ही से श्रम।
कुछ और नहीं मानव हैं हम।।
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पहचान लिया अपने दम-खम को,
हमारी शक्ति न किसी से कम।
आकाश छू रही हमारी बुलंदी,
अपनी ताकत पर नहीं है भ्रम।
कुछ और नहीं मानव हैं हम।।
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पैरों में देखो चुभ रहे हैं कांटे,
राहें हैं पथरीली नहीं है नर्म।
राहों के रोड़े खुद चुन फेंकेंगे,
खुद के काम में कैसी शर्म।
कुछ और नहीं मानव हैं हम।।
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दुखियों को कुछ देंगे सहारा,
करेंगे उनके कुछ आंसू कम।
जीवन में कुछ पुण्य कमा लें,
काम आयेगा हमारा यही धर्म।
कुछ और नहीं मानव हैं हम।।
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अपने मरे ही स्वर्ग है मिलता,
समझ लिया जीवन का यह मर्म।
अपने भुजबल पर है हमें भरोसा,
शुद्ध हृदय से करेंगे अपना कर्म।
कुछ और नहीं मानव हैं हम।।
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-रंजना माथुर अजमेर (राजस्थान)
दिनांक 13/12/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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