🌺🌺प्रेम की राह पर-41🌺🌺
क ने ख एक सज्जन से विनोद भाव में कथन किया कि मुझे हथियार चाहिए उन्होंने क को कागज़ और कलम दी और कहा बनाओ हथियार।”इस कथन में कितनी व्यापकता है।क्या कागज़ से हथियार ही बनाए जा सकते हैं।नहीं।वे कागज़ और कलम पुष्पवर्षा कर अपनी उपादेयता सिद्ध कर सकते हैं।किसी आधार को यदि सत्य की कसौटी पर कसा जाए तो वह व्यतिरेक में तो निश्चित ही उस प्रलक्ष्य से भटक जाएगा।किसी साधन से भी सुष्ठु प्रकार से गमन करते हुए ही सिद्धि को प्राप्त किया जा सकता है।भले ही साध्य की भावना सत हो या असत।क्या कभी कोई वृक्ष की तपस्या का दर्शन करता है।नहीं क्यों कि हमारी मनुष्य की तपस्या में ही श्रद्धा है।वह वृक्ष धूप, वर्षा, शीत, उष्णता आदि को सहन करते हुए भी अपने निम्न में बैठे पथिक को फल,फूल और छाया का क्षेम प्रदान करता है।मनोनुकूल वार्तालाप भी इस जगत में दुर्लभ है।क्योंकि वार्ता के दौरान प्रक्षिप्त विषय भी अपना मुख किसी न किसी व्यपदेश को लेकर प्रस्तुत हो ही जाते हैं।अबोध शिशु रजस्नान क्या किसी के कहने पर करता है।हाँ, कर भी सकता है।परन्तु वह स्वतः ही रज स्नान में आनन्द का अन्वेषण खोज लेता है।यह आनन्द ही तो प्रेम है जो उमड़ उमड़ के आनन्द दायक जगहों पर ले जाता है।दृष्टि का भ्रम कभी टूटने वाला नहीं है, जब कि दृष्टव्य वस्तुओं का पूर्व परीक्षित और निर्धारित चयन नहीं किया जाए।यह भी इतना सुकर नहीं है।परन्तु आत्मावलोकन के समग्र प्रयास से इसे सुकर बनाया जा सकता है।अपने दोषों का परिमार्जन एक प्रत्याह्वान के रूप में स्वीकार किया जाए।उसे अन्तिम स्थिति तक पहुंचाना उन्हें सरल कर लेना भी बड़ी उपलब्धि है।तो हे!मित्र तुम्हें तो किसी भी प्रत्याह्वान का क्लेश मैंने नहीं दिया था।मैं एक टपोरी की तरह अल्हड़ व्यक्तित्व से तुम्हें घेरना शुरु करूँ।नहीं बिल्कुल नहीं।यह संताप जीवन भर कष्ट ही देगा मुझे और कहेगा कि अभी तक अपने चरित्र को उज्ज्वल बनाए रखा फिर इस दो कौड़ी के संसारी प्रेम से इस परमात्मा के संग प्रेम का लुम्पन क्यों कर लिया।चलो यह तुम्हारा आदर्श होगा कि तुम भिन्न जगहों से मेरा परीक्षण कराओगे।फिर भी तुम्हें ऐसे परीक्षणों से अभी तक क्या मिला।कुछ नहीं न।और मिलेगा भी नहीं।तुम नाबालिगों की फ़ौज में अपना दिमाग़ लगाए रखना।कोई संवाद करना है तो मुझसे करो।मैं तुम्हें अपने उत्तर से सन्तुष्ट करूँगा।इधर उधर चूजों से कुछ भी न कहलवाओ।समझ लो।इतना भी कमज़ोर न समझना तुम सभी के नमूने एकही निकले हैं।इसलिये अपने व्यावहारिक शब्दकोश से सभी काम के व्यवहारों का उदय करो।उन्हें मुझ तक स्वयं पहुँचाओ।मैं कोई लोफ़र हूँ क्या ? सभी दिल्ली के झमेलों से मुझे दूर रखा जाए।मैं निश्चित ही तुमसे उदार व्यवहार का कथन करूँगा।किसी को श्रेय क्यों दें ?यह सभी नाबालिग अपने मनन की परिधि से कभी बाहर नहीं सोच सकते हैं।तुम्हारी अपनी गम्भीरता का परिचय दो अपनी शिक्षा का परिचय दो।मुझे सीधे उत्तर देना ज़्यादा अच्छा लगता है न कि घुमा फिराकर।ज़्यादा इतराना अच्छा नहीं लगता।सीधी सपाट बात करना ज़्यादा अच्छा लगता है।लोग मेरी बातों में फँसकर अपने आप उत्तर दे देते हैं।मुझे अश्लीलता से नफ़रत है और ऐसे ही समकक्ष विचारों से भी।तो इस असंगति की भूमिका से बाहर निकल लो।ठीक है।अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।अभी बेरोजगार हो और रोज़गार की संभावना कितनी है इस समय में तुम जानते होगे।नौकरी प्राप्त कर देखो।मालूम पड़ जाएगा।कितना आसान है यह सब कुछ।विनोद के चक्रव्यूह से बहि: परमात्मा की उस कृपा का भी आनन्द लो चिन्तन कर ही समझी जा सकती है।किसी प्रश्न की चाह है तो मुझसे करो।निर्दोष उत्तर ही प्राप्त होगा।तुम्हारी मित्र मण्डली क्या है कैसी है।मुझे ज्ञात नहीं है परन्तु।मेरी मित्र मण्डली शून्य है।एक चीज़ ज्यादा घुमाकर बात करना पूर्णतया बुरा लगता है।अतः इन सब घटिया बातों से निकलकर उत्तर सही उत्तर दो।सीधे उत्तर दो।ईश्वर सब देख रहा है।अपनी योग्यता का परिचय दो।इसके लिए सीधे और मधुर संवाद को मध्यस्थ बना लो।नहीं तो तुमसे बड़ा कोई मूर्ख नहीं है।एक मात्र। डिग्री ही योग्यता का निर्धारण नहीं करती है।
©अभिषेक: पाराशरः