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4 Jul 2022 · 1 min read

🌺प्रेमस्य रसः ज्ञानस्य रसेण बहु विलक्षणं🌺

प्रेमस्य रसः ज्ञानस्य रसेण बहु विलक्षणं।ज्ञानस्य रसः स्थिर: शान्तः।परं प्रेमस्य रसः प्रतिक्षणं वर्धमानम्।भक्तया: बहु एव विचित्र: महिमा।भक्तया ज्ञानं च वैराग्य: च विना इच्छाया: स्वतः बलात् आगच्छतः।
यदि प्रेमस्य प्राप्ति: कर्तुं इच्छन्ति तु सर्वै: प्रेमं करोतु-‘सर्वभूतहिते रताः’।यदा पर्यन्त स्वमनस्य वार्ता: पूर्णं कर्तुं इच्छन्ति तदा पर्यन्तं न सगुणं प्रेम: भविष्यति न निर्गुणं।केन चित् सह द्वेष: भविष्यति तु भगवतः प्रेम: न भविष्यति।
कः अपि व्यक्ति: स्यात् एतस्मिन् भगवान् सन्ति-एतादृशः मत्वा प्रणमतु।सर्वान् नमस्कार: करणेन सर्वे विकाराः नष्ट: भविष्यन्ति।गृहे प्रातः-संध्याकाले सर्वान् नमस्कारः करोतु।एतेन् परस्परं प्रेम: भविष्यति।द्वितीय: वार्ता, सर्वेषां आदरः करोतु।सर्वान् प्रति सद्भावः समर्पयति।सर्वेषां सहायता करोतु।सर्वै: सह कुर्वन् प्रेम: भगवन्तं निकषा गच्छति।
यथा-
आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्।
सर्वदेव-नमस्कारः केशवं प्रति गच्छति।।
©®अभिषेक:पाराशरः

Language: Sanskrit
295 Views
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