✍️ये आज़माईश कैसी?✍️
✍️ये आज़माईश कैसी?✍️
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गर्दिश में है सितारे मेरे फिर भी अंदर ये आस कैसी?
अश्क़ की नदियां बहाके वो पूछता है ये प्यास कैसी?
मैं दिखता जरूर इँसा की ही तरह पर मुर्दा क़फ़स हूँ
ये जिस्म दर्द में फ़ना है रूह में चलती ये सांस कैसी?
मेरा ख़ुर्शीद अख़्ज में था चाँद से तसल्ली कर ली है
अँधेरे मुझपे मरने लगे है ये मौसम की साजिश कैसी ?
कुछ पल के उजालो के लिए वो मांगता है सूद मुझे
मेरे अंधेरो ने हिसाब पूछा तो जेहन में ख़लिश कैसी?
वो शोरा मशवरे हमने नीम के पतों से हज़म किये है
मुझ पे जहर बेअसर है तो फिर ये आज़माईश कैसी?
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✍️”अशांत”शेखर✍️
18/06/2022