🌺प्रेम की राह पर-54🌺
किसी वार्ता को कहने से पूर्व लघुरूप में चाहे बृहद रूप में उससे सम्बंधित शब्दों के मोतियों को पिरोया जाता है।कोई जादू टोना नहीं होता है किसी सुन्दर भाषण की वक्तृता में।परं उसकी शोभा भाषणकर्ता सुन्दर शब्दों के प्रयोग से सजीव ही बना देता है।यदि वह अपने भाषण के मध्य में अपशब्दों का प्रयोग करें तो उसे निश्चित ही श्रोताओं से अपशब्द ही मिलें।एतादृश यदि आप उत्तम दर्शक नहीं हैं तो आपको प्रत्येक स्थान पर अव्यवस्थित,अदर्शनीय और उबाऊ वस्तुओं पर ही नज़र जमेगी।शनै: शनै: आप उन समस्त कमियों को आत्मसात कर लेंगे।इसका भान भी आपको नहीं होगा।पक्षियों के कलरव की मधुरता और उनके श्रवण प्रेम को हर किसी पर थोपा नहीं जा सकता है।जिस किसी को भी वह पसन्द है जिस किसी को भी वह स्वीकार है उस प्रकृति प्रेमी को वह सदैव अच्छा लगेगा।उसे अनायास वह अपनी और उस मानव को आकर्षित कर लेगा।दर्पण की तरफ मनुष्य का प्रेम क्यों है मात्र अपने सौन्दर्य को देखने के लिए।यदि मनुष्य उस दर्पण में अपने चरित्र की झाँकी देखता तो कभी वह उस मुकुर के पास न जाता।तो हे सब्बो!तुम अवश्य ही अपने चरित्र को अपने मन रूपी मुकुर में देखना।ख़राब तो नहीं होगा परं दूसरों की निन्दा का जो तुम्हारा अभिप्राय है वह निश्चित जी बेढंगा है।तुम कभी अपनी असलियत पर ध्यान केन्द्रित करना।सम्भवतः धन तुम्हारे लिए बहुत कुछ है और यदि तुमने ऐसी महत्वाकांक्षाएँ पाल रखीं होंगी जिनसे कभी भी भेंट होना न के बराबर है तो तुम निश्चित ही अपने को कुण्ठित करती रहोगी।महत्वाकांक्षा की समृद्धि परिस्थितियों के दर्पण को देखकर ही मन में स्थापित करनी चाहिए।अन्यथा वह असत्य समृद्धि आपको बौद्धिक कौशल में अकिंचित बना देगी।तो हे रुपहली मैंने तुम्हें कभी भी अपनी महत्वाकांक्षा से न जोड़ा और वैसे भी इस शुद्ध प्रेम में महत्वाकांक्षा को रखता भी तो तुम्हारी भाषाशैली ने इसका ढ़ोल बजा बजा कर फाड़ दिया।शायद मैंने तुमसे कई बार सीधे बात करने का प्रयास किया।परन्तु तुम्हारे ज़्यादा पढ़े-लिखे होने की वजह से तुम्हारे बताएँ एक नाबालिग सहारे को ही चुना।तो उसने भी कभी अपनी योग्यता का परिचय न दिया।क्या यह खुशहाली है तुमने मेरे जीवन को सब कुछ पूर्व कथन के बाबजूद भी और वह भी सत्य।तो तुम्हारी वलयित बातों के अलावा तुमसे कोई अन्य बात सुनाई न पड़ी।तुम अपनी पीएचडी को चलो पूरी कर लो।परं यह कभी भी पूरी न होगी।तुम्हारा अहंकार तुम्हें रुदन की ओर ले जाएगा।तुम्हारा शोध सिमट चुका है तुम अतिरंजित भावना से पीड़ित हो जो तुम्हारी सत प्रेम के व्यवहार को कभी न जन्म देगी।यह सब बातें तुम यह न समझना कि तुम्हें रिझाने के लिए कह रहा हूँ, तुम्हारे हृदय परिवर्तन के लिए कह रहा हूँ।तुमने उस एकल मार्ग का चयन कर लिया है जहाँ तुम्हें कभी शान्ति न मिलेगी।हाँ हमने तुमसे कहा था कि धन का तो अभाव है हमारे पास परं कभी कैसे ही व्यसन को नहीं पाला।तो हे चुन्नी!तुम्हारे गाने किसी भी भाव से भरे नहीं हैं।तुम निरन्तर अपने गाने गुनगुनाती रहना।कोई न सुनेगा इस संसार में।तुम सोचती होगी कि यह मनुष्य अपनी सफाई क्यों प्रस्तुत करता है तो कोई भी मनुष्य अपनी अच्छाई ही बतायेगा।मैंने तो हे मूर्ती!अपनी अच्छाई और बुराई दोनों ही प्रस्तुत किये।कोई यह मुझ पर आरोप लगाये कि मैं तुम्हारे चक्कर में फँस गया हूँ तो सुनो चक्कर चक्कर कुछ नहीं है तो हे लोलो!हमारे तुम्हारे समान्तर विचार हमेशा मेरे समान्तर ही रहते।किसी सहसा आलोक के चमत्कार के लिए नहीं बैठा हूँ परं मैं भी अवसरवादी हो चिन्ता न करो मैं भी तुम्हारे प्रति तुम्हारी उदासीनता के कारण घृणा तो तुमसे न करूँगा परं उदासीन हो जाऊँगा।तुम किसी अन्य मनुष्य की प्रेरणा से ऐसा रूखा व्यवहार कर रही हों।जिसका कभी भी मैंने सामना न किया।ईश्वरीय प्रेम की पोटली मेरे साथ कुछ इस तरह रहती है जिसे मैं देखकर ही जीता हूँ।यह सब हास्यास्पद नहीं है और होना भी नहीं चाहिए।एक अग्रिम व्यवहार है ईश्वरीय प्रेम जो इस पृथ्वी पर हर किसी को नहीं मिलता है।तो हे सूजी आँख!तुम्हारे लिए तो जुगाड़ और सिफारिश की ही थी।तुमने कोई ध्यान न दिया।मज़ाक था न यह।तो तुम भी ऐसे ही मज़ाक बन जाओगी।तुम उन सभी मूर्ख व्यक्तियों के संसर्ग में हो जो अपने को दिल्ली में बैठकर अपने को विचारक कहते हैं।तो उनके विचार व्यापारियों से मिलते जुलते हैं।एक व्यापारी तो सदैव अपने धन के व्यापार में लगता है परन्तु यह व्यापारी अपने भिन्न-भिन्न व्यापारों में अपने मन की तराजू से सभी को तौलते रहतें हैं।इनकी लौकिक पृष्टभूमि तो ठीक है परं अलौकिक पृष्ठभूमि कंटकों से भरी पड़ी है।जो इन्हें कष्ट के रूप में भोगनी पड़ेगी ही।तो हे मित्र!तुम्हारी मूर्खता भी द्विपथधारी हो गई है जिनमें ऐसे लोगों की संख्या अधिक है।हमारे जैसे लोग तो बेचारे बना रखे हैं।यह तुम्हारी मूर्खता का शुद्ध प्रदर्शन है।वैसे भी हे मूर्ख!किलोग्राम पर सन्देश भेजा तुमने पढ़ा अच्छा लगा।बस यही प्रसन्नता ही काफी है,किसी मूर्ख की तरफ से।
©अभिषेक पाराशर